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कोरोना को लेकर WHO की भूमिका शुरू से अंत तक भूमिका संदिग्ध.
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विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की विश्वसनीयता इस वक्त सवालो के घेरे में है। अब जाकर लोग यह समझने को तैयार हो रहें है कि UN की कई अन्तराष्ट्रीय एजेंसिया, एक सुनियोजित एजेंडा के तहत काम करती है ओर कोरोना वायरस के इस दौर में WHO की भूमिका बेहद संदेहास्पद है......मौजूदा दौर में कोविड-19 को रोकने में भारी असफलता का सामना करना पड़ रहा है।
कल ही खबर आई है कि भारत सहित 62 देशों ने ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के उस संयुक्त प्रयास का समर्थन किया है जो डब्लूएचओ की कोविड-19 महामारी की प्रतिक्रिया की स्वतंत्र जांच की मांग कर रहा है। एक ड्राफ्ट बनाया गया है जिसके अंतर्गत 'कोरोनो वायरस संकट में निष्पक्ष, स्वतंत्र और व्यापक' जांच की भी मांग की गई है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की कार्रवाइयों और कोविड-19 महामारी से संबंधित उनकी समय सीमा की जांच की भी मांग की गई है। प्रस्ताव में WHO महासचिव से इंटरनेशनल एजंसीज के साथ मिलकर वारयस के सोर्स का पता लगाने और वह इंसानों में कैसे फैला, इसका पता लगाने की भी मांग रखी गई.
ऐसा माना जा रहा है कि आंकड़ों को छिपाने और कोरोना की सही जानकारी न देने में WHO ने चीन का साथ दिया है. इसलिए यह जांच जरूरी है.
दरअसल भारत मे मीडिया यह बता ही नही रहा है कि WHO पर यह इल्जाम क्यो लगाए जा रहे है वह क्रोनोलॉजी समझा ही नही रहा है, इसलिए आपको यह लेख पढ़ने की सलाह दी जाती हैं WHO चीन और बिल गेट्स की मिलीभगत पर पहले भी लिखा है जिसके लिंक कमेन्ट बॉक्स में दे रहा हूँ.
विश्व मे स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर बनाई गई सबसे बड़ी संस्था डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लिया 31 दिसम्बर को WHO ने विश्व को इस बीमारी के बारे में पहली सूचना दी वह भी बिल्कुल चलताऊ अंदाज में.......
14 जनवरी को डब्ल्यूएचओ का एक ट्वीट आया। इस ट्वीट में डब्लूएचओ ने दावा किया कि चीन में मौजूद कोरोना वायरस एक इंसान से दूसरे इंसानों में नहीं फैलता है। यही से डब्लूएचओ की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई।
22 जनवरी को डब्लूएचओ ने पलटी मारते हुए अपना बयान बदल दिया और कोरोना वायरस के इंसान से इंसान में फैलने के पुष्टि कर दी। 23 जनवरी को दुनिया का पहला लोकडाउन चीन के वुहान में लगाया गया गोया इसी ट्वीट का इंतजार किया जा रहा था
3 फरवरी को, WHO के चीफ टेड्रोस ने यू.एस. और अन्य देशों को फटकार लगाई कि उनके द्वारा चीन के नागरिकों को यूएस में प्रवेश पर अनावश्यक और अत्यधिक सख़्त प्रतिबंध लगाए है उन्होंने कहा.......
"ऐसे उपायों का कोई कारण नहीं है जो अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और व्यापार में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप करते हैं। हम सभी देशों से ऐसे फैसले लागू करने का आह्वान करते हैं जो साक्ष्य-आधारित और सुसंगत हों।
एक बाद एक कर WHO ऐसे काम करता रहा ओर अपनी जिम्मेदारियों से मुँह चुराता रहा, जिससे इस बीमारी का प्रसार पूरे विश्व मे हो गया जबकि उसके पास एक ऐसा पूरा सिस्टम मौजूद था जो इन महामारियों से निपटने के लिए आज से 20 साल पहले बना दिया गया था जिसे GORAN कहते हैं ग्लोबल आउटब्रेक अलर्ट और रिस्पांस नेटवर्क (GOARN) की स्थापना ही ऐसी परिस्थितियों के लिए की गई थी , यह अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों के लिए किसी भी डब्ल्यूएचओ की प्रतिक्रिया के लिए संचालन और लॉजिस्टिक्स प्लेटफार्म है दुनिया भर के प्रतिनिधि इसमे मौजूद रहते हैं आप भी गूगल कर के देख सकते हैं
इसके अलावा 2005 में ऐसी महामारी के लिए इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशंस बनाई गई थी जिसके आधार पर अब जाँच किये जाने की बात सामने आ रही है.
ऐसे सिस्टम के मौजूद होते हुए कोरोना को महामारी घोषित करने में डब्लूएचओ को 72 दिन का समय लग गया। डब्लूएचओ ने कोविड-19 को जब महामारी के रूप में पहचान की, जबतक बहुत देर हो चुका था और इस बीच कोविड-19 वायरस, चीन के वुहान से निकल कर 114 देशों में संक्रमण फैला चुका था। यही वह सबसे बड़ी वजह है, जो डब्लूएचओ की भूमिका पर सवालिया निशान खड़ा कर देता है।
लेकिन यहाँ बड़ा सवाल उठता है कि क्या यह पहली घटना है?....... जैसे कोरोना वायरस के प्रसार में WHO की भूमिका संदेहास्पद बताई जा रही हैं वैसे ही क्या अन्य बीमारियों/ महामारियों में उसकी भूमिका संदेहास्पद थी.
जी हाँ पहले भी यह पाया गया है कि WHO बिग फार्मा के हाथों में खेल रहा था.
2009 H1N1 स्वाइन फ़्लू महामारी को यदि हम याद करें जब अमेरिकी में ओबामा राष्ट्रपति थे तब वहा की विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के सलाहकार ने H1N1 महामारी की तुलना 1918 के स्पेनिश फ़्लू महामारी से की थी स्वाइन फ्लू का टीका तैयार करने की तुरंत जरूरत है
उस वक्त भी WHO के महानिदेशक मार्गरेट चैन ने भविष्यवाणी की थी "अगले दो वर्षों में लगभग 2 बिलियन लोग संक्रमित हो सकते हैं - दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई।"
दरअसल यह डब्लूएचओ के महानिदेशक मार्गरेट चान द्वारा समर्थित बिग फार्मा के लिए एक मल्टीबिलियन बोनांजा था।
अमेरिकी सरकार भी इस गेम में शामिल थी "स्वाइन फ्लू अगले दो वर्षों में 40 प्रतिशत तक अमेरिकियों पर हमला कर सकता है और यदि टीका अभियान और अन्य उपाय सफल नहीं हुए तो कई सौ हजार लोगों की मौत हो सकती है।" (ओबामा प्रशासन का आधिकारिक वक्तव्य, एसोसिएटेड प्रेस, 24 जुलाई 2009)।
बाद में हमे पता चला कि 2 अरब लोगों को प्रभावित करने वाली बात झूठी थी यह कोई महामारी नहीं थी ... बिग फार्मा से राष्ट्रीय सरकारों द्वारा लाखों स्वाइन फ्लू वैक्सीन का ऑर्डर दिया गया था। लाखों वैक्सीन खुराक बाद में नष्ट कर दिए गए:
फार्मा कम्पनियों की इस मल्टीबिलियन की धोखाधड़ी के पीछे कौन था, इसकी कोई जांच नहीं हुई। H1N1 महामारी "नकली" महामारी थी.
मानवाधिकार परिषद, यूरोप की परिषद (PACE) की संसदीय सभा सार्वजनिक रूप से एक महामारी घोषित करने में WHO के उद्देश्यों की जांच की, इस समिति के अध्यक्ष महामारी विज्ञानी वोल्फगैंग वोडर, ने घोषणा की.