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मनीष सिंह
जब चीन के फौजी अपने बूटों से भारत का सर कुचल रहे है, भारत की सरकार, जनता और मिडीया ने आंखे मूंद ली है। राष्ट्र की सुरक्षा पर बड़ी बड़ी हांकने वाले रेजीम का यह सन्निपात आश्चर्यजनक है। मगर इससे ज्यादा आश्चर्यजनक, 130 करोड़ के देश की अपनी सीमाओं के अतिक्रमण से बेरुखी है।
शायद चीन ने भी न सोचा होगा, कि सब कुछ इतना आसान होगा। पिछले चालीस सालों में सीमा पर उसके एडवेंचर्स को माकूल जवाब मिलता रहा है। चीन की पहलकदमी की पहली खबर आते ही हर नागरिक का मनोमस्तिष्क उसकी ओर घूम जाता था। आज वह किलोमीटर फांदते हुए घुसा चला आ रहा है, और हम उसे चरागाह में घुस आए बैल से ज्यादा महत्व नही दे रहे।
हां अगर कभी कोई बहस है, तो वो यह कि 1962 में हमने कितनी जमीन खोई, 1947 में क्या खोया, या उसके पहले क्या क्या खोया। सच्चे झूठे किस्से सुनाए जा रहे है, गोया चीन जैसे आक्रांता का आना, और हिंदुस्तान की जमीन का जाना, हर दौर की एक सामान्य परिघटना है। जाहिर है कि हर सरकार, हर नेता तो चीन को जमीन खोता ही रहा है। मायने ये, कि यह सरकार, यह नेता भी अपने हिस्से की जमीन खो रहा है, तो इसमे कौन सी अचरज की बात है।
गाहे बगाहे, चीनी फौजियों को मार डालने और उनकी नकली कब्रो की फोटो जरूर फ्लैश होते है। कुल जमा पांच रफेल की तस्वीरों और बमो धमाकों के पुराने फुटेज का रिपीट टेलीकास्ट भी है। मगर व्यापक रूप से देश की सुरक्षा के मुद्दे पर इतनी अरुचि सत्तर साल में नही देखी गयी।
चीन की नीति, विस्तारवादी रही है। पर इस बार वह एक लोकलाइज्ड बखेड़ा नही कर रहा, वह कश्मीर से अरुणाचल और भूटान तक नए दावे कर रहा है। 1962 के बाद का सबसे बड़ा सैनिक जमावड़ा किया है। युध्द की ताल ठोक रहा है, नए इलाक़ों में घुस चुका है।
तो क्यों दुनिया के पांचवें सबसे बड़े परमाणु जखीरे पर बैठे देश की सीमाओं के साथ सीमा विवाद ताकत के बूते निपटाने के लिए में, यह वक्त मुकर्रर किया। क्या सोचा होगा, क्या आकलन किया होगा? दरअसल उसे मालूम है, यह वक्त पिछले 40 साल में सबसे ज्यादा माकूल है।
बुरी तरह विभाजित, बेपरवाह यह देश अपने आंतरिक, मानसिक युद्दों में रत है। यह निरन्तर छायायुद्धो में उलझा है। कहीं गलियों में, कहीं खाने की मेज पर। कहीं भाषणों में, कही टीवी पर। अपने आस पास, घरों, मित्रों सहपाठियों, सहकर्मियों के बीच गद्दारों और देशद्रोहियों की खोज करना..
किसी शहर का नाम बदलकर, कहीं इतिहास की किताबो में विजेताओं के नाम बदलकर। कही पड़ोस के मोहल्ले में धार्मिक नारेबाजी कर, कहीं युवाओं के हाथों में आदिम हथियार टिकाकर, कहीं किसी को गाली देकर... यह देश सात सालों से लगातार युध्द लड़ रहा है। यह युद्धों से थका हुआ देश है।
हर शाम उसे पता चलता है कि वह आज की लड़ाई जीत चुका है। हां, मगर कल एक नई लड़ाई है, एक नया मुद्दा है। किसी को न्याय दिलाना, किसी को डिसलाइक करना, कुछ ट्रेंड करना, एक झूठ का फैलाव करना, फिर झूठ का बचाव करना.. और फिर इस नई लड़ाई को भी जीत जाना। यह जीतों से थका हुआ देश है।
नीम-नशे में दीवार से पीठ चिपकाए भारत, बन्द आंखों से अपने मस्तिष्क की कंदराओं में लड़ाई-जीत-लड़ाई-जीत-लड़ाई-जीत की छवियों में डूबा है। उसे वो लपटें महसूस नही होती, जो उसके घर मे लगी आग से निकल रहे है। वह मस्त है, अपने नशे, हैलुसिनेशन में.. गहरे नशे में डूबा, परछाइयों से लड़ता यह नया भारत है। यह भारत होश में नही है।
इसलिए चीन के लिए यह माकूल वक्त है।