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बुशरा इरम
अफगानिस्तान जिस के विकास में भारत का बहुत बड़ा योगदान रहा है, आजकल दो कारणों से चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। पहली तालिबान की वापसी और दूसरा तालिबान के द्वारा शरिया कानून के लागू किए जाने की घोषणा। जब से तालिबान ने शरिया कानून को लागू करने का एलान किया है लोग शरिया के निजाम को खोफ व आतंक के नजरिए से देखने लगे हैं। इस कानून को औरतो व दूसरे धर्मो के लिए विनाश व समाप्ति का माध्यम समझने लगे हैं। ऐसे मे इस बात को समझना आवश्यक हो जाता है की शरिया कानून का जो स्वरूप मीडिया पेश कर रहा है क्या इसलाम भी उसी स्वरूप की अनुमति देता है। या इसलाम के शरिया का स्वरूप मीडिया द्वारा दर्शाए जा रहे तालिबानी स्वरूप से अलग है। इसलाम का शरिया कानून बराबरी के उसूलो पर आधारित है। ऐसी बराबरी जिस मे रंग व नस्ल, धर्म, जात पात, लिंग व नजरिए के आधार पर इंसानों में कोई अंतर नहीं रखा जाता ।
शरिया कानून में जिस चीज को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है वह व्यक्ति का अधिकार है। अधिकार आजाद जिंदगी गुजारने का , अधिकार खयालों की आजादी का, अधिकार समाज में सुरक्षित जीवन व्यतीत करने का ऐसा सुरक्षित जीवन जिसमें आर्थिक स्तर पर सामाजिक स्तर पर खुशहाली का एहसास हो। ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था उपलब्ध हो जहां न्याय असर व रसूख की गुलाम ना हो बल्कि न्याय तक समाज के हर तबके की पहुंच हो। आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार हो जिसमें धन व संपत्ति चंद हाथों में सिमट कर रह जाने से रोकी जा सके ताकि सामाजिक स्तर पर जनता बराबरी का एहसास करे और रोजगार के लिए बहुत सारी संभावनाएं उपलब्ध रहें। प्रचलित लेखक व विद्वान बर्नार्ड शाह से जब पूछा गया के समाज में आर्थिक गैर बराबरी वह परेशानी का क्या कारण है तो उन्होंने अपनी टोपी हटाई और अपने गंजे सर व घनी दाढ़ी के बालों की तरफ इशारा किया जिस का मतलब था संसाधन और धन तो उपलब्ध है मगर उसका वितरण लोगों की आवश्यकता के अनुसार नहीं है ।आज संसार का सबसे बड़ा संकट धन व संपत्ति के वितरण का ही है। जानकार इसे दुनिया में बढ़ती हुई गरीबी का एक मुख्य कारण मानते है इस असमानता के कारण गरीब और गरीब होता जा रहा है जब के अमीरों की दौलत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के अनुसार दुनिया की 1 प्रतिशत आबादी के पास इतनी धनसंपदा है जितनी के शेष 99% लोगों के पास है। यूनाइटेड नेशन के अधिकतर देशों ने दुनिया से निर्धनता को दूर करने के लिए वर्ष 2016, और 2018 में सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अपने प्रोग्राम के
निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए शरिया के आवश्यकता अनुसार धन व संपत्ति के वितरण के उसूल को महत्वपूर्ण माना।
शरिया कानून अगर किसी के सर पर छत नहीं है तो उस छत के इंतजाम का दायित्व उस जगह के प्रशासन पर डालता है और वह सक्षम ना हो तो वहां के निवासियों पर डालता है । शरिया कानून एक व्यक्ति के बेघर रहते हुए दूसरे व्यक्ति को उसके जरूरत से अधिक मकान या घर रखने की इजाजत नहीं देता।
यह सच है शरिया कानून महिलाओं के लिए पर्दे को आवश्यक ठहराता है। लेकिन यह भी सच है कि वह औरतों की सुरक्षा को उतना ही आवश्यक ठहराता है जितनी जिंदगी के लिए सांसे आवश्यक हैं। शरिया कानून औरतों को घूरने उन पर फब्तियां कसने उन्हें छेड़ने पर सजा का प्रावधान करता है। और जब किसी समाज में औरत को घूरने और उस पर फब्तियां कसने और छेड़ने को सजा के अंतर्गत लाया जाता है तो बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देने की हिम्मत कहीं टूटती हुई नजर आती है। और यदि ऐसी कोई घटना घटित हो जाती है तो दोषी व्यक्ति फांसी का हकदार होता है।
शरिया कानून न्याय में विलंब की सख्त मुखालफत करता है इस कानून की आधारशिला है की न्याय में देरी इंसाफ के महत्व को खत्म कर देती है। जहां तक शिक्षा का प्रश्न है तो इस कानून के तहत महिलाओं और पुरुषों दोनों का शिक्षित होना अनिवार्य है क्यों की इस कानून का आरंभ ही शब्द इकरा से हुआ है जिसका अर्थ है पढ़ो।
शरिया कानून के खिलाफ एक भरम यह भी पाया जाता है कि जिस जगह यह लागू किया जाता है वहां पर किसी और मजहब के लिए कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहती या फिर उसके मानने वालों का जीना मुश्किल कर दिया जाता है हालांकि वास्तविकता यह है कि शरिया कानून इस बात को सुनिश्चित करता है कि इस्लाम के साथ साथ दूसरे तमाम मजहब के मानने वालों को बेहतर सुरक्षा प्रदान की जाए उनकी हिफाजत के लिए उनके धार्मिक स्थलों की हिफाजत के लिए खास प्रावधान किए जाएं। शरिया कानून गैर मुस्लिमों के धार्मिक स्थलों की सुरक्षा उनके रखरखाव पर खास जोर देता है। यही वजह है की हमे मुगल काल के मुस्लिम शासक
मंदिरों को और दूसरे धार्मिक स्थलों को जमीने वस्तुएं दान करते हुए नजर आते है।
शरिया किसी के धर्म को जोर जबरदस्ती या जबरन परिवर्तित करवाने का पूर्ण विरोध करता है क्योंकि इसके अनुसार बलपूर्वक अपनाया गया धर्म, धर्म की श्रेणी में नहीं आता। इस प्रकार परिवर्तित किया गया धर्म किसी व्यक्ति की पहचान नहीं बनता बल्कि वह व्यक्ति उसी धर्म से संबंधित किया जाता है जिस का वह पहले अनुसरण करता था।
शरिया कानून में प्रशासन के निर्वहन के लिए उन लोगों का चुनाव किया जाता है जो समाज के प्रति अपने दिल में नरम गोशा रखते हैं, अच्छे व्यवहार के मालिक होते हैं और यह व्यवहार उनके कार्यों से उनके अमल से जाहिर होना अनिवार्य है । यहां पर यह जिक्र करना आवश्यक हो जाता है की एक बार खलीफा हजरत उमर रजि अल्लाह अन्हा के काल में एक बकरी की भूक से मृत्यु हो जाती है यह खबर हजरत उमर को मालूम होती है तो वह रोने लगते हैं और कहते हैं कि मैं कयामत के दिन अल्लाह को क्या जवाब दूंगा के उमर की खिलाफत में एक बकरी भूक से मर गई। शरिया कानून में जब एक बकरी की जान इतनी महत्वपूर्ण है के खलीफा भी उसकी भूख से हो चुकी मृत्यु पर रोने लगते हैं तो इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी इंसान की जान किस कदर महत्वपूर्ण होगी, बहुमूल्य होगी।
इस्लामी कानून में देश की संपत्ति पर जनता का अधिकार होता है। टैक्स के रूप में जिसे शरीयत में जकात कहा जाता है केवल वर्ष में ढाई प्रतिशत राशि चुकानी होती है जबकि गैर मुस्लिमों को जजिया चुकाना पड़ता है जिसकी
दर बहुत मामूली होती है और अगर हम इस्लामिक शासन के इतिहास का अध्ययन करें तो मालूम होता है की यह दर हमेशा जकात की तुलना में कम ही रही है। यदि कोई गैर मुस्लिम जजिया की रकम नहीं चुका पाता तो उसे समाज में रहने के लिए, जीवन यापन के लिए किसी प्रकार की बाधा का सामना नहीं करना पड़ता है बल्कि जजिया की रकम माफ कर दी जाती है।
शरिया कानून का एक महत्वपूर्ण उसूल जो लोगों की जिंदगी को आसान करता है वह यह है कि शरिया राज में जब कोई व्यक्ति किसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु उधार ले और समय पर ना चुका पाए तो उससे उस राशि को चुकाने के लिए नरम लहजे में केवल तीन बार आग्रह किया जाए और उसके अक्षमता पर उसके कर्ज को माफ कर दिया जाए । फिर चाहे यह कर्ज प्रशासन का हो या समाज के किसी व्यक्ति का ।
उधार या कर्ज़ की आपूर्ति के लिए संबंधित व्यक्ति को किसी भी प्रकार की कोई पीड़ा या धमकी पहुंचाना गुनाह माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति या महकमा अपने द्वारा दिए गए उधार की वापसी के लिए किसी तरह की कोई पीड़ा या धमकी संबंधित व्यक्ति को देता है और कर्ज को माफ नहीं करता है तो उस व्यक्ति या महकमे के खिलाफ कार्यवाही की जाती है । यह कार्यवाही इस बात पर आधारित होती है की एक व्यक्ति का समाज में मौजूद दूसरे व्यक्ति पर या प्रशासन पर यह अधिकार है की मुसीबत के समय सहायता मांगने पर वह अपनी हैसियत के अनुसार जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करे।