- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
Russia-Ukraine War: UNSC में भारत ने क्यों नहीं किया रूस का विरोध? क्या ये थी वजह?
Russia-Ukraine War: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) में भारत ने रूस के खिलाफ लाए प्रस्ताव से दूरी बना ली। इस प्रस्ताव में यूक्रेन के खिलाफ रूस के हमले की निंदा की निंदा की गई थी और यूक्रेन से रूसी सेना की "तत्काल, पूर्ण और बिना शर्त" वापसी की मांग की गई थी. लेकिन रूस ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वीटो कर दिया और ये प्रस्ताव गिर गया।
जब वोटिंग हुई तो भारत ने इसमें हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया। उधर रूस के बेहद करीब आ चुके चीन ने भी भारत की तरह वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति से भारत के बेहद करीब आ चुके सऊदी अरब ने भी यही फैसला लिया। रूस ने वीटो का इस्तेमाल किया। निंदा प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
इसके बाद यूएन महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने बेबसी वाला ट्वीट किया - यूएन का गठन युद्ध के बाद युद्ध समाप्त करने के लिए हुआ था। आज वो उद्देश्य हासिल नहीं हो सका, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए, हमें शांति को एक और मौका देना चाहिए। वैसे भारत और चीन वोट करते भी तो फर्क नहीं पड़ता क्योंकि रूस के पास खुद ही वीटो पावर है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण है अमेरिका और नाटो देशों के दबाव में न आना। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन समेत पश्चिमी नेता पीएम मोदी से तटस्थता छोड़कर पुतिन की आलोचना करने का दबाव बना रहे थे। भारत के लिए कूटनीतिक परीक्षा की घड़ी थी क्योंकि यूक्रेन पर हमले से यूएन चार्टर का उल्लंघन हुआ है। इसलिए भारत ने वोट न करने को जो कारण बताए उसके साथ-साथ ये भी कहा कि युद्ध से किसी मसले का हल नहीं निकल सकता।
यूएन में भारत के प्रतिनिधि तिरुमूर्ति ने एक स्पष्टीकरण जारी किया। इसके मुख्य बिंदु इस तरह हैं। 1. यूकेन के मौजूदा हालात पर भारत गहरी चिंता व्यक्त करता है 2. हम सभी पक्षों से हिंसा और शत्रुता जल्दी खत्म करने की अपील करते हैं 3. मानव जीवन की कीमत पर कोई निदान नहीं निकल सकता 4. यूक्रेन में फंसे भारतीयों की सुरक्षा को लेकर हम बहुत चिंतित हैं 5. मौजूदा वैश्विक व्यवस्था यूएन चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और देशों की संप्रभुता के सम्मान के आधार पर बनी है 6. सभी देशों को इन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए 7. कूटनीति का रास्ता छोड़ देना निंदनीय है, हमें इसी रास्ते पर लौटना चाहिए 8. इन सभी कारणों से भारत इस प्रस्ताव पर वोटिंग से अनुपस्थित रहने का फैसला करता है।
अखंडता - संप्रभुता को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने की जरूत
हमारे देश ने जो कारण बताए हैं वो डोन्टेस्क और लुहांस्क के रूस में शामिल किए जाने के बाद के मद्देनजर देखें तो तस्वीर थोड़ी साफ हो सकती है। दरअसल ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इसे देखने की जरूरत है जिसकी तरफ पुतिन भी उंगली उठाते आए हैं। नाटो के विस्तार को पुतिन रूस की संप्रभुता पर हमला करार देते आए हैं। चीन की तरफ से तुरंत तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन पिछले दिनों जब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग से पूछा गया था तब जवाब कुछ ऐसा ही था। उन्होंने यूक्रेन के भीतर स्पेशल आर्मी ऑपरेशन पर कहा इसका ऐतिहासिक संदर्भ काफी पेचीदा है और मौजूदा हालात सभी तरह के फैक्टर्स के कारण बने हैं। भारत और चीन ने ब्लैक एंड वाइट की तरह तस्वीर साफ करते हुए स्टैंड नहीं लेकर अपनी प्राथमिकताओं को तरजीह दी है।
हो सकता है भारत और चीन के इस कदम की आलोचना की जाए। लेकिन ये अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में टैक्टोनिक शिफ्ट का काल है। चीन से जूझ रहे अमेरिका का फोकस अब यूरोप बन गया है। वो एक साथ एशिया और यूरोप में पंगा नहीं ले सकता। शीत युद्ध काल की वापसी से एशिया - प्रशांत क्षेत्र की कूटनीति भी फ्लैशबैक में जा सकती है। ये सच्चाई है कि चीन से निपटने के लिए क्वाड का गठन किया गया। ये भी सच्चाई है कि रूस-चीन-भारत की ग्रुपिंग RIC भी है जिसे 1990 के दशक में रूस की पहल पर बनाया गया था। ब्रिक्स में भी भारत और चीन साथ है। हालांकि किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी लेकिन यूक्रेन वॉर ने अचानक वैश्विक सामरिक नक्शे में बदलाव कर दिया है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
भारत और रूस के बीच 10 अरब डॉलर का व्यापार होता है जो अमेरिका से कहीं कम है लेकिन रक्षा जरूरतों के लिए रूसी मदद हमेशा मिलती रही है। ब्रह्मोस, एस-400 एंटी मिसाइल सिस्टम, टी-90 टैंक, फाइट जेट्स, परमाणु पनडुब्बी.. सेना के तीनों अंगों को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने में रूस मदद करता रहा है। तक उधर रूस-चीन के बीच 110 अरब डॉलर का व्यापार होता है। वहीं भारत और चीन के बीच 125 अरब डॉलर का कारोबार है जो अमेरिका से ज्यादा है। चीन दुनिया की दूसरी और भारत छठी सबसे बड़ी इकॉनमी है। अगर चीन लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक सीमा पर अपनी हरकतों से बाज आए तो RIC ग्रुपिंग को नया जीवन मिल सकता है।