बैंगलोर

डैमेज कंट्रोल की कोशिश और मजदूरों को हाल

Shiv Kumar Mishra
7 May 2020 4:59 AM GMT
डैमेज कंट्रोल की कोशिश और मजदूरों को हाल
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने बिल्डरों और ठेकेदारों के साथ मुलाकात के बाद उन सभी श्रमिक ट्रेनों को रद्द करने का फैसला किया है, जो प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्यों में ले जाने वाली थी। इस निर्णय की कई व्यापार संगठनों ने आलोचना की और कहा कि यह मजदूरों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश है। लेकिन देश में बन रहे नए नियमों में यह नया सामान्य है। एक तरफ बिहार जैसे राज्य हैं जो नहीं चाहते (थे) कि मजदूर वापस आएं और एक तरफ कर्नाटक जैसे राज्य हैं जो नहीं चाहते कि मजदूर वापस जाएं। ऐसे में मजदूरों का वही होना है जो उनके नसीब में होगा। वास्तव में दोनों के बीच पिसेगा। सबसे अपने स्वार्थ हैं। कांग्रेस ने किराया देकर मजदूरों को राहत पहुंचाने की कोशिश की तो सरकारें डैमेज कंट्रोल में लग गई और उसके बाद यह सब भले उसका नतीजा नहीं हो पर मजदूरों को यही हासिल है।

अचानक लॉक डाउन कर दिए जाने के कारण प्रवासी मजदूर ही नहीं फंसे थे, शराब पीने वाले भी फंसे थे और टैक्स से सेवा करने वाली सरकार भी फंसी थी। सारी योजना, सारी तैयारी और सारी योग्यता, हार्डवर्क की क्षमता सब 40 दिन में चारो खाने चित्त हो गए। 500 पर लॉक डाउन जरूरी बताने के बावजूद 40,000 पर लगभग खोल दिया गया। नतीजतन आम दिनों में पूरे बाजार में उतने लोग नहीं जुटते थे जितने एक दारू की दुकान पर जुटे। कुछ लोगों ने इस लाइन के लोगों की तुलना पैसे नहीं होने के कारण स्टेशन से लौटा दिए गए मजदूरों से की और कुछ लोगों ने बैंकों की लाइन में मर जाने वालों से। जिसकी तैसी तिहाड़ी और विलायती बुद्धि। सिर्फ यह नहीं कहा कि बैंकों में जिनके पैसे फंसे थे वो दारू किस पैसे से खरीद रहे हैं।

इस छूट और ढील का मुखौटा वो मजदूर थे जिन्हें पैदल चलते देख-दिखा कर भारत ने दुनिया भर में नाम कमाया था। पर उनसे भी टिकट के पैसे लिए गए। और यह सब हुआ तभी कंक्रीट मिक्सर से यात्रा करते लोग दिख गए। दोनों ने मिलकर चौकीदार सेवकों की पोल खोल दी। रही सही कसर सोनिया गांधी ने रेल किराया देने की घोषणा करके कर दी। इस तरह, ट्रेन चलाने वालों की ही ट्रेन छूट गई। फायदा कुछ नहीं, लॉक डाउन तोड़ने का आरोप, संक्रमण बढ़ने का खतरा और श्रेय सोनिया गांधी को। पहले तो डैमेज कंट्रोल की कोशिश हुई पर बात नहीं बनी तो मजदूरों को घर पहुंचाने का इरादा छोड़ दिया गया। अब कैमरा विदेश में फंसे लोगों की ओर मोड़ दिया गया है। फिलहाल कांग्रेस और सोनिया गांधी के लिए ना रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी जैसी स्थिति है।

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