- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- राष्ट्रीय
- /
- अंतर्राष्ट्रीय
- /
- गर्मी से होने वाली...
गर्मी से होने वाली मौतों में भीषण इज़ाफ़ा होने की संभावना: द लैंसेट काउंटडाउन
विश्व विख्यात मेडिकल जर्नल द लैंसेट की एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इस सदी के मध्य तक वैश्विक स्तर पर गर्मी से संबंधित मौतों में 4.7 गुना इज़ाफ़ा होने की संभावना है।
द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज की 8वीं वार्षिक रिपोर्ट में, सीधे तौर पर कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक निष्क्रियता के कारण स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ रहे हैं और अगर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ता है तो इसके गंभीर परिणाम होने की आशंका है।
स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर वार्षिक लैंसेट काउंटडाउन 50 से अधिक संस्थानों के शोध पर आधारित है। इसमें पाया गया है कि आज भी औसत 1.14 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-2022 में, व्यक्तियों ने प्रति वर्ष औसतन 86 दिनों की खतरनाक गर्मी को सहन किया, जिसमें से 60% से अधिक अत्यधिक गर्मी की घटनाएं मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण दोगुनी हो गईं।
साल 2013-2022 में 1991-2000 की तुलना में 65 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी में गर्मी से संबंधित मौतों में 85% की वृद्धि हुई है और यह सीधे तौर पर गर्मी के घातक प्रभाव को दिखाता है। चरम मौसम के कारण भी भूख की समस्या भी बढ़ रही है। रिपोर्ट की मानें तो साल 1981-2010 की तुलना में 2021 में 127 मिलियन अधिक लोगों को कुपोषण का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट में भविष्य में 2°C से अधिक गर्म होने वाली दुनिया के लिए अपनी सबसे सख्त चेतावनियाँ सुरक्षित रखी हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि सदी के मध्य तक वार्षिक गर्मी से होने वाली मौतों में 370% की वृद्धि हो सकती है, जबकि 500 मिलियन से अधिक लोग कुपोषण का अनुभव कर सकते हैं।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की प्रमुख लेखिका डॉ. मरीना रोमानेलो ने कहा, "हमारे अनुमानों से जलवायु कार्रवाई में और विलंब होने से स्वास्थ्य के लिए गंभीर और बढ़ते खतरे का पता चलता है।"
अध्ययन में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में गिरावट को भी उजागर किया गया है। साल 2005 के बाद से इन मौतों में 16% की कमी आई है। साथ ही, क्लीन एनेर्जी में निवेश भी पिछले साल 15% बढ़कर 1.6 ट्रिलियन डॉलर हो गया।
लेकिन इसके साथ ही रिपोर्ट में तेल और गैस कंपनियों को ऋण दिये जाने की आलोचना की गई है। यह ऋण साल 2017-2021 में $572 बिलियन तक पहुंच गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि फोस्सिल फ्यूल को मिलने वाली सब्सिडी को क्लीन एनेर्जी और स्वास्थ्य संबंधी निवेशों की ओर पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिए।
कुल मिलाकर, रिपोर्ट आगामी संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में नेताओं पर एमिशन में कटौती और समान रूप से क्लीन एनेर्जी में ट्रांज़िशन के लिए निर्णायक रूप से कार्य करने के लिए दबाव डालती है। यह स्वच्छ हवा और पानी, बेहतर आहार और अधिक रहने योग्य शहरों जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभों की रूपरेखा तैयार करता है।
रिपोर्ट के सह-लेखक प्रोफेसर स्टेला हार्टिंगर ने कहा, "जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों से निपटा जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वास्थ्य संबंधी खतरे अनुकूलन क्षमता का उल्लंघन न करें।" उन्होने आगे चेतावनी दी कि "अगर सरकारें अंततः कार्रवाई शुरू नहीं करतीं तो चीज़ें बहुत अधिक बदतर हो जाएंगी।"