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राहुल गांधी की चर्चित अमेरिकी यात्रा के फौरन बाद प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी भी अमेरिका पहुंच गये और भारतीय मीडिया के मुताबिक उन्हें वहां खूब पज़ीराई मिली जैसे पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिका गया हो हालांकि कई पूर्व प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा कर चुके हैं जहां उन्हें खूब सम्मान मिला।
प्रधानमन्त्री मोदी की इस अमेरिकी यात्रा की सबसे खास बात ये है कि उन्होंने प्रधानमन्त्री बनने के बाद पहली बार प्रेसवार्ता की जिसमें उन्हें एक ऐसे कड़वे सवाल का सामना करना पड़ा जिसके जवाब में कहने के लिए उनके पास कुछ नहीं था और वो हटो बचो का तरीका अपना कर दामन बचा ले गए। सवाल वही था जिसे भाजपा अपने लिए गर्व की बात कहती है अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के प्रति नफरत भरी घटनाएं और विरोध की आवाज़ दबाने की कोशिशों से संबंधित। इस सवाल ने यकीनन मोदी जी के सफर का जायका कड़वा किया होगा लेकिन मोदी जी को याद रखना चाहिए कि पूरी दुनिया में भक्त नहीं रहते। और ये अल्पसंख्यकों के खिलाफ फैलाई गई नफरत का भूत मोदी साहब का पीछा छोड़ने वाला नहीं है, वो जहाँ भी दुनिया में जाएंगे ये भूत भी साथ जाएगा और ऐसे सवाल फिर पूछे जाएंगे। अमेरिका में हो रही इस प्रेसवार्ता पर पूरी दुनिया के विश्लेषकों की नज़र अवश्य रही होगी जिसमें सवाल कुछ जवाब कुछ वाला दृश्य बहुत चौंकाने वाला था। सवाल पूछने वाली अमेरिकी पत्रकार ने मोदी जी से पूछा कि वो अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के खिलाफ हुई घटनाओं पर क्या करेंगे लेकिन मोदी जी ने इस सवाल से हकटर भारत के लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देनी शुरू कर दी जिससे ये संदेश पूरी दुनिया में अवश्य गया होगा कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी भारतीय लोकतंत्र की जितनी चाहे प्रशंसा करें लेकिन अपनी सत्ता में वो ऐसे ही मानवाधिकारों को कुचलते रहेंगे और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलती रहेगी।
अब जबकि देश का एक राज्य मणिपुर जो दो जातियों के संघर्ष में जल कर बर्बाद हो रहा है ऐसे मे अमेरिका जैसे देश की यात्रा पर चले जाना खुद अचंभित करने वाला है। अमेरिकी यात्रा का जो महिमामंडन भारत की गोदी मीडिया ने किया और जो यात्रा की कामयाबी के गुणगान मीडिया कर रहा था लेकिन यात्रा की आवश्यकता और उसके परिणाम पर कोई चर्चा नहीं की जा रही है। क्या कोई अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषक बता सकता है कि फिलहाल अमेरिका की स्थिति दुनिया में वैसी सुपरपावर वाली रह गई है। जब अमेरिका इस स्थिति में रह ही नहीं गया है तो मोदी की अमेरिकी यात्रा का इतना शौर क्यों मचा रखा है। फिलहाल दुनिया में भारत पाकिस्तान बांग्लादेश जैसे तीन देश अमेरिका को वही सुपरपावर समय कर सलाम मारने पर लगे हुए हैं जबकि बहुत सारे देशों ने खुद को अमेरिकी ब्लाक से अलग इसलिए करना शुरू कर दिया है क्योंकि अमेरिका उस हैसियत में रह नहीं गया है।
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी अमेरिका से सीधे मिश्र जाएंगे और कमाल की बात है कि वहाँ की एक हज़ार साल पुरानी अलहकीम तारीखी मसजिद जो दुनिया की प्राचीनतम बड़ी मसजिदों में गिनी जाती है से दौरे की शुरुआत करेंगे।अमेरिका में पूछे गए सवाल का जवाब मिश्र की मसजिद में जाकर नहीं मिलेगा बल्कि भारत की मसजिद में ही मिल पाएगा। इसमें कोई शक नहीं केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद जिस तरह मुसलमानों के खिलाफ व्यवस्था से लेकर गली मुहल्लों में नफरत में बतहाशा वृद्धि हुई है। भारतीय जनता पार्टी इसी नफरत को अपना चुनावी एजेंडा बना कर चुनाव जीतती रही है लेकिन देश के बाहर इस बारे में जो सवालात खड़े हुए वो खुद देश के लिए नुकसादनदेह साबित हुए हैं। मिश्र के दौर से भी कुछ हासिल होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि मिश्र की आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब है। मिश्र भी बड़े कर्ज़ में दबा हुआ है। प्रधानमन्त्री मोदी को मिश्र के दौरे पर लोकतंत्र से संबंधित सवाल वहां के राष्ट्रपति से भी पूछना चाहिए जिन्हें सेना द्वारा एक चुनी हुई सरकार के राष्ट्रपति को हटाकर उन्हें बिठा दिया गया था। कुल मिलाकर सवाल ज्यों के त्यों बने हुए हैं कि आखिर इन दोनों देशों की यात्रा से देश को हासिल क्या होगा।