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- भाग्य और भगवान पर...
भाग्य और भगवान पर भरोसा न करने से पैदा होते हैं अहंकार अपराध और आत्महत्या जैसे भाव !
डॉ शेष नारायण बाजपेयी
कोई भी अपराधी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए या अपनी इच्छा के अनुशार दूसरों को चलाने के लिए अथवा अपने मन मुताबिक सुख सुविधा आदि पाने के लिए प्रयत्न करते करते जब थक जाता है इसके बाद भी सफल नहीं होता है तब भी उसके मन में पैदा होती है अपराध की प्रवृत्ति |
कुछ मोटीवेटर सिखाते देखे जाते हैं कि आप प्रयास करो सफलता अवश्य मिलेगी | यदि न मिले तो अपने कर्म करने में कोई कमी रह गई है ऐसा मानना चाहिए | इसलिए बार बार प्रयत्न करो सफलता अवश्य मिलेगी |
बंधुओं ! किसी कर्म और सफलता का संबंध पंखे के स्विच और पंखे के आपसी संबंध की तरह नहीं होता कि स्विच दबाते ही पंखा चल उठेगा | कर्म और सफलता दोनों अलग अलग बातें हैं किंतु जब इन दोनों को एक साथ मिला दिया जाता है तब अपराध करने का भाव जगता है | असफल
व्यक्ति अक्सर आपराधिक आचरणों को भी कर्म मानने लगता है | इसीलिए गीता में कहा गया है- 'कर्म करो फल की इच्छा मत रखो' | क्योंकि फल भाग्य से मिलेगा और कर्म शरीर से किया जाएगा | दोनों अलग अलग बातें हैं |
कोई बहुत गरीब अनपढ़ गँवार कुरूप लड़का किसी सुंदर सुशील पढ़ी लिखी लड़की से विवाह कर लेने की हठ करके उसे प्रभावित करने का कर्म करने लगे | इसके लिए वो अपनी रोजी रोटी पढ़ाई लिखाई धन दौलत आदि सब कुछ दाँव पर लगा दे और उसी लड़की के पीछे दिन रात घूमता रहे | वो लड़की उसके साथ विवाह करने के लिए फिर भी तैयार न हो | वो लड़का उस मोटिवेटर से फिर मिलता है तो मोटिवेटर कह देता है कि आपके कर्म में कहीं कमी रह गई है | निराश हताश तथा लुट पिट चुके उस लड़के के पास अब उसे प्रभावित करने के लिए कुछ बचा नहीं होता है | ऐसी परिस्थिति में अपराध को भी कर्म मानकर वह लड़का उस लड़की को सबक सिखाने की हठ ठान लेता है और अपराध की दुनियाँ में कूद जाता है |
मोटिवेटर बेचारों को पता नहीं है कि वो जो कर रहे हैं वो कितना घातक है | इसलिए वे युवा पीढ़ी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते देखे जा रहे हैं | इसलिए हमें हर हाल में कर्म की सीमाएँ समझनी चाहिए !
डॉक्टर किसी रोगी की चिकित्सा कर सकता है किंतु रोगी के स्वस्थ होना या न होना उसके अपने भाग्य के आधीन होता है !शिक्षक पढ़ा सकता है किंतु किसी का विद्वान् बनना या न बनना उसके अपने भाग्य के आधीन है !किसी का विवाह किया जा सकता है किंतु उसे वैवाहिक सुख मिलना या न मिलना उसके अपने भाग्य के आधीन है | धन है तो धन के द्वारा अच्छा मकान तो मिल सकता है किंतु मकान का सुख मिलेगा या नहीं ये उसका अपना भाग्य ही निश्चित करता है |
'भाग्य' और 'कर्म' में क्या अंतर है ? कोई कार या गाड़ी तभी दौड़ सकती है या फिर दौड़ाई जा सकती है जब उसके लिए रास्ता या रोड हो | रास्ता ही न हो तो कार स्टार्ट करके एक जगह कड़ी भले कर दी जाए किंतु कहीं लेकर नहीं जाया जा सकता है | उसी प्रकार से भाग्य और कर्म का संबंध है | भाग्य ही रोड और कार ही कर्म है भाग्य होगा तभी कर्म का परिणाम मिलेगा अन्यथा नहीं | भाग्य विहीन लोग कर्म करके अपने को व्यस्त तो रख सकते हैं किंतु उससे कोई फल नहीं मिलता है | इसीलिए कुछ लोग बहुत परिश्रम करते हैं फिर भी सफल नहीं होते हैं कुछ लोग बहुत कम परिश्रम करके भी बहुत अधिक सफल हो जाते हैं | सबका अपनाअपना भाग्य !हर किसी को सफलता उसके भाग्य के अनुशार ही मिलती है | भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता है !इसलिए अपना अपना भाग्य की सीमा प्रत्येक व्यक्ति को पता होना चाहिए |
भाग्य की ताकत को न समझने वाले कुछ लोगों को भ्रम हो जाता है कि जीवन में सफलता असफलता मिलने का कारण केवल अपना कर्म होता है ऐसे लोग कर्म को बिजली का स्विच समझने लगते हैं कि स्विच आन करते ही पंखा चल जाएगा बत्ती जल जाएगी जबकि सच्चाई ये नहीं है सच्चाई तो ये है कि पंखा चलना और बत्ती जलना तो कर्म का फल है कर्म है स्विच आन ऑफ करना और भाग्य है बिजली जिसके न होने से कितना भी स्विच आन ऑफ किया जाए उससे न तो पंखा चल पाएगा और न ही बत्ती जल पाएगी |
कुछ विद्यार्थी शिक्षा में अपनी इच्छा के अनुशार दूसरों की देखा देखी में विषय का चयन कर लिया करते हैं दूसरा छात्र डॉक्टर बनने जा रहा है तो खुद भी उसी में एडमीशन ले लेते हैं और बाद में वो तो सफल हो जाता है किंतु खुद अटक जाते हैं ऐसी परिस्थिति में यह विचार करना बहुत आवश्यक होता है कि हमारे अपने भाग्य में वदा है |
इसी प्रकार से कुछ लोग दूसरों की देखा देखी में उसी प्रकार का अपना काम भी प्रारंभ कर लेते हैं किंतु कई बार ऐसा होता है कि उनके अपने भाग्य के कारण वो उन्हें न सूट करता हो तो उन्हें नुक्सान हो जाता है | भाग्यदोष से परेशान ऐसे लोग अपनी असफलता के लिए किसी न किसी को जिम्मेदार मान लेते है |
एक ही परिवार में एक ही माता पिता से पैदा हुए कई लोग अलग अलग भाग्य वाले होते हैं उनमें से किसी को कोई देश ,शहर ,मकान दूकान आदि सूट करता है तो दूसरे को नहीं करता है | इसी कारण कलकत्ते का एक व्यक्ति दिल्ली में जूस बेचकर अच्छा कमा रहा होता है तो दूसरा दिल्ली का व्यक्ति कलकत्ते में जूस बेचकर अच्छा कमा रहा होता है किंतु अपने अपने शहर दोनों को नहीं सूट कर रहे होते हैं |इसी प्रकार से देश ,शहर ,मकान दूकान आदि का सुख भी भाग्य के आधीन होता है |
कोई एक व्यक्ति किसी एक का मित्र होता है वही व्यक्ति दूसरे का शत्रु होता है इसमें उन दोनों व्यक्तियों की गलती नहीं होती अपितु ये सारा भाग्य का खेल होता है | जिसे जिससे सुख मिलना होता है उसे ही सुख मिलपाता है यदि वह दूसरे को सुख देना भी चाहे तो उसे उससे सुख नहीं मिल पाता है ऐसी परिस्थिति में वो उसे शत्रु समझने लगता है जबकि वदा उसके अपने भाग्य में नहीं होता है |
जिस समय में कोई व्यक्ति अपने कमजोर भाग्य के कारण किसी भी प्रकार का संकट सह रहा होता है ऐसे व्यक्ति का सहयोग करने के लिए यदि कोई दूसरा व्यक्ति स्नेह वश उसका साथ भी देना चाहे तो साथ देने वाले का नुक्सान हो सकता है किंतु उस भाग्यदोष से जूझ रहे व्यक्ति को उसके सहयोग से सुख नहीं मिल पाता है | भगवान् श्री राम को बनवास हुआ उनकी मदद के लिए सीता जी साथ गईं तो सीता हरण हो गया और सीता जी की मदद के लिए जटायु आए तो जटायु का मरण हो गया किंतु श्री राम का दुःख थोड़ा भी कम नहीं हुआ |'समय' बहुत बलवान होता है 'समय' की शक्ति पहचानो !
भाग्य साथ न दे तो मच्छर काटने से भी डेंगू जैसा रोग होकर मृत्यु होते देखी जाती है और यदि भाग्य साथ दे रहा होता है तो सर्प काटने के बाद भी मनुष्य जीवित और स्वस्थ बना रहता है |
भाग्य का साथ होने पर अक्सर देखा जाता है कि कुछ लोग जहरीले जीव जंतुओं को भी मारकर खा जाते हैं उन पर कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता है जबकि दूसरे लोग हर चीज में सफाई रखने का प्रयास करते हैं और रोगी हो जाते हैं जिसका कारण भोजन संबंधी अशुद्धि मान लिया जाता है |भाग्य साथ दे तो व्यक्ति बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं का शिकार होकर भी जीवित बच जाता है और भाग्य साथ न दे तो घर के विस्तर से गिरकर भी मृत्यु होते देखी जाती है |
जब हमारा भाग्य अच्छा होता है तब हमसे ऐसे लोग जुड़ने लगते हैं जो हमें सुख देने के लिए सहयोग करते हैं ऐसे लोग यदि हमें दुःख देने के लिए भी कोई प्रयास भी करते हैं तो वह भी अपने लिए सहायक सिद्ध होता है और उससे भी अपने को सुख मिलता है इसके विपरीत जब भाग्य ही हमारे साथ नहीं होता है तो हमें हर किसी से दुःख ही मिलना होता है भले ही वो व्यक्ति हमें सुख देने के लिए कितना भी प्रयास क्यों न कर ले !
भाग्य का साथ न मिलने के कारण कोई रोगी रोग आदि भोग रहा होता है ऐसे रोगियों की मदद बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाते इनपर अच्छी से अच्छी औषधियों के प्रयोग भी फेल हो जाया करते हैं वही रोगी भाग्य का सहयोग मिलते ही वही रोगी सामान्य चिकित्सा से भी स्वस्थ होने लगता है रोग और मृत्यु का समय सबका निश्चित होता है केवल पूर्वानुमान लगाने में चूक जाते हैं लोग !|
कई लड़के किसी लड़की से विवाह करने की हठ ठान लेते हैं ऐसा कई लड़कियाँ भी करती हैं किंतु ऐसे लोग जिसके साथ विवाह या प्रेम संबंध करना चाहते हैं और उसके लिए बड़े बड़े त्याग बलिदान करने को भी तैयार हो जाते हैं किंतु उनके भाग्य में यदि वह लड़की या लड़का वदा नहीं है तो उन दोनों का विवाह एक दूसरे के साथ नहीं हो पाता है या उन दोनों के लिए सुखप्रद नहीं हो पाता है | विवाह के बाद तनाव कलह विवाह विच्छेद जैसी घटनाएँ भाग्य के असहयोग के कारण ही घटित होती हैं |तलाक होने का कारण है तनाव !तनाव न हो तो 'तलाक' क्या कोई संबंध नहीं बिगड़ेगा !जानिए कैसे ?
कुछ लोगों के जीवन में विवाह के बाद भी उनके अपने पति या पत्नी का सुख उन्हें न मिलकर किसी दूसरे को मिल रहा होता है ऐसे विवाहेतर संबंधों का कारण उसका अपना भाग्य होता है | उसके अपने भाग्य में जितने भाग्य का कोटा था वो पूरा हो गया जबकि उसके जीवन साथी के भाग्य का कोटा पूरा नहीं हुआ तो वो कहीं अन्यत्र से उसे पूरा कर रहा होता है यह कोटा ही तो भाग्य है | इसी परिस्थितियों में लोग अपने जीवन साथी को शत्रु समझने लगते हैं जबकि ये सारा भाग्य का खेल होता है |विवाहपूर्वानुमान - समाज, सरकार एवं विज्ञान के लिए सबसे बड़ी चुनौती ! जानिए कैसे ?
ऐसी परिस्थितियों में प्रत्येक व्यक्ति को संयम सदाचार आदि से जीवन व्यतीत करने का आदेश शास्त्र देते हैं ताकि आपसी संबंध मधुर बने रहें | फिर भी विवाह करते समय एक दूसरे का वैवाहिक भाग्य देखकर ही विवाह किया जाना चाहिए तो ऐसी समस्याएँ कम उत्पन्न होती हैं |
किसी को जब भाग्य साथ देता है तो भाग्य उसे प्रसन्न रखता ही है इसीलिए ऐसे लोग दूसरों के द्वारा अपने प्रति किए गए बुरे व्यवहार और बुरी भाषा के प्रयोग को भी बुरा नहीं मानते हैं उससे अपने प्रति अच्छे अच्छे भाव विचार व्यवहार आदि चुनकर सुखी हो लेते हैं | इससे विपरीत भाग्य जिनका साथ नहीं दे रहा होता है वे लोग अपने लिए किए गए दूसरों के अच्छे व्यवहार से भी बुराइयाँ चुन लेते हैं ऐसे भागयपीड़ित लोगों को किसी के द्वारा किए गए बुरे वर्ताव से तो तनाव होता ही है अपितु किसी के द्वारा किए गए अच्छे व्यवहार से भी तनाव होने लगता है | इन्हें किसी के नमस्ते न करने का तनाव तो होता ही है किसी के नमस्ते करने से भी तनाव होता है |मानसिक तनाव बढ़ने से रोका कैसे जाए ? !
इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने अपने भाग्य के विषय में अवश्य जानना चाहिए किंतु ऐसी परिस्थिति में भी उसका दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता है | भाग्य पीड़ित कोई व्यक्ति जब किसी पंडित ज्योतिषी तांत्रिक मुल्ला मौलवीय बाबा आदि के पास भाग्य पूछने जाता है तो वहाँ से भी उसे मदद नहीं मिल पाती है और उसके साथ कोई अयोग्य या पाखंडी व्यक्ति टकरा जाता है जो उसे अपने जाल में फँसाकर और अधिक दुःख देता है |
इसलिए भाग्य पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रत्येक परिस्थिति में विशेष सतर्कता सावधानी आदि संयम से काम लेना होता है जिससे उसका दुखदर्द कम होते देखा जाता है |