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रघुवर की कमजोरी भी मिशन झारखंड में बड़ा बाधक बना, आरपीएन सिंह का नहीं चला दांव, चार बातें बनी मुख्य!
2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में कोई पांच माह झारखंड में रहने का मौका मिला था जिस दौरान झारखंड की सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक मिजाज को बहुत ही करीब से देखने और समझने का मौका मिला। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक दिया था, पैसा की बात छोड़िए हर बूथ पर देश के अलग अलग हिस्सों से आदिवासी ,पिछड़ा ,सवर्ण और बनिया जाति के लोगों को उतार दिया था। इतना ही नहीं बाबूलाल मरांडी के सहारे बीजेपी हर विधानसभा क्षेत्र में महागठबंधन के सामाजिक समीकरण में सेंधमारी के लिए बहुत ही सोच समझ कर प्रत्याशी खड़ा किये थे और बीजेपी पैसा से लेकर सभी तरह का संसाधन मुहैया करा रहा था । इसी दौरान चुनावी मिजाज को समझने के लिए सारंडा जंगल में स्थित आदिवासियों के गांव में गये, पुरुष से बात करना मुश्किल हो रहा था पहले हड़िया पीने के लिए पैसा दीजिए फिर बात करेंगे पत्रकार हैं तो क्या हुआ। जहां तक मुझे याद है बहस चल ही रहा था कि एक महिला दौड़े दौड़े आयी और बोली छोड़ी छोड़ी इधर आइए ।
फिर हम लोग उस महिला के साथ चल दिये वो अपने घर के पीछे ले गयी जहां दोपहर के समय काम करके लौटी हर उम्र की महिलाएं पेड़ की नीचे बैठकर आराम कर रही थी एक घंटे तक बात हुई उसी दौरान बाबूलाल मरांडी के उम्मीदवार का क्या होगा वो भी तो आदिवासी है, तपाक से एक महिला बोलती है यह रघुवर के लिए काम कर रहा है । मैं तो हैरान रह गया जहां ना अखबार पहुंचता है ना टीवी है ना सोशल मीडिया है वहां ये बात कैसे पहुंच गई कि बाबू लाल बीजेपी के लिए काम कर रहा है। इस आदिवासी महिला के इस संवाद के साथ ही मुझे लग गया कि बीजेपी के लिए इस बार कोई गुंजाइश नहीं है। वैसे इस बात की चर्चा मैंने इसलिए किया कि बिहार की तरह ही झारखंड के हर व्यक्ति में राजनीतिक समझ है। अब विषय वस्तु पर आते हैं पिछले छह माह से बीजेपी झारखंड की सरकार को अस्थिर करने में लगी हुई है और इस खेल में मीडिया,कोर्ट,राज्यपाल,चुनाव आयोग ईडी और सीबीआई पूरी ईमानदारी के साथ खड़ी है फिर भी हेमंत पकड़ में नहीं आ रहा है।वैसे बीजेपी इस खेल को अंजाम तक पहुंचाने के लिए क्या क्या बिसात बिछा रखी है इस बार के रांची प्रवास के दौरान एक बार फिर से देखने को मिला।
1– बीजेपी का क्या है मिशन झारखंड भाजपा ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9a का हवाला देते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग निर्वाचन आयोग से की थी इस पर आयोग निर्णय लेकर राज्यपाल को एक सप्ताह पहले ही फैसले की कॉपी भेज चुकी है लेकिन राज्यपाल अभी तक उस फैसले पर अमल रोक रखा है ।
जानकार बता रहे हैं कि शुरुआत में इसी फैसले के आधार पर बीजेपी हेमंत से 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर बड़ी डील करना चाहता था लेकिन पूरी कोशिश के बावजूद हेमंत तैयार नहीं हुआ फिर यह तय हुआ कि हेमंत की सदस्यता समाप्त कर दी जाये और चुनाव लड़ने से रोका नहीं जाए और इस बीच 15 विधायक को किसी भी स्थिति में तोड़ा जाये ताकि दोबारा शपथ लेने के बाद जब विधानसभा में हेमंत को बहुमत साबित करने को कहां जाये तो सरकार अल्पमत में आ जाए और ऐसी स्थिति में झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा लेकिन त्रिपाठी जी 50 करोड़ तक पहुंच गये फिर भी पांच से ज्यादा अभी तक नहीं जुटा पाए हैं फिर भरोसा नहीं है कि पैसा लेने का बाद भी विधायकी से त्यागपत्र देगा कि नहीं देगा ।
2–कांग्रेस को तोड़ने में आरपीएन सिंह का इस्तमाल कर रही है बीजेपी
अभी वर्तमान में जो बीजेपी है वह जब किसी मिशन पर काम करना शुरु करती है तो तोड़फोड़ अगर गोवा में हो रहा है तो निशाने पर महाराष्ट्र रहता है। इसी तरह यूपी चुनाव से ठीक पहले झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह को बीजेपी कांग्रेस में सिर्फ यूपी के लिए नहीं शामिल कराया था उसका लक्ष्य झारखंड था। हालांकि इस खेल को कांग्रेस समझ गयी और जिसके सहारे आरपीएन सिंह कांग्रेस को तोड़ रहे थे उसका ऑपरेशन खेला शुरु होने से पहले ही कांग्रेस ,ममता और हेमंत ने मिलकर कर दिया जिस वजह से यह खेल लम्बा खीच रहा है।
3–हेमंत झारखंड स्वाभिमान जगाने में कामयाब रहे बीजेपी के मिशन झारखंड में हेमंत को घेरने के लिए बीजेपी चारो और हमला कर रही है इस हमले में दुमका की बेटी अंकिता सिंह की हत्या का भी सहारा लिया गया ताकि प्रदेश में हिंदू मुसलमान का विवाद गहराये और कानून व्यवस्था बिगड़े ।लेकिन इन सारे व्यवधानों के बीच सोरेन अपने विधायकों को यह समझाने में कामयाब हो गये कि यह मत समझे यह हमला सिर्फ मेरे उपर है यह हमला झारखंड के आदिवासी और मूल निवासी पर है और इस बार कमजोर पड़े तो फिर उठने में कितना वर्ष लग जाएगा कहना मुश्किल है, यह बात झारखंड के विधायकों में इस तरह बैठ गया है कि अब किसी भी स्थिति में हेमंत का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है । हमारी तीन चार विधायक से बात हुई सबका यही कहना था संतोष जी झारखंड में जमीन के पांच फीट अंदर पैसा ही पैसा है हम लोग सीधा ठहरे कौन कब कहां कानून में फसा दे पता ही नहीं चलता है ऐसे में कब तक डरते रहेंगे जो होगा देखा जायेगा लेकिन इस बार झुकेंगे नहीं पैसा हम लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखता है देखते ही ना हम लोगों का खर्चा ही क्या है दो चार हजार रुपया रोज का काफी है इसलिए पैसा से कोई खरीद नहीं सकता। यही ताकत हेमंत को मोदी और शाह से सीधी लड़ाई में भी अंतिम क्षण तक खड़ा कर रखा है वैसे विधानसभा का सत्र बुला कर हेमंत ने बीजेपी को सीधी चुनौती दी है।
4–रघुवर की कमजोरी भी मिशन झारखंड में बड़ा बाधक हैइन सबके बावजूद मोदी और शाह का जो रघुवर प्रेम है वो मिशन झारखंड के लिए एक बड़ी बाधक है क्यों कि बाबू लाल ,अर्जुन मुंडा सहित बीजेपी के अधिकांश नेता इस खेल में रघुवर की सक्रियता के कारण दिल से लगा हुआ नहीं है साथ ही बीजेपी का कोई भी विधायक चुनाव में जाने को तैयार नहीं है इस वजह से भी बीजेपी को निर्णय लेने में परेशानी हो रही है । वैसे झारखंड के राजनीतिक संकट का परिणाम जो हो लेकिन यह बात तो आ ही गयी कि मजबूत इच्छाशक्ति हो तो मोदी और शाह जैसे योद्धा से भी मजबूती के साथ लड़ा जा सकता है ।