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रिन्यूएबिल ऊर्जा के लिए सब्सिडी वित्त वर्ष 2017 के बाद से लगभग 45% कम,नए सिरे से समर्थन की ज़रूरत पर विशेषज्ञों का ज़ोर
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (IISD) (आईआईएसडी) और काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) (सीईईडब्ल्यू) द्वारा "मैपिंग इंडियाज़ एनर्जी सब्सिडीज़ 2021: टाइम फॉर रिन्यूड सपोर्ट टू क्लीन एनर्जी" (भारत की ऊर्जा सब्सिडी का मानचित्रण 2021: स्वच्छ ऊर्जा के लिए नए सिरे से समर्थन का समय) शीर्षक वाली, आज जारी की। रिपोर्ट में पाया गया है कि रिन्यूएबिल ऊर्जा के लिए सब्सिडी में वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष) 2017 में INR 15,470 करोड़ के शीर्ष स्तर से 45% की गिरावट आई है और वित्त वर्ष 2020 में यह INR 8,577 करोड़ रह गयी है। इसलिए इस व्यवस्था का पुनर्विलोकन अब बेहद ज़रूरी है।
IISD और CEEW विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में पहले से चल रहे ट्रांजिशन की प्रगति को निभाय रखने के लिए, स्वच्छ ऊर्जा को नया वित्त पोषण महत्वपूर्ण है। शोधकर्ता इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बढ़ती सब्सिडी जैसे सकारात्मक रुझानों की ओर इशारा करते हैं, जो कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की बढ़ती सार्वजनिक मांग के कारण वित्त वर्ष 2019 से 135% बढ़कर वित्त वर्ष 2020 में 1,141 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। लेकिन वे यह भी ध्यान देते हैं कि इलेक्ट्रिक ट्रांसपोर्ट का पूरा लाभ तभी प्राप्त किया जा सकता है जब इसमें ग्रीन (हरित) इलेक्ट्रिसिटी का मिश्रण हो।
रिपोर्ट व्याख्या करती है कि रिन्यूएबिल ऊर्जा सब्सिडी कई वजहों से एक ठहराव पर है, जैसे सौर और पवन ग्रिड-स्केल बाज़ार समता हासिल करना, कम परिनियोजन स्तर, और सब्सिडी योजनाओं के आवंटन अवधि के अंत में क़रीब पहुंचना शामिल हैं।
अध्ययन के सह-लेखक, IISD के बालसुब्रमण्यम विश्वनाथन कहते हैं, "यह ग्रिड एकीकरण और भंडारण, डीसेंट्रेलाइज़ेड रिन्यूएबल ऊर्जा, ग्रीन हाइड्रोजन और अपतटीय पवन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित समर्थन उपायों की एक नई लहर का समय है। भारत को 2030 तक 450 गीगावॉट रिन्यूएबल ऊर्जा के अपने प्रशंसनीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए हर साल लगभग 39 गीगावॉट के ऐतिहासिक स्तर का परिनियोजन करना चाहिए। सही समर्थन नीतियों के बिना इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कल्पना करना कठिन है। लेकिन पुरस्कार बड़ा है: वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाना, जलवायु संकट से निपटना और ग्रीन आर्थिक सुधार की शुरुआत करना।"
दूसरी ओर, तेल और गैस सब्सिडी वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2020 तक 16% बढ़ गयीं, जिसका मुख्य कारण तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) (एलपीजी) की घरेलू खपत के लिए वित्तीय सहायता है। हालांकि, विशेषज्ञ इसपर ध्यान देते हैं कि LPG सब्सिडी को वित्त वर्ष 2021 के तेल मूल्य मे भारी गिरावट के दौरान निलंबित कर दिया गया था और अभी तक इसे फिर से शुरू नहीं किया गया है। यह भविष्य के वर्षों में तेल और गैस सब्सिडी को कम कर सकता है, लेकिन स्वच्छ ऊर्जा पहुंच के बारे में नई चिंताओं को जन्म दिया है, क्योंकि स्वच्छ खाना पकाने के लिए कोई वैकल्पिक समर्थन प्रदान नहीं किया गया है। इस बीच, शोधकर्ताओं ने वित्त वर्ष 2022 तक केरोसिन सब्सिडी को सफलतापूर्वक समाप्त करने की सरकार की प्रतिबद्धता की सराहना की, जिससे कुल तेल और गैस सब्सिडी भी कम होनी चाहिए।
कुल मिलाकर, अध्ययन में पाया गया है कि व्यापक डाटा के नवीनतम वर्ष तक जीवाश्म ईंधन के लिए समर्थन में वृद्धि हुई है, वित्त वर्ष 2020 में यह INR 70,578 करोड़ तक पहुंची है। यह स्वच्छ ऊर्जा के लिए सभी सब्सिडी के टोटल के सात गुना से अधिक है।
विशेषज्ञ इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में रिफ़ार्म (सुधार) से कोविड-19 से आर्थिक सुधार और स्वच्छ ऊर्जा में निवेश के लिए मूल्यवान अतिरिक्त संसाधन उत्पन्न हो सकते हैं।
रिपोर्ट अन्य सरकारी उपायों की भी पहचान करती है जो ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा दे सकते हैं।
CEEW के सह-लेखक प्रतीक अग्रवाल कहते हैं, "कोयला टैक्स रेवेन्यू (कर-राजस्व) के एक हिस्से को स्वच्छ ऊर्जा और Transition (बदलाव) से प्रभावित समुदायों, क्षेत्रों और आजीविका के लिए पुनर्निर्देशित करने से एक निष्पक्ष और न्यायसंगत ऊर्जा Transition (बदलाव) सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, सरकार को वर्तमान में जीवाश्म ईंधन में अधिक निवेश करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को स्वच्छ ऊर्जा में उच्च स्तर के निवेश के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने और विनिर्माण में राष्ट्रीय क्षमता स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।"
ग्रीन रिकवरी को समर्थन देने के लिए सरकार के पास एक उत्कृष्ट अवसर है। आत्मनिर्भर भारत के साथ गठबंधन में अब स्वच्छ ऊर्जा के लिए नई पीढ़ी के समर्थन उपायों को डिज़ाइन कर के यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कोई भी पीछे न छूटे.