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पत्नी प्रेमी के साथ भागी, पति ने अंतिम संस्कार कर खोला राज, तो बेटे ने मां की दी मुखाग्नि
बाेकाराे। प्रेमी के साथ प्रेमिका को, किसी कि पत्नी अपने प्रेमी के साथ भागने की खबर सुनी होगी लेकिन पत्नी के भाग जाने के बाद पति ने जीते जी अंतिम संस्कार करते नही सुना होगा, क्योंकि हिंदू परंपरा में जीते जी अंतिम संस्कार नही किया जाता है। लेकिन अब हम आप को बोकारो जिला के तेलाे थाना क्षेत्र के बंदियो निवासी राजीव कुमार के पास ले के चलते है जहां पर पत्नी के भाग जाने के बाद वो उसका अंतिन संसकार कर देते है।
बतादें कि राजीव कुमार ने अपनी पत्नी की बेवफाई से नाराज हाेकर उसके सामाजिक बहिष्कार का संदेश नए तरीके से दिया। पति का आरोप है कि उनकी पत्नी (32) अपने प्रेमी के साथ भाग गई। वह फिलहाल, वह अपने प्रेमी के साथ रांची में रह रही है। विराेध जताने के लिए पति ने हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार पत्नी का पुतला बनाकर उसका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया। नाबालिग पुत्र ने अपनी मां के प्रतीकात्मक पुतले को मुखाग्नि दी।
राजीव ने बताया कि अब उसकी पत्नी मर चुकी है। उसके साथ उसका और उनके परिवार के सदस्याें काे किसी भी प्रकार का कोई रिश्ता नहीं रहा। पत्नी दो बच्चों की मां हाेने के बावजूद अपने गांव में ही रहने वाले अपने प्रेमी के साथ 4 जनवरी को घर से भाग गई थी।
मरने पर बेटा ही क्यों देता है मुखाग्नि?
शास्त्रों के अनुसार बारह प्रकार के पुत्र बताए गए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-औरस पुत्र, गोद लिया पुत्र, भाई का पुत्र, पुत्री का पुत्र, पुत्र का पुत्र, खरीदा हुआ पुत्र, कृत्रिम पुत्र, दत्त आत्मा आदि। यदि किसी मृतक का खुद का पुत्र ना हो तो इन 12 प्रकार के पुत्रों में से कोई पुत्र मृतक को मुखाग्नि दे सकता है।
यदि किसी मृतक की पुत्री मुखाग्नि देती है तो यह शास्त्रों के अनुसार अनुचित बताया है। किसी कन्या या महिला को शमशान में आने का भी अधिकार नहीं दिया गया है। अत: मृतक कोई महिला या कन्या मुखाग्नि नहीं दे सकती है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।
मृतक चाहे माता हो या पिता अंतिम क्रिया पुत्र ही संपन्न करता है। इस संबंध में हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पुत्र पु नामक नर्क से बचाता है अर्थात् पुत्र के हाथों से मुखाग्नि मिलने के बाद मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। इसी मान्यता के आधार पर पुत्र होना कई जन्मों के पुण्यों का फल बताया जाता है। पुत्र माता-पिता का अंश होता है। इसी वजह से पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें मुखाग्नि दे। इसे पुत्र के लिए ऋण भी कहा गया है।