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मोदी की खबर छपी तो भारत से साइबर हमला हो गया!
दक्षिण अफ्रीका के डेली मवेरिक (dailymaverick.co.za) ने कल खबर दी कि ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विमान से उतरने से मना कर दिया क्योंकि दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने उनका स्वागत करने के लिए एक कैबिनेट मंत्री को भेजा था। इस शुरुआती खबर के अनुसार अधिकारियों ने यह जानकारी दी थी। खबर में यह भी बताया गया था कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का स्वागत करने राष्ट्रपति सिरल रामफोसा खुद गये थे। अब इस खबर को गलत बताया जा रहा है इसलिए मेरा मुद्दा पुरानी खबर की पुष्टि या खंडन करना नहीं है। मैं भारत में खबर देने वालों का हाल बताना चाहता हूं। उनके राज में जो इमरजेंसी और तबके सेंसर से बहुत दुखी दिखते हैं।
आप जानते हैं कि हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने जापान गए थे। सम्मेलन के बाद रविवार, 21 मई की खबर के अनुसार शाम वे पापुआ न्यू गिनी पहुंचे जहां जेम्स मरापे ने उनके पैर छुए थे। जेम्स मरापे पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री हैं और मुझे याद आता है कि यह खबर यहां के अखबारों में पहले पन्ने पर भी छपी थी। प्रचार तो खूब हुआ था। उस समय खबर यह भी छपी थी कि भारत के प्रधानमंत्री को 'गार्ड ऑफ ऑनर' भी दिया। जी हां, पापुआ न्यू गिनी में। तब अखबारों ने यह भी बताया था कि जेम्स मरापे कौन हैं जिन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए अपनी एक महत्वपूर्ण परंपरा तोड़ी है।
अमर उजाला (amarujala.com) पर 'न्यूज डेस्क' की एक खबर में बताया गया (था) है, दरअसल, पापुआ न्यू गिनी में नियम है कि वहां पर सूर्यास्त के बाद आने वाले किसी भी नेता का औपचारिक स्वागत नहीं किया जाता, लेकिन पीएम मोदी के पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। पीएम मोदी वो पहले शख्स हैं, जिनके लिए इस देश ने अपनी पुरानी परंपरा को तोड़ा है। इसमें जेम्स मरापे के बारे में भी बताया गया है और यह भी कि उनका जन्म 1971 में हुआ था। इस हिसाब से भारत के प्रधानमंत्री से वे उम्र में 20 साल छोटे हैं। मुझे लगता है कि पापुआ न्यू गिनी का प्रधानमंत्री भारत के प्रधानमंत्री का जो उम्र में उनसे 20 साल बड़े हैं, पैर छुए तो कोई खबर नहीं है। पर प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री का पैर छुएं तो खबर बनती है। हालांकि, तब उसपर कोई टिप्पणी करने का मतलब नहीं था।
यह बताने का भी नहीं कि गूगल के अनुसार, "पापुआ न्यू गिनी इंडोनेशिया के पास प्रशांत महासागर क्षेत्र में एक स्वतंत्र राष्ट्र है जो दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर क्षेत्र में द्वीपों का एक समूह है। यहाँ की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी है। केवल 60 लाख जनसंख्या (अभी भी एक करोड़ यानी दिल्ली के एक तिहाई से भी कम है) वाला देश विविधताओं के देश के रूप में भी जाना जाता है। इतनी जनसंख्या में ही यहाँ लगभग 850 भाषाएँ बोली जाती है और कई धार्मिक समुदाय यहाँ निवास करते हैं। यहाँ की जनसंख्या का सिर्फ़ 18 प्रतिशत भाग शहरी क्षेत्रों में निवास करता है।" यह परिचय हिन्दी में ही है और मैंने कॉपी पेस्ट किया है और स्वतंत्र राष्ट्र, केवल साठ लाख, 850 भाषाएं, सिर्फ 18 प्रतिशत आदि में मैंने कुछ जोड़ा घटाया नहीं है। सब ऐसे ही लिखा हुआ है।
अब ताजे मामले पर आता हूं। डेली मवेरिक ने अपनी खबर के बाद आरोप लगाया कि मोदी के आवेश प्रदर्शन पर खबर के बाद भारत ने उसपर संदिग्घ साइबर हमला किया। (अंग्रेजी में खबर का शीर्षक है, इंडिया हिट्स डेली मवेरिक विद मलेसियस साइबर अटैक आफ्टर रिपोर्ट ऑन मोदीज टैनट्रम)। मुझे लगता है कि पहली खबर को आप चाहे महत्व न दें, दूसरी खबर महत्वपूर्ण है। पहली सही हो तो भी, नहीं हो तो भी। नरेन्द्र मोदी की ट्रोल सेना की मौजूदगी और 2015 की एक खबर के बाद यह सामान्य खबर नहीं है। 01 जुलाई 2015 को अद्यतन एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार असल में हुआ यह था कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का विकीपीडिया प्रोफाइल किसी सरकारी आईपी ऐड्रेस से 26 जून को बदला गया था और गलत जानकारी दी गई थी। 05 अगस्त 2015 को अद्यतन की गई पीटीआई की खबर के अनुसार संसद में एक लिखित जवाब में कहा गया था कि इसकी जांच शुरू हो गई है। पर मुझे जांच रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
ऐसे में भारत से साइबर अटैक किसने किया, यह महत्वपूर्ण है। जब 2015 में विकीपीडिया प्रोफाइल बदला जा सकता था तो जाहिर है अभी हमला हो सकता है। इस पर यकीन के साथ कुछ तब कहा जाता जब जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक होती। आठ साल में यह सब तो नहीं हुआ आज किसी अखबार में (पहले पन्ने पर) यह खबर भी नहीं दिखी। अल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर (@zoo_bear)ने सुबह यह खबर दी और लिखा कि समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा सरकारी सूत्रों से आधिकारिक बयान साझा किये जाने का इंतजार कर रहा हूं। मैंने उन्हें साइबर हमले की खबर बताई तो मुझे ही लोग @DFRAC_org के ट्वीट के हवाले से बताने लगे कि डेली मवेरिक की खबर गलत है। मुझे नहीं लगता कि खबर गलत है पर हो भी तो सरकारी बयान क्यों नहीं है और है तो कहां है? दूसरे, साइबर हमले पर भी जवाब नहीं होना चाहिए? लेकिन उसपर जवाब नहीं है क्योंकि वह वायरल नहीं है और वायरल इसलिए नहीं है क्योंकि @DFRAC_org अपनी भूमिका में है।
@DFRAC_org के बारे में समझना उसके एक और फैक्टचेक की चर्चा से काफी आसान हो जायेगा। खबर एबीपी न्यूज और दैनिक भास्कर की थी। इसके अनुसार कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था कि चंद्रयान के लिए काम करने वालों को 17 महीने से वेतन नहीं मिला है। डिजिटल फोरेनसिक रिसर्च एंड एनालिटिक्स सेंटर ने इस खबर को गलत तो नहीं पर भ्रम फैलाना वाला कहा था और वैसे ही ट्वीट कर दिया था। तथ्य यह है चंद्रयान के लिए सरकारी कंपनी एचईसी ने जो काम किया था उसके पैसे बकाया होने की बात हो रही थी। कायदे से चंद्रयान बनाने वालों का पैसा है, देना इसरो या भारत सरकार को ही है, नहीं मिला है तो सारे तथ्य सही हैं और खबर भ्रम फैलाने वाली नहीं है। इसरो को जब भारत सरकार पैसे देते है तो उसने पैसे नहीं दिये या भारत सरकार ने नहीं दिये बात एक ही है फिर भी डीफ्रैक सरकार का बचाव करता है। पर वह अलग मुद्दा है।