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छोला भटूरा कभी कोई गंभीर व्यक्ति और कोई नाजुक हसीना भी नहीं खा सकती, जानिए क्यों?
आवेश तिवारी
मुझे मैदे का बना भटूरा और तंदूरी रोटी और नान कभी समझ में न आई। रोटी आटे, बेसन या फिर मक्के की ही अच्छी होती है। मैदा, मैदे की रोटी भी भला कैसे हो सकती है? भटूरा हो या नान मुझसे खवाता नहीं है गटकना पड़ता है। मेरे पिताजी और चाचा ने इसका आकर देखकर इसे कभी नहीं खाया। मेरे दादाजी भी इस नामुराद से सख्त नफरत करते थे। नाम देखिए छोला भटूरा माने कोई सख्त बाहुबली हो। क्या आप जानते हैं छोले भटूरे का इतिहास केवल 75 साल पुराना है?
अभी पढ़ रहा था कि जब भारत में विभाजन के बाद चारों ओर लाचारी थी, तब पेशोरी लाल लांबा नाम के एक सज्जन ने दिल्ली के कनॉट प्लेस में मशहूर क्वालिटी रेस्तरां की स्थापना की और अपने साथ छोले की रेसिपी लाए। ऐसा माना जाता है कि यह ख़मीर वाली रोटी पंजाबी रसोइयों ने दी थी, जो पेट भरने वाले व्यंजन तैयार करने में अपनी एक्सपर्टीज के लिए जाने जाते थे। अब पंजाबियों ने मैदे में खमीर क्यों उठवाई यह बात समझ से परे है।
एक दूसरी किंवदंती के अनुसार, सीता राम नाम के एक पंजाबी सज्जन 1947 के विभाजन के दौरान अपने परिवार के साथ पश्चिमी पंजाब से चले आए और दिल्ली के पहाड़गंज में अपनी दुकान सीता राम दीवान चंद खोली। दुकान स्थापित करने के बाद, उन्होंने और उनके बेटे दीवान चंद ने पंजाबी छोले और भटूरा नामक खमीरी रोटी लगभग 12 आने में बेचना शुरू किया।
छोले भटूरे खाने वालों का भी एक क्लास है। जो छोले भटूरे के शौकीन होते हैं वह लोग सोते बहुत हैं दिन दुनिया से बेफिक्री वाला नजरिया होता है। छोला भटूरा कभी कोई गंभीर व्यक्ति नहीं खा सकता कभी कोई नाजुक हसीना भी नहीं खा सकती गर खाएगी तो छोड़ देगी। दिल्ली पंजाब तो छोले भटूरे पर ही जिंदा हैं न जाने मोदी जी खाते होंगे या नहीं? यूंही यह सब सोच रहा था।