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- चिंता चिता के समान
आज हमारी जिंदगी बेहद जटिल और दौड़-भाग से भरी हो गई है। जीवन में शारीरिक श्रम कम और मानसिक दबाव ज्यादा है। कई बार तो छोटी-मोटी समस्याएं ही मानसिक तनाव का कारण होती हैं। इन पर गौर नहीं किया जाए तो तनाव गहरा जाताहै। ऐसे व्यक्ति से हम अक्सर दो-चार होते होंगे कि वह जरा-सी बात पर अपनी नाक पर गुस्सा रखे होता है, चाहे वह गुस्से वाली बात हो या न हो। दरअसल, गुस्से से किसी भी समस्या का हल न कभी हुआ है और न होगा। इसी तरह,आज ज्यादातर लोग किसी न किसी बात पर चिंतित नजर आते हैं। जबकि यह सूत्रवाक्य काफी प्रचलित है कि 'चिंता चिता के समान है।' फिर भी इंसान चिंता में घुलता रहता है। कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि बहुत से लोग गुस्सा और चिंता करते-करते इसे अपनी आदत बना लेते हैं और बिना वजह गुस्सा और चिंता करके खुद को ही कष्ट देते रहते हैं। ऐसे में यह जरूरी नहीं कि गुस्से वाली बात पर ही गुस्सा आए या चिंता वाली पर बात ही कोई चिंतित हो। सामने वाला इंसान सही बात कर रहा हो तब भी आदतन वह व्यक्ति गुस्से में ही जवाब देता है। इससे वह खुद तो दुखी होता ही है, सामने वाले व्यक्ति को भी दुखी कर देता है। चिंता और क्रोध इंसान के शरीर को अंदर से खोखला कर देते हैं और इसी कारण कोई व्यक्ति अपने शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियों को निमंत्रण भी दे बैठता है।
अपने ही परिवार में मुझे कई बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। कोईव्यक्ति गुस्से में है या नहीं, यह कई बार उसके चेहरे या सामान्य बातचीत से नहीं पता लग पाता। अगर वह किसी बात पर गुस्से में है और दूसरा व्यक्तिउससे हंसी-मजाक कर बैठे तो पहले वाले का गुस्सा कम होने के बजाय और बढ़ भी जा सकता है। ऐसी स्थिति में कभी हास्य तो कभी मुश्किल हालात भी पैदा हो जा सकते हैं। घर में किसी एक इंसान के गुस्सा या चिंता करने से पूरे परिवार का माहौल भी तनावपूर्ण या गमगीन हो जाता है। गुस्सा और चिंता करने वाले इंसान के आसपास के सभी लोगों को खुशी के मौके खोजने पड़ते हैं, जबकि इससे आजाद लोग खुद खुश रहते हैं और समूचे माहौल को खुशनुमा बना देते हैं। आज छोटी-छोटी बातों पर हत्या तक हो जाने के समाचार आए दिन सुर्खियों में होते हैं। ऐसी खबरें सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आज इंसान के भीतर इतना गुस्सा कहां से आ गया है और उसके भीतर धीरज का अभाव क्यों हो गया है। दरअसल, चिंता या तनाव के कई कारण होते हैं। हम आज जिस परिवेश में जी रहे हैं उसमें हर वक्त कोई न कोई चिंता बनी रहती है। खासतौर पर आज हमारे आसपास पनप रहे अपराधों को लेकर अमूमन सभी चिंतित रहते हैं। बहुत सारे लोग अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर फिक्रमंद होते हैं। परिवार का कोई सदस्य घर से बाहर गया नहीं कि तुरंत उसकी फिक्र शुरू हो जाती है। उसके आने में देरी होती है तो भी चिंता होने लगती है कि कब कौन-सी घटना किसी के साथ घट जाए।कहीं किसी को रोजगार की चिंता है तो किसी को अपने बच्चों के दाखिले की फिक्र है।
मुझे लगता है कि परिवार के किसी एक व्यक्ति के भी हमेशा फिक्र करने या गुस्से में रहने से समूचा परिवार प्रभावित होता है। खासतौर पर इसका छोटेबच्चों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। सच यह है कि गुस्सा और सिर्फ चिंता करने से कभी किसी समस्या का हल नहीं मिल पाता है। बल्कि कभी-कभी तो इंसान गुस्से में बनता हुआ काम भी बिगाड़ कर अपनी चिंता खुद ही बढ़ा लेता है। यह एक तरह से अनजाने में अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना भी है। व्यक्ति अगर कुछ बातों का ध्यान रखे तो इन समस्याओं का हल आसानी से ढूंढ़ा जा सकता है और बेवजह की चिंता से भी बचा जा सकता है। थोड़ा-सा सकारात्मक होकर सोचने और नकारात्मकता से बचने से न सिर्फ अपने आसपास का माहौल ठीक हो जाता है,बल्कि सबसे ज्यादा फायदा खुद को होता है। कभी कोई भी समस्या आने पर अगर पहले ही नकारात्मक सोच से परेशान हो जाएं तो उसका हल ढूंढ़ना मुश्किल हो जाता है। जब भी कोई समस्या अचानक खड़ी हो तो उसका सूझ-बूझ के साथ हल खोजने में लग जाने की जरूरत है। यह सही है कि गुस्से से पूरी तरह मुक्त होना संभव नहीं है। लेकिन इसके साथ ऐसे अभ्यस्त होना चाहिए कि वह आए भी तो सकारात्मक ऊर्जा के साथ सामने के हालात का सामना करने की ताकत दे। सवाल है कि जरूरत पड़ने पर हम घर या शहर बदल लेते हैं तो अपने सोचने-समझने के तरीके में थोड़ा बदलाव क्यों नहीं ला सकते!