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कोरोना पर जिससे थी राहत की सबसे बड़ी उम्मीद उसी ने कर दिया निराश, अब होगा क्या?

Shiv Kumar Mishra
23 May 2020 9:33 AM GMT
कोरोना पर जिससे थी राहत की सबसे बड़ी उम्मीद उसी ने कर दिया निराश, अब होगा क्या?
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कोरोना वायरस को लेकर दुनियाभर में ये समझा जाता रहा है कि एक बार बीमार होने के बाद जो लोग ठीक हो जाएंगे, उनमें इम्यूनिटी डेवलप हो जाएगी. हालांकि, कोरोना वायरस नई बीमारी है और इसको लेकर अभी पर्याप्त रिसर्च का अभाव है. ऐसे में मेडिकल एक्सपर्ट लोगों को सतर्क रहने की सलाह देते रहे हैं. लेकिन कई देश ठीक होने वाले मरीजों को इम्यूनिटी पासपोर्ट देने की तैयारी में भी जुट गए हैं. अब ऐसे लोगों के लिए निराशा वाली खबर सामने आई है.इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी कोरोना वायरस को लेकर ये कह चुका है कि शायद कोरोना दुनिया से कभी खत्म ना हो और लोगों को एचआईवी की तरह ही इस वायरस के साथ जीना सीखना पड़े.

thetimes.co.uk की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम ने कोरोना वायरस फैमिली के वायरस को लेकर 10 लोगों की लंबे वक्त तक जांच की. चार अलग-अलग कोरोना वायरस को लेकर 35 सालों तक 10 लोगों पर स्टडी की गई. यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम की स्टडी में ये सामने आया है कि कोरोना वायरस फैमिली से संक्रमित होने वाले लोग संभवत: सिर्फ 6 महीने तक इम्यून रहते हैं. इसके बाद दुनियाभर की 'इम्यूनिटी पासपोर्ट' स्कीम पर सवाल उठ सकते हैं. कई देश ये तैयारी कर रहे हैं कि जो लोग कोरोना से ठीक हो जाएंगे उन्हें इम्यूनिटी पासपोर्ट देकर काम पर भेजा जाएगा और उन्हें सोशल डिस्टेंस मेंटेन करने की जरूरत नहीं होगी.

रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस फैमिली के 4 वायरस (इनमें Covid-19 शामिल नहीं है) से कॉमन कोल्ड पैदा होता है. स्टडी में पता चला कि इससे लोगों के शरीर में काफी कम वक्त के लिए इम्यूनिटी पैदा होता है. यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम के रिसर्चर्स का कहना है कि 12 महीने के बाद देखा गया कि ठीक हो चुके लोग कोरोना फैमिली के वायरस से दोबारा संक्रमित हो गए. बता दें कि Covid-19 कोरोना वायरस फैमिली का ही नया वायरस है जो दुनियाभर में महामारी का रूप ले चुका है. ऐसे में कोरोना फैमिली के अन्य वायरस पर की गई स्टडी Covid-19 को समझने के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है.

ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैनकॉक ने कहा था कि सरकार एक करोड़ एंटीबॉडी टेस्ट किट के लिए करार की है. उन्होंने कहा था कि मंत्री 'सिस्टम ऑफ सर्टिफिकेशन' (इम्यूनिटी पासपोर्ट देने जैसी स्कीम) पर नजर बनाए हुए हैं. इससे उन लोगों को चिन्हित किया जा सकेगा जो काम पर जाने के लिए सुरक्षित होंगे. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि लोग कोरोना से कैसे इम्यून होते हैं, इसको लेकर अभी साइंटिफिक सबूत आ ही रहे हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम का कहना है कि ये पता लगाने के लिए कि कौन संक्रमित हो चुके हैं, एंटीबॉडी टेस्ट का सीमित इस्तेमाल ही हो पाएगा. स्टडी में शामिल प्रोफेसर लिआ वैन डेर होएक ने कहा कि वैक्सीनेशन के बाद भी हर्ड इम्यूनिटी एक मुद्दा रहेगा. हो सकता है कि लोग छह महीने या एक साल बाद दोबारा संक्रमित हो जाएं.

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