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नौकरी तो दी नहीं और नौकरी परीक्षा की ईमानदार व्यवस्था भी नहीं दे सकी मोदी सरकार

Special Coverage News
15 March 2019 5:56 AM GMT
नौकरी तो दी नहीं और नौकरी परीक्षा की ईमानदार व्यवस्था भी नहीं दे सकी मोदी सरकार
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2017 की यह परीक्षा है और मार्च 2019 तक रिज़ल्ट की कोई संभावना नहीं दिख रही है। दो साल में एक परीक्षा पूरी नहीं हो सकी। 30 लाख परीक्षार्थियों ने 8000 से अधिक पदों के लिए इम्तहान दिए।

वो जवानी जवानी नहीं जिसकी कोई कहानी न हो। क्रांति फिल्म के एक गाने की यह पंक्ति भारत के युवाओं की शक्ल पर लिखी नज़र आती है। हमारे युवा न अपनी कहानी लिख पा रहे हैं और न कोई उनकी कहानी लिखना चाहता है। हज़ारों करोड़ के इस चुनाव में युवाओं का इस्तमाल उस प्लेट की तरह किया जा रहा है जिसे खाने के बाद शामियाने के बाहर फेंक दिया जाना है। पिछले दिनों आचार संहिता लागू होने से पहले विज्ञापनों की होली खेली गई। करोड़ों रुपये फूंक दिए गए जो अब कूड़ा बन चुके हैं। इस पैसे से कितनों को रोज़गार मिल जाता। हर मंत्रालय के विज्ञापन पर प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा है,तो सवाल उन्हीं से है कि स्टाफ सलेक्शन कमीशन को लेकर उनका विज्ञापन कहां है, क्यों नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति ने युवाओं को एक रोज़गार दिया। दिन भर मोदी मोदी करो। जो मोदी मोदी न करे उसे गाली दो। युवाओं ने यह काम पूरी ईमानदारी से किया। मोदी के लिए दूसरों को गाली दी तो मोदी को ख़ूब प्यार भी किया। इसकी शिकायत प्रधानमंत्री नहीं कर सकते कि युवाओं ने उन्हें कम प्यार किया है। अब जब अपनी नौकरी को लेकर युवा मारे-मारे फिर रहे हैं तो मोदी नज़र नहीं आ रहे हैं। उल्टा रोज़गार के सवाल पर विवादित आंकड़ों से उन्हीं को झुठला रहे हैं।

चैनलों पर जॉब के नाम से इश्यू पर चर्चा तो है मगर जॉब सिस्टम के सताए नौजवानों के चेहरे नहीं हैं। लाखों नौजवानों को एक नंबर में बदल दिया गया है। 30 प्रतिशत मानते हैं कि जॉब इश्यू है। एक सेकेंड के बाद उसी स्क्रीन पर नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का नंबर आ जाता है। 30 प्रतिशत की जगह 62 प्रतिशत आ जाता है। 62 प्रतिशत के सामने 30 प्रतिशत की औकात ज़ीरो हो जाती है। चर्चा शिफ्ट हो जाती है। मोदी का विकल्प नहीं है।

SSC CGL 2017 के परीक्षार्थियों के मेसेज आए जा रहे हैं। हर मेसेज में एक भयावक अकेलापन और मायूसी दिख रहा है। सात महीने से उनका मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस परीक्षा में धांधली का आरोप लगा था। मगर सज़ा भुगत रहे हैं वे छात्र भी जिन्होंने ईमानदारी से परीक्षा दी है। वे सज़ा नहीं भुगत रहे हैं बल्कि नौकरी पाने के साल गंवा रहे हैं। यह एक उम्रकैद से कम नहीं है।

2017 की यह परीक्षा है और मार्च 2019 तक रिज़ल्ट की कोई संभावना नहीं दिख रही है। दो साल में एक परीक्षा पूरी नहीं हो सकी। 30 लाख परीक्षार्थियों ने 8000 से अधिक पदों के लिए इम्तहान दिए। 98000 चौथे चरण की परीक्षा का इंतज़ार कर रहे हैं। तीन चरणों में पास करने के बाद इंतज़ार लंबा होता जा रहा है। इसे पास करने के बाद वे 8000 पदों के लिए चुने जाएंगे। उनक लिए एक एक दिन भारी पड़ रहा है। मुमकिन है ज़्यादातर भाजपा समर्थक ही होंगे। भाजपा भी उनकी आवाज़ नहीं बन रही है। उसके नेताओं को इनके लिए सड़क पर उतरना था। लगता है कि नौकरी के मुद्दे पर किसी को इन युवाओं का समर्थन नहीं चाहिए। सबको यकीन है कि हिन्दू मुस्लिम डिबेट फैक्ट्री से निकले ये युवा भाजपा के आजीवन गुलाम हो चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट को एक काम करना चाहिए। नौकरी की परीक्षाओं से संबंधित सभी मुकदमों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में करानी चाहिए। राज्यों में सरकारें हाई कोर्ट के सिंगल और डबल बेंच के आदेश के बाद भी भर्ती परीक्षा पर कार्रवाई नहीं करती हैं। नियुक्ति पत्र नहीं देती हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लटकता है। उसे ऐसे मामलों को अर्जेंट केस की तरह सुनना चाहिए। परीक्षा कैंसिल हो गई तो युवाओं के पास दोबारा चांस नहीं रहता है। इसलिए कोर्ट को संवेदनशील होना चाहिए कि फैसला जल्दी हो ताकि युवाओं के अवसरों पर असर न पड़े। फैसला आने में होने वाली देरी अवसरों की समानता की भावना के ख़िलाफ़ है। सुप्रीम कोर्ट हमारे संविधान और अवसरों का संरक्षक है।

स्टाफ सलेक्शन कमीशन के दुस्साहसी किस्से अनेक हैं। SSC STENOGRAPHER 2017 की एक परीक्षा है। यह मार्च 2019 है। इस परीक्षा का भी रिज़ल्ट अभी तक नहीं आया। नौजवानों की व्यथा अंतहीन हो चुकी है। एक नौजवान यह परीक्षा पास कर अगले चरण की परीक्षा का इंतज़ार कर रहा है। अगस्त महीने से तारीख ही निकल रही है मगर परीक्षा नहीं हो रही है। इस नौजवान ने एक और परीक्षा पास की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट के लिए स्टेनोग्राफर का इम्तहान कराया था। इसकी लिखित परीक्षा पास कर चुका है। स्किल टेस्ट देने के लिए लखनऊ सेंटर पर पहुंचे और तकनीकि ख़राबी के नाम पर परीक्षा रद्द कर दी गई।

यह चुनाव बेरोज़गारी और नौकरी का सवाल है। युवा अगर अपने लिए राजनीतिक दलों को मजबूर न कर सके उनके अगले पांच साल भी भयानक होने जा रहे हैं। विज्ञापन और चैनलों के बनाए मुद्दों से लड़ना ही होगा। अब तो प्रधानमंत्री ने नौकरी के बारे में झूठ भी बोलना बंद कर दिया है। क्या इस बार पिछले चुनाव की तरह 2 करोड़ की जगह 4 करोड़ रोज़गार देने का झूठा नारा आएगा? मुद्रा लोन के विवादित आंकड़ों के बहाने वे रोज़गार का दावा कर रहे हैं। सबको पता है मुद्रा लोन की सच्चाई क्या है।

चुनाव न आता तो रेलवे की भी वेकेंसी नहीं आती। यही रेलवे थी जो मोदी की लोकप्रियता के नशे में परीक्षा पास किए हुए एनटीआरबी के 4000 उम्मीदवारों को नौकरी पर लेने से मना कर दिया था। उस वक्त युवा मोदी मोदी कर रहे थे। नवंबर 2015 में 18255 पदों की वेकेंसी निकली थी। उस वक्त भी 1 करोड़ लोगों ने फार्म भरे थे। परीक्षा शुरू होने के बाद 4000 पद घटा दिए गए। एक नौजवान ने जब प्रधानमंत्री कार्यालय से पूछा है तो जवाब मिला है कि सरकार खर्चे में कमी ला रही थी। इसलिए कमी की गई और इसके विज्ञापन में यह लिखा था कि जो वेकेंसी संख्या दी गई है वो प्रोविज़नल है। यह जवाब मिला है जिसका स्क्रीन शाट नवयुवक ने हमें भेजा है।

मोदी सरकार ने नौकरी नहीं दी मगर नौकरी की परीक्षा की ईमानदार व्यवस्था भी नही दी। राज्यों में तो और भी बुरी हालत है। तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार आई है। वहां भी इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं है। जदयू और तृणमूल सरकार की परीक्षा व्यवस्था का भी वही हाल है। परीक्षाओं पर धांधली और मुकदमों का ख़तरा मंडरा रहा है।

युवाओं को सख़्ती से विपक्षी दलों और सरकार से सवाल करने होंगे। अगर हमारा युवा एक ईमानदार परीक्षा व्यवस्था हासिल नहीं कर सकता है, त्वरित नियुक्ति प्रक्रिया हासिल नहीं कर सकता है तो लानत है उसकी जवानी पर। उसे क्रांति फिल्म के एक गाने की इस पंक्ति को याद रखना चाहिए। वो जवानी जवानी नहीं, जिसकी कोई कहानी नहीं।

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