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झारखंड में महिलाओं का हाल तो जो है सो है पर वहां के महिला आयोग का हाल महिलाओं से भी बुरा है। हालात यह है कि पिछले दो वर्षों से झारखंड महिला आयोग के कमरों का दरवाजा तक नहीं खुला है। दो वर्षों से इन कमरों के बाहर ताला लटका हुआ है। लंबे समय से यहां के अध्यक्ष का कार्यभार भी किसी को नहीं सौंपा गया है।
25 अधिकारियों और कर्मियों की तैनाती वाला यह विभाग आज खुद अपनी बदहाली के आंसू रो रहा है। फिलहाल जो कार्यालय है उसमें एक कमरे में अवर सचिव स्तर के एक अधिकारी और 2 कर्मी ही बैठते हैं।
इन कर्मियों का काम बस इतना है कि शिकायतकर्ताओं के आवेदन को रजिस्टर में दर्ज कर केस नंबर व विषय लिख लेते हैं। फिर उस आवेदन को उसी तरह फाइलों में बंद कर आलमारी में रख देते हैं। जहां वे अनंत समय तक के लिए धूल खाने के लिए बंद हो जाते हैं। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड राज्य महिला आयोग में बीते दो सालों में 4174 शिकायतें आईं और सबके सब फाइलों में बंद होकर रह गए।
घरेलू हिंसा से लेकर हत्या जैसे मामलाें में इंसाफ की आस में सैकड़ों लोक आस लगाए बैठे हैं पर महिला आयोग की बदहाली के बीच उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। इंसाफ के लिए केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि कई पीड़ितों के माता-पिता, बच्चे, भाई और बहन इंतजार कर रहे हैं। आपको बता दें कि जब तक झारखंड महिला आयोग पूरी तरह से कार्यरत था ताे रोजाना 15-20 लोग कार्यालय आकर अपने आवेदन दिया करते है।
अब अध्यक्ष नहीं होने के कारण आवेदन आने भी कम हो गए हैं। अब सिर्फ डाक से 40-50 आवेदन ही आ रहे हैं। आपको बता दें कि आयोग के पास महिलाओं से जुड़े घरेलू हिंसा के मामले सबसे अधिक हैं। इनमें मानसिक-शारीरिक उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना, यौन शोषण, दुष्कर्म, डायन प्रताड़ना से जुड़े मामले हैं।
भले ही झारखंड महिला आयोग का हाल वर्तमान में झारखंड की महिलाओं से भी बदहाल है पर यहां की फाइलों में कई दर्द भरे दास्तान धूल खा रहे हैं जिन्हें इंतजार है कि कोई अध्यक्ष आएगा और उनकी फरियाद सुनेगा।