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ख्वाब में ही जीते रहे गिलानी - ज्ञानेन्द्र रावत
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क्या आप जानते हैं सैयद अली शाह गिलानी को। यदि नहीं तो जान लीजिए इन महाशय को। यह हैं कश्मीर के प्रमुख अलगाववादी नेता। इनकी खासियत यह रही कि इन महाशय ने कशमीर की नौजवान पीडी़ को दशकों तक कशमीर की आजादी के नाम पर बरगलाया।
यही नहीं इनको कशमीर की समस्या का हल पाकिस्तान में या फिर आजाद कशमीर नाम के झुनझुने में नजर आता था। सबसे बडी़ बात यह कि इनको यह भली भांति मालूम था कि 1965, 1971 और फिर कारगिल की लडा़ई के बाद भी पाकिस्तान को कुछ हासिल नहीं हुआ और मौजूदा हाल में पाकिस्तान में अपने ही खाने के लाले पडे़ हुए हैं, वह किसी और को क्या खिलाएगा। पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश बन चुका है। बलूचिस्तान में आजादी पाने के लिए तड़प रहा है लेकिन इनका कश्मीर की आजादी का राग खत्म नहीं हुआ।
वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का कहना है कि इसके बाबजूद यह शख्श कश्मीरी नौजवानों को अपने जज़बाती भड़काऊ भाषणों के जरिये हिन्दुस्तान के खिलाफ जहर उगलता रहा और सीधे-साधे घाटी में रहने-बसने वाले कश्मीरियों को आतंकवाद की राह पर धकेलता रहा और उनकी जिंदगियों को नरक बनाता रहा। अब यह आराम से जन्नत में तशरीफ फरमायेंगे और वहां कश्मीर का राग अलापकर खुद को मसीहा बनने का ख्वाब बुनते रहेंगे ।