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Jammu-Kashmir में बहाल होगी 4G इंटरनेट सेवा या नहीं? सुआरीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट बहाली की मांग पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील हुजेफा अहमदी की दलील है कि मौजूदा दौर में 2G सर्विस के चलते बच्चों की पढ़ाई, कारोबार में दिक्कत आ रही है.
'वीडियो कॉल के जरिए डॉक्टरों से सलाह जरूरी'
याचिका में कहा गया है कि कोरोना महामारी के बीच राज्य में लोग वीडियो कॉल के जरिए डॉक्टरों से जरूरी सलाह नहीं ले पा रहे हैं. इंटरनेट के जरिये डॉक्टरों तक पहुंचने का अधिकार, जीने के अधिकार के तहत आता है. लोगों को डॉक्टर तक पहुंचने से रोकना उन्हें आर्टिकल 19, 21 के तहत मिले मूल अधिकार से वंचित करना है.
अहमदी ने कहा कि अभी राज्य में 701 कोरोना के केस हैं, 8 की मौत हो चुकी है. इंटरनेट स्पीड बाधित होने के चलते कोरोना इलाज को लेकर डॉक्टरों से जरूरी जानकारी उन्हें नहीं मिल पा रही है. करीब 75 डॉक्टर इसे लेकर सरकार को ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन सरकार पर उसका कोई असर नहीं हुआ है.
इस पर अटॉनी जनरल के के वेणुगोपाल की दलील है कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट स्पीड पर नियंत्रण आंतरिक सुरक्षा के लिए जरूरी है. राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है. ये फैसला सरकार पर छोड़ देना चाहिए. देश की सम्प्रभुता से जुड़े ऐसे मसलों पर सार्वजनिक तौर पर या कोर्ट में बहस नहीं की जा सकती. कोर्ट को इस मसले में दखल नहीं देना चाहिए.
इस मामले में पिछले बुधवार को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे में जवाब दाखिल कर याचिका खारिज करने की बात कही. तर्क दिया कि 4G का इस्तेमाल आतंकी करेगें, इसलिए यह नहीं लागू किया जा सकता है.
'सभी जरूरी सेवाएं 2G के सहारे चल रहीं'
प्रशासन ने कहा कि सभी जरूरी सेवाएं 2G के सहारे चल रहीं हैं. राज्य में आंतरिक सुरक्षा को खतरा बना हुआ है. मोबाइल इंटरनेट 2G रखने से भड़काऊ सामग्री के प्रसार पर अंकुश लगा है. फिक्स लाइन इंटरनेट बिना स्पीड लिमिट उपलब्ध है. छात्रों के लिए शिक्षा सामग्री उपलब्ध है जो 2G इंटरनेट से हासिल करना संभव है.
राज्य प्रशासन ने कहा कि इस बात की पहले से ही आशंका थी कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी हिंसा को फैलाने, कानून व्यवस्था का संकट पैदा करने के लिए इंटरनेट के जरिए फर्जी वीडियो, तस्वीरें और भड़काऊ सामग्री का प्रचार किया जाएगा.
राज्य सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका के रूप में अपनी याचिका दायर की है लेकिन इंटरनेट सेवा की मांग करना मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आता है.
पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि डॉक्टर से बात करने के लिए, छात्रों की ऑनलाइन क्लास के लिए 4G सेवा की बहाली जरूरी है. याचिका के जवाब में केन्द्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वहां अभी भी आतंकवाद है, आतंकवादी फोर जी का इस्तेमाल आंतकी गतिविधियों के लिए करेगें.
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कुछ इलाकों में तो बहाल किया जा सकता है लेकिन हर जगह नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है. इसलिए अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.
हर जगह 4G इंटरनेट सेवा बहाल करना संभव नहीं
इस पर सुनवाई के जस्टिस रमना ने कहा कि आपको जो कहना है, हलफनामा दाखिल कीजिए. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुछ इलाकों में तो 4G इंटरनेट सेवा बहाल किया जा सकता है लेकिन हर जगह संभव नहीं है. कोर्ट ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से रविवार तक हलफनामा दाखिल करने का दिया आदेश दिया था.
फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की ओर से दायर जनहित याचिका में सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें मोबाइल इंटरनेट की गति 2-G तक ही सीमित रखी गई है.
याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर की जनता को 4-जी इंटरनेट सेवाओं से वंचित रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 21ए का उल्लंघन है.