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बुर्का पहनकार भाग रही महिला पत्रकार बोली, 'मेरे लिए दुआएं करो.

Shiv Kumar Mishra
12 Aug 2021 1:18 PM IST
बुर्का पहनकार भाग रही महिला पत्रकार बोली, मेरे लिए दुआएं करो.
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अफगानिस्तान में क्रूरता का पर्यायवाची शायद तालिबान ही कहा जाएगा। यह कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन खुद को पहले के मुकाबले 'सुधरा हुआ' और नरम बताता है लेकिन देश की युद्धग्रस्त जमीन से बाहर आतीं पुकारें इसकी निर्दयता और हैवानियत जाहिर करती हैं। ऐसी ही एक आवाज है देश की एक युवा महिला पत्रकार की। उसने 'द गार्जियन' के लिए हिकमत नूरी को अपनी कहानी सुनाई है और दुनिया से गुजारिश की है कि उसके लिए दुआ की जाए। ये कहानी है डर के साये में छिपती फिर रही इस बहादुर लड़की की-

दो दिन पहले मुझे उत्तरी अफगानिस्तान से अपना घर, अपनी जिंदगी छोड़कर भागना पड़ा। तालिबान ने मेरा शहर छीन लिया। मैं अब भी भाग रही हूं और कोई सुरक्षित जगह नहीं है। पिछले हफ्ते मैं एक न्यूज जर्नलिस्ट थी। आज मैं अपने नाम से लिख नहीं सकती हूं और न कह सकती हूं कि मैं कहां से हूं या कौन हूं मैं। कुछ ही दिन में मेरी पूरी जिंदगी का नामोनिशान खत्म हो गया।

मुझे इतना डर लग रहा है और मुझे नहीं पता कि मेरा क्या होगा। क्या मैं कभी घर जाऊंगी? क्या मैं अपने पैरंट्स को फिर से देख पाऊंगी? मैं कहां जाऊंगी? हाइवे दोनों तरफ से ब्लॉक है। मैं कैसे बचूंगी?

अपना घर और जिंदगी छोड़ने का फैसला प्लान नहीं किया था। अचानक ही हो गया। पिछले कुछ दिन में मेरा पूरा प्रांत तालिबान ने छीन लिया। सरकार का जहां कंट्रोल बचा है, उसमें सिर्फ एयरपोर्ट और कुछ पुलिस डिस्ट्रिक्ट ऑफिस बचे हैं। मैं सुरक्षित नहीं हूं क्योंकि मैं एक 22 साल की लड़की हूं और मुझे पता है कि तालिबान परिवारों को अपनी बेटियां लड़ाकों की पत्नी बनाने के लिए देने को मजबूर कर रहा है। मैं सुरक्षित नहीं हूं क्योंकि मैं एक न्यूज जर्नलिस्ट हूं और मुझे पता है कि तालिबान मेरे और मेरे साथियों को ढूंढते हुए आएगा।

तालिबान पहले ही ऐसे लोगों को ढूंढ रहा है जिन्हें वे टार्गेट करना चाहते हैं। वीकेंड पर मेरे मैनेजर ने मुझे कॉल किया और मुझसे कहा कि किसी अंजान नंबर से फोन आए तो जवाब न दूं। उन्होंने कहा कि हमें, खासकर महिलाओं को, छिपना चाहिए और अगर शहर से भाग सकें तो भाग जाएं।

जब मैं पैकिंग कर रही थी, गोलियां और रॉकेट सुनाई दे रहे थे। प्लेन और हेलिकॉप्टर सिर के ऊपर से उड़ रहे थे। घर के ठीक बाहर गलियों में लड़ाई चल रही थी। मेरे अंकल ने मुझे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की पेशकश की तो मैंने फोन और चादरी (पूरी तरह ढकने वाला लिबास)उठाया और चल पड़ी।

मेरा परिवार नहीं निकल सका जबकि हमारा घर शहर की जंग में फ्रंटलाइन पर है। रॉकेट फायर बढ़ने के साथ उन्होंने मुझसे निकलने को कहा क्योंकि उन्हें पता था कि शहर से बाहर निकलने के रास्ते जल्द ही बंद हो जाएगे। मैंने उन्हें पीछे छोड़ दिया और अंकल के साथ भागकर निकल आई। मैंने तबसे उनसे बात नहीं की है क्योंकि शहर में फोन ही नहीं काम कर रहे।

घर के बाहर कोहराम मचा था। मेरे आसपास के इलाके से बचकर भागने के लिए बची मैं आखिरी युवा महिलाओं में से एक थी। मुझे घर के बाहर तालिबान के लड़ाके दिख रहे थे, सड़कों पर। वे हर जगह थे। ऊपरवाले का शुक्र है कि मेरे पास चादरी थी लेकिन फिर भी मुझे डर लग रहा था कि वे मुझे रोक लेंगे या पहचान लेंगे। मैं चलते हुए कांप रही थी लेकिन डर छिपा रही थी।

जैसे ही हम निकले, एक रॉकेट हमारे करीब आकर गिरा। मुझे याद है, मैं चिल्लाने लगी और रोने लगी, मेरे आसपास महिलाएं और बच्चे बदहवास भाग रहे थे। मुझे लगा कि हम सब एक नाव पर फंस गए हैं और तूफान के बीच फंस गए हैं। हम किसी तरह मेरे अंकल की कार के पास पहुंचे और उनके घर की ओर निकले जो शहर से आधे घंटे की दूरी पर है।

रास्ते में हमें एक तालिबानी चेकपॉइंट पर रोका गया। मेरी जिंदगी का यह सबसे डरावना पल था। मैं अपनी चादरी में थी और उन्होंने मुझे नजरअंदाज कर दिया लेकिन मेरे अंकल से पूछताछ की, पूछा कि हम कहां जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम हेल्थ सेंटर गए थे और अब घर लौट रहे हैं। वे हमसे सवाल कर रहे थे और पीछे चेकपॉइंट से रॉकेट फायर किए जा रहे थे, गिर रहे थे। किसी तरह हम वहां से निकले।

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