राष्ट्रीय

नोवेल कोरोना वायरस को WHO और चीन को जो लोग निर्दोष मानते है, उन्हें यह लेख पढ़ने की जरूरत है!

Shiv Kumar Mishra
25 April 2020 7:32 AM GMT
नोवेल कोरोना वायरस को WHO और चीन को जो लोग निर्दोष मानते है, उन्हें यह लेख पढ़ने की जरूरत है!
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यह महिला वुहान के सी-फूड मार्केट में 10 दिसंबर को झींगे बेच रही थी

गिरीश मालवीय

नोवेल कोरोना वायरस को लेकर न WHO को क्लीन चिट दी जा सकती हैं और न चीन को जो लोग इन दोनों को निर्दोष समझ रहे हैं या उसे निर्दोष बताने का प्रयास कर रहे है उन्हें यह लेख पढ़ने की सलाह दी जाती है.

सबसे पहली बात तो यह है कि वुहान में इस वायरस का प्रसार होना जनवरी की घटना बताई जाती हैं और बस यही से सारी गलतियों की शुरुआत हो जाती हैं.चीन द्वारा जारी ऑफशियल टाइम लाइन के मुताबिक, समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने रिपोर्ट दी थी कि दिसंबर के अंत में वुहान सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने चीन के हुबेई प्रांत में 'अज्ञात कारण से निमोनिया' के मामले पाए थे।

दुनिया में कोरोना वायरस के पहले मरीज के तौर पर चीन की 57 साल की एक महिला की पहचान की गयी. यह चीन के वुहान में झींगा बेचती थी. इसका नाम वेई गुइजियान है. इसे 'पेशेंट जीरो' बताया गया है. पेशेंट जीरो उस मरीज को कहते हैं, जिसमें सबसे पहले किसी बीमारी के लक्षण दिखते हैं. यह महिला वुहान के सी-फूड मार्केट में 10 दिसंबर को झींगे बेच रही थी

लेकिन यह सच नही है 'जीरो पेशेंट' के रूप में पहचाने जाने वाले वी पहले व्यक्ति नहीं हो सकती जिसमें कोरोनो वायरस का पता चला हो। लांसेट मेडिकल जर्नल में एक अध्ययन में दावा किया गया है कि COVID-19 से निदान करने वाले पहले व्यक्ति की पहचान 1 दिसंबर को हुई थी।

माना जाता है कि दिसंबर के शुरुआती हफ्ते में वुहान की सी-फूड मार्केट के ईर्द-गिर्द रहने वाले कई लोग बुखार से पीड़ित होने शुरु हो गए. डॉ. ली वेनलियांग के अस्पताल में स्थानीय सी-फूड मार्केट से करीब सात मरीज़ पहुंचे. ये वही डॉ ली वेनलियांग थे, जिनकी बाद में 7 फरवरी को मौत हुई इनके फोन के स्क्रीन शॉट गलती से लीक हुए और चीन को WHO को इन्वॉल्व करना पड़ा

लेकिन यह भी अधूरा सच है चीन की वेबसाइट साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने सरकारी दस्तावेजों के हवाले से खुलासा किया है कि हुबेई प्रांत में पिछले साल 17 नवंबर को ही कोरोनावायरस का पहला मरीज ट्रेस कर लिया गया था।जिसकी उम्र 55 साल थी। 17 नवंबर को पहला केस सामने आने के बाद हर दिन ऐसे 1 से लेकर 5 मामले रिपोर्ट किए गए। 15 दिसंबर तक संक्रमित मरीजों की संख्या 27 हो गई थी। 17 नवंबर के दिन पहली बार 10 से ज्यादा मामले सामने आए थे। इसके बाद 20 दिसंबर तक संक्रमित मरीजों की संख्या 60 पहुंच गई 27 दिसम्बर तक चीन में 180 लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके थे, चीन इन मामलों को छुपाने के प्रयास करता रहा

चीन को शुरू से पता था कि यह बीमारी मनुष्य से मनुष्य के बीच फैल रही है यह बात WHO को भी अच्छी तरह से पता थी लेकिन शुरुआत में इसे छुपाने के प्रयास किये गए जनवरी में आप WHO का बयान देखिए . 12 जनवरी को डबल्यूएचओ ने अपनी एक प्रेस ब्रीफ़ में कहा था-"चीनी जांच एजेंसियों के मुताबिक अभी इस वायरस के इंसानों से इंसानों में फैलने का कोई प्रमाण नहीं मिला है। वुहान में काम कर रहे किसी भी स्वास्थ्य कर्मी में इस बीमारी के लक्षण नहीं पाये गए हैं जो इस दावे को सत्यापित करता है"।

जबकि 7 जनवरी को इस बीमारी फैलाने वाले कोरोना वायरस का पता लग चुका था और जो भी छात्र मेडिकल की पढ़ाई करता है वह जानता है कि कोरोना वायरस मनुष्यों के बीच संचरण की क्षमता रखता है. WHO की एक वरिष्ठ अधिकारी बहुत बाद में यह दावा भी किया कि उसे यह शुरु से ही पता था कि यह वायरस मनुष्यों से मनुष्यों में फैलता है। उसने कहा कि मै MERS और कोरोनावायरस विशेषज्ञ हूं, और ये वायरस इंसानों से इंसानों में फैलते हैं"।

चीन में पढ़ने वाले एक भारतीय मेडिकल स्टूडेंट् ने आज तक के साथ बातचीत में स्वीकार किया था कि दिसंबर में ही उस अहसास को जी लिया था जिसे हम आज भारत में देख रहे हैं. ध्यान दीजिए दिसम्बर में!. वो मेडिकल स्टूडेंट कहती है 'चीन में हालात का अंदाजा नहीं था. मेरे एग्जाम चल रहे थे. हमें अपने टीचरों से मालूम चला कि ऐसा कोई वायरस हॉस्पिटल में पाया गया है और हॉस्पिटल को बंद कर दिया गया है. आप लोगों को प्रिकॉशन की जरूरत है. आप लोगों को हाथ धोते रहना है. फिर हमें जनवरी में पता चला कि तमाम सीरियस केस आ रहे हैं. बहुत ही डिफरेंस.'

इन सब परिस्थितियों को लगातार इग्नोर करते हुए WHO ने बहुत बाद में 29 जनवरी को नावेल कोरोनवायरस के प्रकोप को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल ग्लोबल हैल्थ इमरजेंसी घोषित किया। जब तक 18 देशों में कुल 83 मामले सामने आ गए थे 1 फरवरी को तो चीन के बाहर कोरोना से होने वाली पहली मौत भी हो गयी.

ऐसे हालात में यदि WHO ओर चीन की सांठगांठ पर शक जाहिर किया जा रहा है तो क्या गलत है? क्या हम नही जानते कि वुहान से बीजिंग की दूरी शंघाई की दूरी कितनी है जहां शेष विश्व की तुलना में यह वायरस न के बराबर फैला है? शंघाई की आबादी करीब 2.5 करोड़ है और यहाँ पर सिर्फ 468 मामले सामने आये। इतनी ही नहीं यहाँ इस वायरस से सिर्फ 5 मौतें ही हुईं। बीजिंग की आबादी 2.15 करोड़ है, लेकिन कोरोना वायरस के यहाँ केवल 500 मामले आये और सिर्फ 8 मौतें हुईं। यह कैसे संभव हुआ कि चीन से लगे हुए ताइवान में यह वायरस न के बराबर फैला जबकि इटली में हजारों लोगों की मौत हो गयी.

अब हमें बताया जा रहा है कि बिना लक्षण वाले मरीजों को जो कोरोना वायरस से संक्रमित थे जिनकी जाँच में पुष्टि भी हुई. उन्हें चीन कोरोना मरीजो की श्रेणी में रखता ही नही है! यह रिडिक्यूल्स है.

आज चीन के बड़े शहरों को तो छोड़ ही दीजिए चीन के वुहान में भी जन जीवन सामान्य हो रहा है। दुकानें, रेस्तरां, होटल, बार, बाज़ार, कार्यालय और व्यापार केंद्र खुल चुके हैं। विनिर्माण की सभी गतिविधियाँ चल रही हैं। फैक्ट्रियों पर उत्पादन जारी है। अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए चीन के ज़्यादातर कर्मचारी अपने काम पर लौट आये हैं। जबकि बाकी दुनिया अब भी कोरोना वायरस से जूझ रही है अमेरिका यूरोप की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने की कगार पर है ओर चीन उन्हें पुनः माल भेजकर मोटा माल कमाने की जुगाड़ में है जब हम ये सब अपने सामने होता देख रहे हैं तो WHO ओर चीन की साठगाँठ की ओर इशारा करना शक करना कैसे गलत बता दिया जाता है?

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