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स्टेन स्वामी की गिरफ्तार, क्या आप जानते है कि स्टेन स्वामी कौन है?
संजय कुमार सिंह
मैंने आज के जो अखबार देखे उनमें से किसी में 83 साल के स्टेन स्वामी को एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए जाने की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। द टेलीग्राफ अपवाद है। बेशक उसमें यह खबर लीड है। आइए आज आपको स्टेन स्वामी के बारे में बताऊं। आप जानते हैं कि उन्हें झारखंड की राजधानी रांची के अपने घर से गिरफ्तार किया गया है। वे वहां छोटानागपुर-झारखंड के स्थानीय लोगों के विस्थापन के खिलाफ दशकों से संघर्ष करते रहे हैं। एनआईए की जांच में उन्होंने पूरा सहयोग किया था। उनसे 15 घंटे पूछताछ की गई थी और अब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
द टेलीग्राफ ने अपनी खबर में बताया है कि देश में कैथलिक चर्च की शीर्ष संस्था कैथलिक बिशप्स कांफ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने भी स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी की निन्दा की है और यह दो कारणों से खास है। पहला तो यह कि चर्च प्रतिष्ठान हाल के समय में अपनी बात रखने से हिचकता रहा है क्योंकि नरेन्द्र मोदी सरकार ने विदेशी धन के स्रोतों पर हमला बोल रखा है। दूसरा, सीबीसीआई का बयान सिर्फ स्टेन स्वामी पर केंद्रित है जबकि 15 अन्य अधिकार कार्यकर्ता,अधिवक्ता, शिक्षाविद और लेखक इसी मामले में जेल में बंद हैं। स्टेन स्वामी को 23 अक्तूबर तक जेल भेज दिया गया है।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने एक ट्वीट कर कहा कि, फादर स्टैन ने अपनी पूरी जिंदगी आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ने में लगाई है। इसलिए मोदी सरकार ऐसे लोगों को चुप करा रही है क्योंकि इस सरकार के लिए कोयला खनन करने वाली कंपनियों का फायदा आदिवासियों की जिंदगी और रोजगार से ज्यादा जरूरी है। सीबीसीआई के सेक्रेट्री जनरल फेलिक्स मकैडो ने कहा है कि जुलाई-अगस्त में जब उनसे पूछताछ की गई थी तो उन्होंने जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग किया था। विस्तृत बयान दिया था और खुद को निर्दोष बताया था।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस गिरफ्तारी पर कहा है, ये कैसी जिद्द है कि विरोध की सारी आवाज दबा दी जाएगी। टेलीग्राफ ने आज इसे पहले पन्ने पर कोट बनाया है। झारखंड जनतांत्रिक महासभा के कृष्णा लोहार और दीपक रंजीत ने कहा है कि यह वंचितों की आवाज को कुंद करने की साजिश है। झारखंड के अखबारों में आज छपी खबरों के अनुसार उन्होंने विस्थापन, कॉरपोरेट द्वारा संसाधनों की लूट और विचाराधीन कैदियों की स्थित पर शोधपरक काम किए हैं। संभव है कि स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी का कारण भले ही एनआईए आंदोलन बता रहा है पर झारखंड में उनकी पैठ हो।
दूसरी ओर राज्य की पिछली भाजपा सरकार ने छोटानागपुर काश्तकारी (टेनेंसी या किराएदारी) अधिनियम 1908 (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 (एसपीटी) में संसोधन की कोशिश की थी। मूल रूप से संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1876 का है और बंगाल के साथ लगी झारखंड की सीमा में संथाल परगना गैर-आदिवासियों को आदिवासी भूमि की बिक्री पर रोक लगाता है। स्टेन स्वामी ने इसका विरोध किया था। यही नहीं 2013 में किए गए संशोधन का भी लगातार मुखरता से विरोध करते रहे।
रघुवर दास की भाजपाई सरकार की लैंड बैंक की योजना का भी उन्होंने विरोध किया था। इसके बावजूद भिन्न सरकारों ने इस कानून में समय-समय पर 26 संशोधन किए हैं। आदिवासियों के शोषण और भेदभाव के खिलाफ बिरसा मुंडा द्वारा किये गए संघर्ष के बाद 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम पास हुआ था। इस अधिनियम के तहत आदिवासी की भूमि को गैर-आदिवासियों के लिये स्थानांतरित किया जाना प्रतिबंधित है। बाद की सरकारों ने इन कानूनों में संशोधन कर संशोधन कर भूमि अधिग्रहण के नियमों को आसान बनाया है। इससे आदिवासियों की समस्या और बढ़ गई है। कई कारखाने और कारोबार शुरू हुए इससे इस क्षेत्र में बाहर के लोगों का बसना जारी है।