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आर्थिक तबाही से गुज़रती दुनिया के बीच मस्त मौला बना हुआ है भारत
टर्की की मुद्रा लीरा जीरा हो गई है।।डॉलर को सामने देखते ही कांपने लग जाती है। वहां की महंगाई ने छप्पर फाड़ने के बाद आसमान भी नहीं छोड़ा और अब अंतरिक्ष की तरफ निकल गई है। मुद्रा स्फीति की दर 80 प्रतिशत हो गई है।
इस्तांबुल टर्की का महत्वपूर्ण शहर है। अंकारा राजधानी है। इस्तांबुल के मेयर विपक्षी दल के नेता हैं। वे चीख रहे हैं कि अर्दोगन ने अपने बिज़नेस मित्रों को फायदा पहुंचा रहे हैं। मुद्रा स्फीति को रोकने के लिए ब्याज़ दरों में कटौती की जा रही है ताकि उन्हें सस्ती दरों पर कर्ज़ मिल सके। मेयर एकरम इमामोगुल बिज़नेस लीडरों को ललकार रहे हैं कि जनता सड़क पर खाने-पीने की चीज़ों के लिए तरस रही है, अब तो बोलिए।मेयर एकरम कह रहे हैं कि बिज़नेस समुदाय डर गया है कि बोलने पर जांच शुरू हो जाएगी। जेल भेज दिए जाएंगे। क्या ऐसा ही आप भारत में नहीं सुनते!
बिज़नेस लीडर अब जनता के लिए नहीं बोलेंगे।भारत में भी बिज़नेस लीडर नहीं बोलेंगे, जैसे 2014 के पहले बोला करते थे। श्रीलंका इसी यारबाज़ी में डूबा। टर्की के ताकतवर अर्दोगन ने पूरे देश को अदहन की तरह खदका दिया है।आर्थिक नीतियों को समझना आसान नहीं है। दुनिया एक गिरोह की चपेट में है जो एक ही तरह की नीतियों को लागू करवा कर आम जनता को लूट रहा है। आप विकास के नाम पर फ्लाईओवर और स्टेशन की इमारत से ही मोहित हैं। ट्रेन के भीतर की हालत पर नज़र डालने का वक्त ही कहां है।
आज ही समझ लें, इसकी कोई जल्दी नहीं है, दस बीस साल का टाइम लीजिए। उसके बाद आपको यही समझना कि बिज़नेस समूहों के लिए इंसान अब मच्छर हो गया है। वो भूख और महंगाई से मरता रहे, यही उसके हित में है। मुनाफा को चंद मुट्ठियों में समेटा जाना है,तभी तो आप पढ़ते हैं कि दुनिया भर की आधी आबादी की संपत्ति के बराबर चंद लोगों के पास पूंजी और संपत्ति हो गई है।
अमरीका के एक अर्थशास्त्री ने राय दी है कि बेरोज़गारी बढ़ा दी जानी चाहिए। इससे महंगाई नहीं बढ़ेगी, जब पैसा नहीं होगा तब ख़र्च कैसे होगा। अग्निवीर दौड़ते ही रहेंगे। किसे पता चलेगा कि कौन क्या कह रहा है। आप उस अर्थशास्त्री की बात पर हंसेंगे। उसे मूर्ख कहेंगे। मूर्ख आप हैं। ऐसी बातें बारीक तरीके से कहने वालों का गिरोह बहुत बड़ा हो चुका है।वो आप पर हंसेंगे।
यूक्रेन युद्ध थमा नहीं है मगर बजट बन रहा है कि यूक्रेन को फिर से खड़ा करने के लिए 750 अरब डॉलर की ज़रूरत पड़ेगी। इस युद्ध के कारण जर्मनी का व्यापार घाटा बढ़ने लगा है। गैस और पेट्रोल के आयात की लागत बढ़ने लगी है। जर्मनी हाहाकार की तरफ जा रहा है।
अभी तक विरोधी ही पकड़े जा रहे थे, रूस में व्लादिमीर माऊ को गिरफ्तार किया गया है। व्लादिमीर माऊ पुतिन के मित्रों में से हैं। रूस में एक ही कंपनी गज़प्रोम का गैस के कारोबार पर एकाधिकार है। इसके निदेशक मंडल में व्लादिमीर का चुनाव हुआ था। चुनाव के बाद जेल में डाल दिए गए। उन पर फ्राड के आरोप लगा दिए गए हैं। जब रुस से यूक्रेन पर हमला किया तब रुस की 260 यूनिवर्सिटी के प्रमुखों ने हस्ताक्षर कर व्लादिमीर पुतिन का समर्थन किया। व्लादिमीर माऊ भी उनमें से एक हैं। बंद कमरे में कभी-कभी अलग राय रखते रहे हैं लेकिन पुतिन के मित्र और समर्थक रहे हैं।
विरोधी से लेकर मित्रों तक को जेल में डालो, फ्राड नया हथियार है, इसके ज़रिए कभी विपक्ष की गर्दन काटो तो कभी अपने मित्रों की, ताकि सब भय में रहे। किसी के बोलने की संभावना बची न रहे। ध्यान से देखा कीजिए, दुनिया भर में क्या हो रहा है, अपने देश में क्या हो रहा है, इसे ध्यान से देखने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि पहले दुनिया में होता है, फिर यहां होता है।
फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा है कि रूस में बंद दरवाज़े के भीतर अलग राय रखने की भी अनुमति नहीं है। मित्र होना काफी नहीं है। पुतिन को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि किसी को जेल में डाल देने पर जनता नाराज़ हो जाएगी।पुतिन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने में लगे हैं। भारत में तो अभी निजीकरण हो रहा है।क्या पता इसका भी वक्त आ जाए और लोग तारीफ में जुट जाएं कि पुतिन ने किया था, वही मॉडल अपनाया जा रहा है।
बहुत सारे लोग रुस छोड़ कर भाग रहे हैं। बिज़नेसमैन और अकादमिक जगत के लोगों ने भागना शुरू कर दिया है।भारत से भी आठ हज़ार अमीर लोग देश छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। आखिर कितने लोग जेल में डाल दिए जाने के डर से भाग रहे हैं। जो बचेंगे वे भी समर्थन की जेल में रहेंगे, जहां उन्हें पेट भरने के लिए मुट्ठी भर अनाज ही मिलेगा, बाकी समर्थन करते रहना पड़ेगा। इसे समर्थन की जेल कहते हैं।
कहानी ख़त्म नहीं हुई है। श्रीलंका, पाकिस्तान, टर्की, यूक्रेन ही बर्बाद नहीं हुए हैं।अर्जेंटीना की भी हालत ख़राब है। वहां के इकोनमी मंत्री ने इस्तीफा दे दिया।मामला नहीं संभला। नया कोई आना नहीं चाहता तो कहीं से किसी को पकड़ कर लाया गया है। अर्जेंटीना की मुद्रा पेसो भी डॉलर के आगे लड़खड़ा गई है। महंगाई भयंकर है और बाज़ार में लगाया हुआ पैसा डूब रहा है।अर्जेंटीना भी श्रीलंका और पाकिस्तान की तरह घूम-घूम कर पैसा मांग रहा है। पैसा है नहीं।
भारत की तरह अर्जेंटीना में भी पेंशन फंड है। जिसे बाज़ार में लगाया जाता है ताकि उसके बढ़ने से लोगों को पेंशन मिलेगी। खबर है कि शीर्ष पेंशन फंड ने कहा है कि वह शेयर बाज़ार में कम पैसा लगाएगा क्योंकि बाज़ार की हालत ठीक नहीं है। 2008 के बाद पेंशन फंड को घाटा हुआ है। इसका कहना है कि बाज़ार में गिरावट का दौर अभी लंबा चलेगा।जापान की भी हालत खराब है। उसकी मुद्रा येन भी कमज़ोर हो गई है। महंगाई काफी बढ़ गई है।
सारी सूचनाएं फाइनेंशियल टाइम्स से ली गई हैं। इसमें भारत की एक भी ख़बर नहीं थी। अमरीका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, अर्जेंटीना,टर्की की ख़बर थी। लगता है भारत में सब ठीक है। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में मीम की सप्लाई जारी है। इतने बड़े देश में कोई न कोई कांड कर ही देता है जिससे लोगों का टाइम हिन्दू मुसलमान की बहस में कटने लगता है। इस डिबेट से भारत ने आर्थिक संकट को टाल दिया है। संकट है भी तो लोगों के दिमाग़ में नहीं है। लेख लंबा हो गया।आपको तो मीम पढ़ने की आदत है। लगे रहिए।
रवीश कुमार
रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।