राष्ट्रीय

Rishi Sunak : भारतीय मूल के ऋषि सुनक बने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, कैसे है भारत से उनका रिश्ता नहीं जानते होंगे आप ये बात!

Shiv Kumar Mishra
27 Oct 2022 9:36 AM IST
Rishi Sunak : भारतीय मूल के ऋषि सुनक बने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, कैसे है भारत से उनका रिश्ता नहीं जानते होंगे आप ये बात!
x

अरविंद जयतिलक

भारत के लिए सुखद क्षण है कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री होंगे। दो सौ साल तक भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों के देश को अब एक भारतवंशी चलाएगा। यह भारत को आह्लादित और रोमांचित करने वाली घटना है। ऋषि सुनक को कंजरवेटिव पार्टी का निर्विरोध नेता चुन लिया गया है। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल पेनी माॅरडाॅन्ट और पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया है। सुनक की लोकप्रियता और स्वीकार्यता का आलम यह है कि उन्हें 200 से अधिक सांसदों का सहयोग-समर्थन हासिल है।

उल्लेखनीय है कि पेनी माॅरडाॅन्ट और बोरिस जाॅनसन दोनों नेताओं के समर्थकों द्वारा सौ-सौ सांसदों के समर्थन का दावा किया गया था। लेकिन वे समर्थकों की सूची पेश करने में विफल रहे। नतीजतन उनकी चुनौती व गोलबंदी धरी की धरी रह गयी। वैसे भी कंजरवेटिव पार्टी बोरिस जाॅनसन को दोबारा नेता और देश का प्रधानमंत्री चुनने के पक्ष में नहीं थी। इसलिए कि वे न सिर्फ एक विफल प्रधानमंत्री साबित हुए बल्कि कंजरवेटिव पार्टी की लोकप्रियता और साख को बरकरार रखने में भी विफल रहे। कंजरवेटिव पार्टी को स्पष्ट ज्ञात था कि बोरिस जाॅनसन के नेतृत्व में कंजरवेटिव पार्टी अगला चुनाव नहीं जीत सकती। उल्लेखनीय है कि अगला यूनाइटेड किंगडम आम चुनाव जनवरी 2025 के बाद होने वाला है। ऐसे में कंजरवेटिव पार्टी बोरिस जाॅनसन और पेनी माॅरडाॅन्ट पर दांव क्यों लगाती?

सच तो यह है कि कंजरवेटिव पार्टी को ऐसा नेता चाहिए जो वित्तीय स्थिरता बहाल करने के साथ-साथ महंगाई कम करने, टैक्स कटौती और पार्टी को एकजुट रखने की रणनीतिक कसौटी पर खरा उतरे। साथ ही वह कंजरवेटिव पार्टी को अगला चुनाव भी जीताए। कंजरवेटिव पार्टी इसहलए भी चिंतित थी कि ताजा जनमत सर्वेक्षण के मुताबिक अगर ब्रिटेन में चुनाव करवाए जाते तो उसे बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता था। ऐसे में वह कमजोर किरदार पर दांव लगाकर धारदार कुल्हाड़ी पर पैर रखने का जोखिम नहीं उठा सकती थी। यह तथ्य है कि कंजरवेटिव पार्टी पिछले 12 साल से सत्ता में है। कोई भी दल लंबे समय तक सत्ता में बना रहता है तो उसके खिलाफ एंटी इनकमबेंसी का माहौल निर्मित होता है। कंजरवेटिव पार्टी के साथ भी ऐसा ही है। अब उसकी कोशिश नए प्रधानमंत्री के जरिए बेहतर शासन स्थापित कर अगला चुनाव जीतना है। लेकिन उसके साथ समस्या यह है कि विगत छह साल से वह नेतृत्व संकट से जूझ रही है। उसके शीर्ष नेता जानते हंै कि जब तक उनके पास करिश्माई नेता नहीं होगा तब तक उसके लिए अगला चुनाव जीतना मुश्किल होगा। फिलहाल ऋषि सुनक के रुप में एक भरोसेमंद नेता मिल गया है।

ब्रिटेन की मौजूदा परिस्थिितियों पर नजर दौड़ाएं तो ब्रेग्जिट के फैसले के बाद से ही ब्रिटेन अनापेक्षित संकट से दो-चार है। ऐसे में उसे एक ऐसे प्रधानमंत्री की जरुरत है जो देश को राजनीतिक-आर्थिक तौर पर मजबूती और स्थिरता दे। लोगों का भरोसा जीतकर आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरे। याद होगा कि जब लिज ट्रस ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो कहा था कि वह जनमत का सम्मान और उनसे किए वादों को पूरा न करने के कारण पद छोड़ रहीं हैं। अब नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए जनमत का सम्मान और किए गए वादों को पूरा करना बड़ी चुनौती है। चूंकि कंजरवेटिव पार्टी की छवि और नीति कर कटौती की पक्षधरता वाली रही है ऐसे में उन्हें लिज ट्रस के दौरान उपजी आर्थिक चुनौतियों से सबक लेते हुए कारगर कदन उठाना होगा। लिज ट्रस ने कठोर कर कटौती की पहल की थी लेकिन बढ़ती महंगाई के कारण दांव उल्टा पड़ गया। उल्लेखनीय है कि लिज ट्रस टैक्स कटौती का वादा करके ही प्रधानमंत्री बनी थी।

23 सितंबर को जब उनकी सरकार के वित्तमंत्री ने बजट पेश किया तो उसमें किए गए प्रावधानों ने वित्तीय बाजार को अस्थिर कर दिया। पाउंड गिरने लगा। उनकी चतुर्दिक आलोचना शुरु हो गयी और कंजरवेटिव पार्टी भी दबाव में आ गयी। पार्टी के भीतर उठने वाले विरोध के कारण प्रधानमंत्री लिज ट्रस को अपने वित्तमंत्री क्वासी क्वारतेंग को हटाना पड़ा। फिर गृहमंत्री को भी चलता किया गया। जब नए वित्त मंत्री ने पद संभाला तो बजट प्रावधानों को वापस ले लिया। लेकिन बाजार नहीं संभला। आर्थिक जानकारों और विपक्षी नेताओं ने सवाल दागना शुरु कर दिया कि सरकार न तो अपने चुनावी वादे पर खरा उतरी और न ही उसके पास समस्याओं से निपटने का ठोस रोडमैप है। लिहाजा पार्टी के भीतर से ही लिज ट्रस का विरोध शुरु हो गया। नाराजगी इस कदर बढ़ी कि उन्हें वित्तीय अस्थिरता के लिए देश से माफी मांगनी पड़ी। उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि मैं ज्यादा टैक्स की वजह से महंगे हुए बिजली के बिल से लोगों को राहत देना चाहती थी, मगर हमने बहुत जल्दी बहुत दूर जाने की कोशिश की। लिज ट्रस की यह माफी पर्याप्त साबित नहीं हुई। हालांकि लिज ट्रस की माफी में एक साफगोई और कड़ुवी सच्चाई थी। इसलिए कि उनकी सरकार द्वारा टैक्स कटौती करना एक दूरदर्शितापूर्ण कदम था। उनके मिनी बजट में लाखों परिवारों को राहत देने के उद्देश्य से ढ़ेर सारी कर कटौतियों के साथ-साथ राजकोषिय पैकेज भी दिए गए थे। इससे आमजन के हालात बेहतर होते। करों में कटौती से राजस्व में वृद्धि होती और अर्थव्यवस्था को गति मिलती।

इसी उद्देश्य से उनकी सरकार ने कर को 45 फीसद से घटाकर 40 फीसद करने का निर्णय लिया। कराधान को 20 फीसद से घटाकर 19 फीसद करने का प्रस्ताव रखा। यह भी सुनिश्चित किया गया कि काॅरपोरेट टैक्स की दरों को भी 19 फीसद पर रखा जाएगा। इस तरह तकरीबन 45 अरब की टैक्स कटौती होता और देश की अर्थव्यवस्था गुलजार होती। लोगों को राहत मिलती। लेकिन ये कर कटौतियां और राहतकारी पैकेज न तो बाजार को रास आए और न ही आम जनता को। आम जनता को तत्काल महंगाई और बढ़ते कर से राहत चाहिए था। लेकिन लिज सरकार ऐसा करने में विफल रही। बाजार संभलने के बजाए बिगड़ता गया। आमजन की नाराजगी से कंजरवेटिव पार्टी भी डर गयी। सरकार ने ताबड़तोड़ गिरावट को संभालने के लिए बाॅंन्ड बाजार में हस्तक्षेप किया। लेकिन बात नहीं बनी। अंततः लिज ट्रस को प्रधानमंत्री पद छोड़ने का एलान करना पड़ा। अब ब्रिटेन को एक तेजतर्रार, भरोसेमंद व दृढ़ निश्चयी प्रधानमंत्री के तौर पर ऋषि सुनक मिल गए हंै।

उम्मीद किया जाना चाहिए कि वे ब्रिटेन की राजनीतिक-आर्थिक स्थिरता को मजबूती देंगे और जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरेंगे। फिलहाल ब्रिटेन रिकार्डतोड़ महंगाई संकट से जूझ रहा है। उधर, यूक्रेन संकट ने गैस की कीमत बढ़ा दी है। पेट्रोलियम की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित है। बिजली की दरें बढ़ती जा रही है। उर्जा मूल्य बढ़ने से विभिन्न प्रकार के वस्तुओं की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया है। आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो आर्थिक व उर्जा संकट के कारण इस वर्ष सर्दी के महीनों में लाखों लोग अपने घरों को पर्याप्त गर्म रखने में असमर्थ होंगे। यानि उन्हें भोजन की कमी के साथ-साथ सर्दी के थपेड़ों को भी सहना होगा। ब्रिटेन में महंगाई की मार किस कदर है इसी से समझा जा सकता है कि लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल पड़ रहा है।

देश के तकरीबन आधे परिवार रोजाना खाने में कटौती कर रहे हैं। लोगों को पौष्टिक भोजन मिलना दुर्भर हो गया है। तकरीबन 80 फीसद परिवार कठिन आर्थिक संकट के कगार पर हैं। खाद्य पदार्थों से संबंधित मुद्रा स्फीति दर 10 फीसद और खुदरा मूल्य सूचकांक 12 फीसद से अधिक है। इन परिस्थिितियों के बीच कंजरवेटिव पार्टी के नए नेता और ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और जनमत की आकांक्षाओं को पूरा करना बड़ी चुनौती होगी। कहते हैं न कि उम्मीद बड़ी कमाल की चीज होती है। ब्रिटेन के लोगों को भी उम्मीद है कि ऋषि सुनक एक ऐसा ब्रिटेन गढेंगे जिसमें जनमत का सम्मान, समृद्ध जीवन और हजारों साल की कालजयी गौरवशाली परंपरा का भाव सन्निहित होगा।

Next Story