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जलवायु एवं पर्यावरण कार्यकर्ताओं के खिलाफ बढ़ रही है ऑनलाइन और ऑफलाइन नफ़रत
जहां एक ओर जलवायु से जुड़ी चिंताएँ बढ़ रही हैं और सरकारों की प्राथमिकता में यह विषय शामिल हो रहा है, वहीं एक परेशान वाले घटनाक्रम में पता चल रहा है कि जलवायु संरक्षण के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं और संगठनों के खिलाफ हिंसा एक आम चलन बनती जा रही है।
इस बात का पता चला क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफॉरमेशन (सीएएडी) की ताज़ा रिपोर्ट से। एक जनवरी 2022 से 30 नवंबर 2023 के बीच की तस्वीर पेश करती इस वैश्विक रिपोर्ट से जाहिर होता है कि विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ताओं के खिलाफ किस तरह की हिंसक भाषा और शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए उन पर सुरक्षा के लिए खतरा होने का ठप्पा लगाया जा रहा है। इससे जलवायु कार्यकर्ताओं की सुरक्षा खतरे में पड़ने की आशंका है। साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से संबंधित सूचनाएं हासिल करने के जनता के अधिकार पर भी बुरा असर पड़ सकता है। इतना ही नहीं, इससे कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों की अभिव्यक्ति की आजादी के लिए भी गंभीर खतरा पैदा होता है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष कुछ इस प्रकार हैं:
आपत्तिजनक फब्तियां और सुरक्षा के प्रति खतरे की बातें: पड़ताल के दौरान सोशल मीडिया मंच एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर 220000 से ज्यादा पोस्ट में जलवायु कार्यकर्ताओं और संगठनों को आपत्तिजनक शब्दों जैसे 'क्लाइमेट कल्ट' (65 हजार से ज्यादा पोस्ट) और 90 हजार से ज्यादा पोस्ट में जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए 'इको टेररिस्ट' (34 हजार से ज्यादा पोस्ट) जैसे निहायत आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।
अमानवीय भाषा के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी: पिछले दो वर्षों के दौरान हालांकि इस तरह की पोस्ट में नाटकीय रूप से कोई वृद्धि नहीं हुई है लेकिन उन पर दिए गए कार्यकर्ताओं के प्रति अमानवीय शब्दों वाले जवाबों की संख्या में दोगुनी से ज्यादा की वृद्धि हुई है।
ऑनलाइन वायलेंस नॉर्मलाइजेशन: रिपोर्ट उस विरोधाभास को उजागर करती है जहां नागरिकों से बेहतर भविष्य को आकार देने के लिए जलवायु सक्रियता में शामिल होने की उम्मीद की जाती है लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट रूपी सजा भी दी जा रही है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ हिंसा सामान्य होती जा रही है, जिससे जलवायु कार्रवाई की पैरवी करने वालों की सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
जहर का फैलाव: जहां यह माना जा रहा था कि इस तरह की सामग्री कुछ मंचों तक ही सीमित होगी, वहीं इसके बरअक्स यह रिपोर्ट दिखाती है कि मुख्यधारा के सोशल मीडिया मंचों पर हाई ट्रैक्शन अकाउंट्स के जरिये हिंसक बयानबाजी आसानी से उपलब्ध है। लिहाजा यह एक व्यापक मुद्दा बन गया है जिस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है।
विभिन्न मंचों पर परोसा जा रहा अनादर: फेसबुक और इंस्टाग्राम पर 35000 अनूठे अकाउंट से 68000 से भी ज्यादा पोस्ट की गई है जिनमें अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा इस कंटेंट को 1.86 मिलियन बार शेयर भी किया गया है। दूसरी ओर टिकटाॅक के कड़े नियमों की वजह से कूट भाषा में की गई हिंसा में बढ़ोतरी हुई है इसमें यह हरकत करने वाले लोग अपनी पहचान छुपाकर अपमानजनक व्यंग्य कर रहे हैं।
इन परेशान करने वाले निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया देते हुए क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफॉरमेशन ने जिम्मेदारी पूर्ण ऑनलाइन विमर्श के महत्व को दोहराया है और डिजिटल मंचों का आह्वान किया है कि वे जलवायु कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा को एक आम चलन बनाने की इन कोशिशों पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए मुस्तैदी भरे कदम उठाएं।
यह मूलभूत मानवाधिकारों का मामला है। जुलाई 2022 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पारित किया था कि स्वच्छ, स्वस्थ और सतत वातावरण हासिल करना एक मानवाधिकार है। यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति और मत प्रस्तुत करने के अधिकार को मान्यता दी गई है। साथ ही साथ यह भी खुलासा हुआ है कि जीवाश्म ईंधन के पक्ष में लामबंदी करने वाले लोगों को रिकॉर्ड संख्या में कॉप 28 में शिरकत करने की इजाजत दी गई है। ऐसे में जलवायु कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा को एक आमचलन बनाए जाने से उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बुरा असर पड़ेगा।
जैसा कि सीएएडी पालिसी आस्क्स में रेखांकित किया गया है, हम डिजिटल मंचों से आग्रह करते हैं कि वे अपने उत्पाद को हथियार बनाए जाने और उसका दुरुपयोग किए जाने से संबंधित डाटा को प्रकाशित करें। इस आधार पर इन मंचों को सिविल सोसाइटी के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि जलवायु संबंधी गलत सूचनाओं, नफरत भरे भाषणों और उस सामग्री से निपटने के लिए एक ठोस योजनाएं बनाई जा सके जिससे जन सुरक्षा को खतरा पैदा होता है।