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लिपुलेख पर समझौते को तैयार नेपाल के PM, पर भारत के सामने रखी ये शर्त
नेपाल में लिपुलेख और कालापानी क्षेत्र को लेकर भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर बहस और तेज हो गई है. नेपाल में सड़क से लेकर संसद तक इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने लिपुलेख में भारत के सड़क बनाने को लेकर बुधवार को एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई. इस बैठक में तमाम सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल हुए.
उत्तराखंड के लिपुलेख में शुक्रवार को भारत ने कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का उद्घाटन किया था. भारत के इस कदम की नेपाल की सत्तारूढ़ और विपक्ष पार्टियों के नेताओं ने एकसुर में आलोचना की है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बुधवार को हुए बैठक में कहा कि भारत नेपाली क्षेत्र में बनी सड़क का इस्तेमाल भले कर ले लेकिन वह अपनी जमीन नहीं छोड़ेगा.
नेपाल वर्कर्स ऐंड पीजेंट्स पार्टी के सांसद प्रेम सुवल के मुताबिक, पीएम ओली ने सभी नेताओं को आश्वस्त किया है कि सरकार अपने देश की जमीन भारत के लिए नहीं छोड़ देगी.
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने कहा, प्रधानमंत्री ने बैठक में कहा कि सरकार अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित की गई जमीन को हर हाल में सुरक्षित करेगी. हालांकि, ओली ने नेताओं को आगाह किया कि बाहर से आ रहीं सूचनाओं के आधार पर अपना नजरिया ना तय करें.
नेपाल के विदेश मंत्री ग्यावली के मुताबिक, सभी नेताओं ने पीएम ओली ने कूटनीतिक तरीकों से लिपुलेख समस्या का समाधान निकालने की अपील की है.
पीएम ओली ने कहा कि भारत इस मामले में सुस्ती दिखा रहा है. भारत ने कहा है कि कोरोना महामारी के अंत के बाद ही इस विषय पर वार्ता की जानी चाहिए. इस पर नेपाल के विदेश मंत्री ने कहा था कि वह वार्ता के लिए कोरोना वायरस संकट के खत्म होने का इंतजार नहीं कर सकता है.
इससे पहले, जब भारत सरकार ने देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था तो कालापानी, लिपुलेख और लिमियाधुरा को उत्तराखंड में दिखाए जाने को लेकर नेपाल ने आपत्ति जताई थी. नेपाल के प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी.
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने पहले ही बयान जारी कर लिपुलेख में सड़क निर्माण को लेकर विरोध दर्ज करा दिया है. विदेश मंत्रालय ने भारत के 'एकतरफा कदम' को लेकर अफसोस जाहिर किया और कहा कि नेपाल के क्षेत्र में उसे किसी भी तरह की गतिविधि करने से बचना चाहिए. नेपाल ने भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को भी समन किया था और इस मामले पर नेपाल के रुख को स्पष्ट किया था.
नेपाल का कहना है कि 1816 की सुगौली संधि के तहत महाकाली नदी का पूर्वी हिस्सा (कालापानी, लिपुलेख, लिम्पियाधौरा) नेपाल के अधिकारक्षेत्र में आते हैं. 2015 में जब भारत और चीन द्विपक्षीय व्यापार मार्ग के लिए लिपुलेख में सड़क बनाने पर राजी हुए तो उस वक्त भी नेपाल ने आपत्ति जताई थी. हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया है कि सड़क निर्माण भारतीय क्षेत्र में ही हुआ है लेकिन नेपाल से करीबी संबंध को देखते हुए इस मुद्दे का समाधान राजनयिक वार्ता के जरिए निकालने की कोशिश की जाएगी.