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नेतनयाहू के आये बुरे दिन,इस्राईली विमानों पर सीरिया का मिसाइल हमला, बदल गए समीकरण

Majid Khan
18 Oct 2017 10:58 AM GMT
नेतनयाहू के आये बुरे दिन,इस्राईली विमानों पर सीरिया का मिसाइल हमला, बदल गए समीकरण
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अगर सीरिया की वायु रक्षा व्यवस्था लेबनान की वायु सीमा तोड़कर जासूसी मिशन पूरा करने वाले इस्राईली विमानों पर मिसाइल फ़ायर करे, एक विमान को निशाना बनाए और अन्य विमानों को लेबनानी वायु सीमा से बाहर निकलने पर मजबूर कर दे तो यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण घटना है। इससे नई प्रतिरोधक रणनीति का पता चलता है जिसके तहत सीरिया या लेबनान किसी भी देश की वायु सीमा का उल्लंघन करने वाले इस्राईली विमान को निशाना बनाया जाएगा।


हालांकि बाद में इस्राईल के सरकारी बयान में दावा कर दिया कि इस्राईली युद्धक विमानों ने सीरिया की वायु रक्षा प्रणाली को निशाना बनाया लेकिन हक़ीक़त यह है कि सीरिया के हमले से इस्राईल बौखला गया है। इसी लिए इस्राईल के सैनिक और सिविल अधिकारियों ने कहा कि वह सीरिया के साथ युद्ध नहीं चाहते बल्कि शांति को प्राथमिकता देते हैं। कितने आश्चर्य की बात है कि इस्राईल शांति का रुजहान ज़ाहिर करने लगा है?! इस्राइली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू और उनके प्रवक्ता जो इससे पहले सीरिया के भीतर इस्राईल के वायु हमलों पर कोई बयान नहीं देते थे, इस घटना के बाद तिलमिलाए हुए दिखाई दिए और उन्होंने धमकी दी कि जो भी इस्राईल की शांति व सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा करेगा इस्राईल उस पर हमला किया है। वैसे यह बयान इस्राईली बस्तियों में रहने वालों का भय दूर करने के उद्देश्य से दिया गया। सीरिया ने जो मिसाइल फ़ायर किया है इस्राईल के लिए उसका संदेश बहुत साफ़ था कि वह ज़माना बीत चुका है जब इस्राइली विमान लेबनान की वायु सीमा में चकराते रहते थे और जिस स्थान की चाहते थे फ़ोटोग्राफ़ी करते थे। अब लेबनानी वायु सीमा में इन विमानों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस्राईल की ओर से की गई हरकत और इस पर सीरियाई वायु रक्षा व्यवस्था की जवाबी कार्यवाही से पता चल गया कि इस्राईल सीरिया की रक्षा शक्ति की परीक्षा लेना चाहता था कि उसके पा एस-400 मिसाइल हैं या नहीं।


उधर सीरिया के जवाबी हमले से साफ़ हो गया है कि आतंकियों के विरुद्ध विभिन्न मोर्चों पर मिलने वाली विजय से सीरियाई सेना और सरकार का आत्म विश्वास और मनोबल काफ़ी बढ़ा है। इस्राईल इस समय काफ़ी डरा हुआ है क्योंकि सीरिया में उसके घटक पराजित हो चुके हैं। जबकि दूसरी ओर सीरियाई सेना और लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन ने इस लड़ाई में बड़ा क़ीमती अनुभव प्राप्त कर लिया है। इस्राईल का यह डर युद्ध मंत्री एविग्डर लेबरमैन के बयान से साफ़ झलकता है। उन्होंने दो सप्ताह पहले एक साक्षात्कार में कहा कि बश्शार असद युद्ध में जीत गए और अब दुनिया के देश विशेष रूप से अरब देश असद से पेंग बढ़ाने के लिए बैचैन हैं।


ट्रम्प ने ईरान के विरुद्ध हालिया दिनों जो उत्तेजक नीति अपनाई है, सीरिया की ओर से इस्राईली विमानों पर हमला उससे अलग विषय नहीं है। यह उस युद्ध के लक्षण हैं जिसकी चेतावनी हिज़्बुल्लाह लेबनान के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह दे चुके हैं और जिसमें उन्होंने कहा कि इस युद्ध की तैयारी नेतनयाहू कर रहे हैं। इस्राईली प्रधानमंत्री के लिए यह बात बड़ी बेचैन करने वाली है कि सीरिया संकट ख़त्म हो रहा है और सीरिया अपने ज़ख़्मों का इलाज कर रहा है, इराक़ भी दाइश से लड़ाई में जीत हासिल कर चुका है। सीरिया और इराक़ के माध्यम से ईरान और लेबनान एक दूसरे से ज़मीनी तौर पर जुड़ चुके हैं।


ईरान और हिज्बुल्लाह की फ़ोर्सेज़ सीरिया के क़ुनैतरा और दरआ इलाक़ों में मौजूद हैं जहां से वह गोलान हाइट्स के मोर्चे की लड़ाई लड़ सकती हैं। इलाक़े के हालात बहुत तेज़ी से बदल रहे हैं। इस लिए कि सरिया बदल चुका है और बहुत तेज़ी से अपनी ताक़त बहाल कर रहा है। इस प्रक्रिया में उसे ईरान और रूस की मदद हालिस है और यही चीज़ वाशिंग्टन और तेल अबीब के लिए डरावना सपना बनी हुई है। आज सीरियाई सेना ने एसआई-5 मिसाइल हमलावर इस्राईली विमानों पर फ़ायर किया और उन्हें भागने पर मजबूर किया तो संभव है कि अगला मिसाइल रूस निर्मित एस-400 व्यवस्था का मिसाइल हो।


सैयद हसन नसरुल्लाह ने अपने हालिया भाषण में युद्ध की संभावना के बारे में बात की और कहा कि यह युद्ध नेतनयाहू शुरू करना चाहते हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह ने यहूदियों को नसीहत की कि वह अपने अपने देशों को लौट जाएं और अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन को छोड़ दें क्योंकि युद्ध में वह ईंधन बन सकते हैं और युद्ध शुरू हो जाने के बाद उन्हें भागने का मौक़ा नहीं मिलेगा। आने वाला युद्ध पिछले युद्धों के समान नहीं होगा। अब अरबों और मुसलमानों के पास मज़बूत रक्षा शक्ति आ चुकी है। इस्राईल इस शक्ति को पिछली तीन लड़ाइयों में आज़मा चुका है और किसी में भी वह विजय प्राप्त नहीं कर सका। इसलिए कि उसका मुक़ाबला किसी भ्रष्ट अरब शासन से नहीं था जिसका एकमात्र सहारा अमरीका होता है।

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