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संजय रोकड़े
श्रीलंका के आम चुनावों में राजपक्षे परिवार के श्रीलंका पीपुल्स फ्रंट (एसएलपीपी) ने दो-तिहाई बहुमत से एक बार फिर जीत हासिल की है। पार्टी ने कुल 225 में से 145 सीटें जीती हैं जबकि पांच सीटें श्रीलंका पीपुल्स फ्रंट की सहयोगी पार्टियों को मिली हैं।
बता दे कि श्रीलंका में एसएलपीपी ने 9 महीने पहले राष्ट्रपति का चुनाव भी जीता था उसके बाद गोटब्या राजपक्षे ने 18 नवंबर को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। आपको विदित होवे कि बीते दो दशक से श्रीलंका की राजनीति में विवादित राजपक्षे परिवार का दबदबा रहा है।
काबिलेगौर हो कि श्रीलंका में 5 अगस्त बुधवार को मतदान हुआ जबकि 6 अगस्त गुरुवार को वोटों की गिनती हुई और 7 अगस्त शुक्रवार सुबह आधिकारिक तौर पर नतीजों का ऐलान किया गया।
श्रीलंका कोरोना वायरस महामारी के दौर में चुनाव कराने वाले गिने-चुने देशों में से एक है, हालांकि वहां महामारी के कारण दो बार मतदान की तारीख स्थगित की जा चुकी थी।
सनद रहे कि नतीजे घोषित होने से कुछ वक्त पहले महिंदा राजपक्षे ने ट्वीट में लिखा कि इस जीत का श्रेय श्रीलंका की जनता को जाता है। इसके साथ ही उनने कहा कि तमाम देशों से शुाकामना संदेश और बधाईयां दी जा रही है। महिंदा राजपक्षे इससे पहले वर्ष 2005 से 2015 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे थे।
श्रीलंका में यह जीत राजपक्षे परिवार की यह वाकई एक बड़ी जीत है। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के सिर्फ नौ महीने में गोटब्या राजपक्षे ने अपने गठबंधन को दो-तिहाई बहुमत से जीत दिलाई है। इस जीत के कारणों पर गौर फरमाए तो एक ही सच सामने आता है कि राजपक्षे बंधु अपने भदेसपन की वजह से श्रीलंका की सिंहली जनता के बीच काफी लोकप्रिय है।
सिंहली लोग श्रीलंका की आबादी का चौथाई हिस्सा हैं जो राजपक्षे को साल 2009 में अलगाववादी संगठन तमिल टाइगर्स का अंत करने का श्रेय देते है। उस वक्त राजपक्षे श्रीलंका के रक्षा सचिव हुआ करते थे। श्रीलंका में एक बड़ा तबका है जो ये मानता है कि उनके सत्ता में होने से श्रीलंका की सरकार को स्थिरता मिलती है।
हालाकि दूसरा पक्ष राजपक्षे परिवार पर मनमानी करने के आरोप भी लगाते रहा है। बता दे कि गोटब्या राजपक्षे पर गृह-युद्ध के दौरान मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगे थे और कहा गया था कि गोटब्या ने विरोध में उठने वाली आवाजों को निशाना बनाया था। हालांकि उन्होंने हमेशा ही ऐसे आरोपों को खारिज किया है, लेकिन इन आरोपों ने अब तक उनका पीछा भी नहीं छोड़ा है।
याद रहे कि चुनाव के दौरान बढ़ते सिंहली राष्ट्रवाद ने श्रीलंका के अल्पसंख्यक समुदायों को चिंतित भी कर दिया था। मुस्लिम नेताओं का कहना है कि उनके समुदाय को अभी भी उस गुस्से का सामना करना पड़ रहा है जो पिछले साल ईस्टर पर कुछ इस्लामिक चरमपंथियों द्वारा किये गए बम धमाकों के बाद पैदा हुआ था। उन बम धमाकों में 260 से अधिक लोग मारे गये थे।
इस जीत के बाद से अशंका जाहिर की जा रही है कि श्रीलंका के आम चुनाव में प्रचण्ड बहुमत मिलने के बाद राजपक्षे परिवार श्रीलंका का संविधान बदलने और राष्ट्रपति की शक्तियों को बढ़ाने का प्रयास कर सकता है ताकि पिछली सरकार द्वारा बनाये गए नियम-कायदों को बदला जा सके।
इधर सामाजिक कार्यकर्ता पहले से ही असंतोष और आलोचना के लिए कम हो रही जगह को लेकर भयभीत हैं। उन्हें डर है कि यह स्थिति कहीं धीरे-धीरे और गंभीर तानाशाही का रूप ना ले ले।
नतीजों के अनुसार, पूर्व राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा के बेटे के नेतृत्व में बना एक नया समूह अब श्रीलंका में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभर कर आया है। रणसिंघे की 1993 में हत्या कर दी गई थी।