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तुर्की को अफगान शरणार्थियों के पलायन का खतरा जब से अगवानी स्थान में तालिबान सफल हो रहे हैं जबसे ऐसी वीडियो सामने आ रही है कि हजारों अफगान नागरिक छुप-छुपकर ट्रकों और बसों में सामान रखने की जगह बैठ बैठ कर तुर्की की तरफ जा रहे हैं. तुर्की का आरोप है कि अफगान शरणार्थियों को जानबूझकर तुर्की में भेजा जा रहा है. तुर्की के अधिकारियों का कहना है कि प्रतिदिन 500 से 2000 अफगान शरणार्थी तुर्की में घुस रहे हैं.
इनकरा में विदेश नीति संस्थान से जुड़े हुसैन बाग का कहना है कि तुर्की आशंकित है कि अगर अब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आ जाते हैं तो शरणार्थियों की तादाद में वृद्धि हो सकती है. शरणार्थियों की समस्या आने वाले दिनों में तुर्की की बहुत बड़ी समस्या बन जाएगी इसलिए तुर्की ने फैसला किया है कि वह ईरान के साथ अपनी 300 किलोमीटर की सीमा पर एक दीवार बनाएगा. तुर्की पहले ही 35 लाख सीरियाई शरणार्थियों को अपने आ रखे हुए हैं और लगभग एक लाख अफगान शरणार्थी भी तुर्की में पहले से मौजूद हैं. तुर्की शरणार्थियों के हवाले से यूरोपीय यूनियन के लिए निगरानी का किरदार भी अदा कर रहा है और इसके बदले में अरबों डालर की मदद हासिल कर रहा है. समझौते के तहत तुर्की को यूरोपीय यूनियन में शामिल पड़ोसी देशों के अंदर कूटनीतिक फायदे भी हासिल हो रहे हैं.
तुर्की में विपक्षी संगठन सरकार के यूरोपियन यूनियन से हुए समझौते के खिलाफ आगाह कर रहे हैं. विपक्ष के नेताओं के अनुसार पश्चिमी दुनिया ने देख लिया है के तुर्की को शरणार्थियों की खुली जेल में बदला जा सकता है और तुर्की में बढ़ रहे शरणार्थी तुर्की की वजूद की समस्या भी बन जाएंगे. ऑस्ट्रिया की चांसलर सेबेस्टियन कुर्ज ने भी पिछले महीने कहा कि घर बार छोड़कर आने वाले अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए तुर्की इलाके के दूसरे देशों ऑस्ट्रेलिया जर्मनी और स्वीडन की तुलना में बेहतर जगह है.
तुर्की की हुकूमत का अफगान शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि और वहां उन्हें रखने से संबंधित कोई पक्ष अभी सामने नहीं आया है. अभी कुछ दिनों में सरकार के मंत्रियों ने अपनी सरकार को यह कहते हुए सराहा है कि ये शरणार्थी तुर्की की अर्थव्यवस्था में अहम किरदार अदा करते हैं. कुछ लोग इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं. स्थानीय लोगों को भी बहुत सारी आशंकाएं हैं. तुर्की की बहुसंख्यक आबादी इन अफगान शरणार्थियों के लिए चाहती है कि वह तुर्की से वापस जाएं क्योंकि वह समझते हैं कि वैश्विक महामारी कोरोना और बढ़ती हुई महंगाई के चलते तुर्की इन शरणार्थियों का बोझ ज्यादा दिन तक नहीं उठा सकता.