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एनकाउंटर, मुठभेड़ के नाम पर यूपी में मारे गये 32.9% मुसलमान अधिकारियों की पीठ थपथपाती सरकार!
जाकिर अली त्यागी
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार में एनकाउंटर करने वाले पुलिसकर्मियों को सम्मान करने का दौर शुरू हुआ तो अधिकारी अवार्ड लेने के चल रहे कॉम्पटीशन में लगातार एनकाउंटर कर रहे है, जिस देश में बेगुनाह या किसी आरोपी के हत्यारों को सरकारी अवार्ड दिये जाये, यहां तक कि उन्हें राष्ट्रपति के द्वारा सम्मानित किया जाये तो मानों सरकार ख़ुद कह रही है कि हत्या करके आओ पड़े हुए अवार्ड लेकर जाओ!
उत्तर प्रदेश में 22 मार्च 2017 से अब तक 12,525 से अधिक एनकाउंटर हुए जिसमें 207 लोगों या यूं कहें कि आरोपियों की जान गई है , 12 ,525 आरोपियों पर पुलिस की तरफ़ से चली गोलियों में 207 के क़रीब की मौत हुई और बाकियों की टांग में गोली लगी जिसके कारण वो घायल हुए है, घायलों को पुलिस अपनी भाषा में "ऑपरेशन लंगड़ा" कहकर संबोधित करती है!
22 मार्च 2017 से 12 अप्रैल 2023 तक 183 लोग एनकाउंटर में मारे गये और अब तक 207 मारे गये है, मेरे पास अप्रैल 2023 तक मारे 183 लोगों की सूची है जिनमें 59 मुसलमान है, 2017 से 2023 तक 59 मुस्लिम लड़के पुलिस एनकाउंटर में मारे गये , यानी मारे जाने वालों में 32.9% मुस्लिम है, उत्तर प्रदेश में 19.3% मुसलमान रहते है लेकिन मरने वालों और घायलों में 33% से अधिक मुसलमान है और होता है! 67% में यादव दलित और अन्य जातियों के लोग आते है!
पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने वाले लोगों के मामलें में पुलिस की फाइनल रिपोर्ट में एक ही लाइन इस्तेमाल की जाती है कि " इसने हम पुलिसवालों पर फायरिंग की पुलिस की तरफ़ से की गई जवाबी कार्रवाई में ढेर हो गया" है, घायलों के मामलों में भी पुलिस इसी से मिलती जुलती लाइन इस्तेमाल की जाती है कि "इसने हम पर फायरिंग की जवाबी कार्रवाई में घुटने पर गोली लगी जिसके बाद वह घायल हो गया और पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया" है! कुछ मामलों में पुलिस कुछ पुलिसकर्मियों को भी घायल बताती है कि "बदमाश की गोली से मेरा सहकर्मी भी घायल हो गया है" , पुलिसकर्मी इतना घायल होता है कि कुछ घंटे बाद वो अस्पताल से डिस्चार्ज भी हो जाते है!
पुलिस की गोली से मारे गये युवकों और घायलों के परिजनों का कहना होता है कि उसे पुलिस रात घर से उठाकर ले गई और सुबह हमें ख़बर मिली कि पुलिस एनकाउंटर में मारा गया या घायल हो गया है ,पुलिस घर से गिरफ्तार कर ले जाने वाले आरोपियों का गिरफ्तारी स्थान भी दूसरा दिखाती है, भले उसे पुलिस घर से उठा ले गई हो लेकिन दिखाया जाता है कि पुलिस चेकिंग अभियान चला रही थी वो हमें देखकर भागा, पुलिस ने पीछा किया तो उसने पुलिसकर्मियों पर फायरिंग कर दी जिसके कारण जवाबी कार्रवाई वो मारा गया या घायल हो गया!
मैंने देखा है उन लोगों का हाल जिन्हें पुलिस द्वारा टांग में गोली मार लंगड़ा कर जेल में डाल दिया जाता है, पुलिस जिस दिन टांग में गोली मारती है अगले ही दिन उसे जेल में डाल देती है, वो लंगड़ा हो जाता है जेल के द्वार पर पुलिसउसे छोड़कर लौट जाती है, जिसकी टांग में कुछ घंटों पहले ही गोली लगी हो उसे जेल में ख़ुद दीवार पकड़ पकड़कर चलना पड़ता है कोई उसकी मदद तक नही करता, यदि उससे चला नही जाता तो जेलकर्मी पीछे से डंडा मार तेज़ चलकर जल्दी अपने बैरक में पहुंचने के लिए कहते है, वह फ़र्श पर घिसटते हुए अपने बिस्तर तक पहुंचता है जिसके कारण उसका ज़ख़्म और गहरा हो जाता है और पुलिस की गोली से घायल आरोपियों को ढंग से इलाज नही मिल पाता है साथ वो ख़ुद चलने के लिए संघर्ष करता है तो उसे गोली से मिले ज़ख़्म में सैप्टिक के कारण टांग तक कटवानी पड़ जाती है!
मैं एक बार फिऱ लिख रहा हूँ कि यूपी में 2017 से अब 12,525 एनकाउंटर हुए जिसमे 207 के करीब लोग मारे गये, अपैल 2023 तक 183 लोग मारे गये जिनमे 59 यानी 32.9% मुसलमान है बाकी दलित ,यादव व अन्य जाति के आरोपी है, एनकाउंटर करने वाले अधिकारियों को या तो प्रमोशन मिकता है या सरकार द्वारा पीठ थपथपा अवार्ड दिया जाता है, पद और अवार्ड के लालच में अधिकारियों के बीच कॉम्पटीशन चल रहा है जिसके कारण वो किसी को भी घर से उठा जंगल में मुठभेड़ दिखा रहे है जिसमें आरोपियों घायल हो जाते है और कुछ की मौत हो जाती है या यूं कहे कि कुछ का एनकाउंटर ही उन्हें मारने के लिए किया जाता है!
मैंने एक दर्जन के क़रीब एनकाउंटर की कहानी पढ़ी है जिसे मैं एनकाउंटर में मारे जाने वालों के नाम के साथ आज रात लिखकर पोस्ट करना चाहता हूँ, यदि आप कुछ एनकाउंटर की हक़ीक़त नाम के साथ पढ़ना चाहते है तो कमेंट में बता दीजिएगा मैं उस पर भी अपना काम शुरू कर दुंगा!