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Prime Minister Narendra Modi becomes Hanuman:"श्रीलंका के लिए संकटमोचक हनुमान बने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी"
श्रीलंका में भयंकर आर्थिक संकट के बीच विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी तो मोदी ने वो कर दिखाया जो किसी भी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री ने नहीं कर पाया।
घटते विदेशी भंडार और ईंधन और भोजन की भारी कमी के साथ कर्ज में डूबा श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बुरे आर्थिक संकट (Sri Lanka Crisis) का सामना कर रहा है. जनता को ईंधन और रसोई गैस के लिए लंबी कतारों में खड़े होने के साथ-साथ अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है. देश में जारी भयंकर आर्थिक संकट के बीच श्रीलंका में विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी है. उन्होंने पीएम मोदी को एक संदेश भेजते हुए कहा, 'कृपया कोशिश करें और श्रीलंका की यथासंभव मदद करें. यह हमारी मातृभूमि है, हमें अपनी मातृभूमि को बचाने की जरूरत है. ऐसे समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हनुमान की भूमिका का निर्वहन करते हुए यथासंभव मदद देने की पेशकश की है।
*जानिए क्यों कंगाल हुआ श्रीलंका*
अब जहां श्रीलंका की आधी कैबिनेट इस्तीफा दे दी है, लोग सड़कों पर आ गए हैं, श्रीलंका पछता रहा है कि यदि वे चीन के झांसे में नहीं आया होता तो उसकी सोने की लंका कंगाल नहीं हुई होती।श्रीलंका अव्यवहार्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए चीन से उधार लेने और ऋण वापस करने में असमर्थ होने के जाल में फंस गया, जिसके परिणामस्वरूप श्रीलंका ने या तो परियोजनाओं का नियंत्रण छोड़ दिया गया है या चीन को चुकाने के लिए ऋण ले लिया. इसके अलावा चीनी ऋण का उपयोग न केवल हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो पोर्ट सिटी जैसी बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए, बल्कि सड़कों और जल उपचार संयंत्रों के लिए भी किया गया था. श्रीलंका में आर्थिक संकट और तेज हो गया, क्योंकि कोरोना वायरस महामारी ने अपने मुख्य क्षेत्र यानी पर्यटन को धीमा कर दिया, जिसने बदले में इसके विदेशी मुद्रा संकट को बढ़ा दिया.श्रीलंका की आर्थिक बदहाली की बड़ी वजह विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट है. श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में 70 फीसदी की गिरावट आई है. फिलहाल श्रीलंका के पास 2.31 अरब डॉलर बचे हैं. विदेशी मुद्रा के रूप में सिर्फ 17.5 हजार करोड़ रुपये ही श्रीलंका के पास हैं. श्रीलंका कच्चे तेल और अन्य चीजों के आयात पर एक साल में खर्च 91 हजार करोड़ रुपये खर्च करता है. खर्च 91 हजार करोड़ रुपये का है, लेकिन श्रीलंका के पास सिर्फ 17.5 हजार करोड़ रुपये ही है. ईंधन आयात के लिए ज़रूरी विदेशी मुद्रा में भारी कमी आर्थिक संकट की सबसे बड़ी वजह है. देश बिजली कटौती, खाने पीने के सामान, ईंधन और दवाओं की कमी से जूझ रहा है. आवश्यक वस्तुओं की किल्लत की वजह से कीमतें आसमान छू रही हैं. कोरोना और ईस्टर बम धमाके के कारण टूरिज्म ठप और आय का बड़ा हिस्सा टूरिज्म से आता था.
*मोदी ने आगे आकर संभाला मोर्चा*
ऐसे समय में मोदी ने खुद आकर मोर्चा संभाल लिया है और मोर्चा संभालने के साथ ही साथ श्रीलंका को चीन के चंगुल से बचाने की भी कवायद शुरू कर दी है। भारत ने श्रीलंका की मदद के लिए दो रणनीतियों पर काम शुरू कर दिया है, पहली रणनीति के तहत श्रीलंका में चीन के प्रभाव को रोकना है तो दूसरी रणनीति में श्रीलंका की अर्थव्यस्था को जल्द से जल्द पटरी पर लाने की है। श्रीलंका जो प्रोजेक्ट चीन को देने वाला था , जिसमें हाइब्रिड प्रोजेक्ट अहम था उसको अब भारत ने ले लिया है, जिस कोर्टसिटी पर चीन ने कब्जा कर लिया, अब उस कोर्टसीटी पर भारत ने काम करना शुरू कर दिया है। संचार और पेट्रोलियम जैसे महत्वपूर्ण चीजों पर भी भारत ने काम शुरू कर दिया है। श्रीलंका की सबसे बड़ी समस्या वहां की भूखी जनता को बचाने की है तो आइए हम बताते हैं कि भारत ने क्या किया है, भारत ने सबसे पहले अनाज, तेल भेज दिया है और 1.5 अरब डॉलर कपड़ा, ईंधन , दवाओं के लिए दिया है, अब भला इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। हमारे देश के प्रधानमंत्री ने जो कर दिखाया वास्तव में वह अकथनीय है।
*भारत न केवल श्रीलंका बल्कि अन्य देशों की भी मदद कर चुका है*
भारत न केवल श्रीलंका बल्कि यूक्रेन की भी मदद कर चुका है। भारत की रणनीतिक क्षमता कहिए की अमेरिका,रूस, जापान ,चीन जैसे देश भारत का चक्कर लगा चुके हैं । भारत अब पूरी तरह से श्रीलंका को चीन से बचाना चाहता है तो श्रीलंका को भी समझ आ चुका है कि सभी देश उसका इस्तेमाल करेंगे केवल भारत ही है जो उसकी मदद कर सकता है, ऐसे समय में भारत ने श्रीलंका की मदद करके विश्व पटल पर अपना जगह बना लिया है। अब यह कहना बिल्कुल सही होगा की श्रीलंका के लिए नरेंद्र मोदी हनुमान हैं जो विपत्ति में लोगों की मदद करते हैं।