लाइफ स्टाइल

शरीर साधन के लिए जैसे है जलपान, वैसे ही मन के लिये संगति होइ महान

Shiv Kumar Mishra
5 Aug 2020 3:09 PM GMT
शरीर साधन के लिए जैसे है जलपान, वैसे ही मन के लिये संगति होइ महान
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फिर कलम आंदोलन ने मुझे समाज में फैली विषमताओं, गरीबी, ऊंच-नीच व जाति-वर्ग के प्रति संवेदनशीलता एवं व्यवहारिक दृष्टि दी ।

रामभरत उपाध्याय

शहर के व्यस्त चौराहे के किनारे झौंपड़पट्टी में चलाये गये "कलम आंदोलन" द्वारा वहां के बच्चों व अभिभावकों में सुखद बदलाव होना लाजिमी था ही साथ ही साथ इस अभियान में स्वयंसेवक के रूप में मेरा जुड़ना मेरे जीवन का क्रांतिकारी बदलाव साबित हुआ।

कलम आंदोलन टीम से जुड़ने के संयोग से पूर्व मैं छोटे से गांव का सामान्य बुद्धि-विवेक का किशोर था। हाल में ही इंटरमीडिएट की परीक्षा औसत नम्बरों से पास की थी। सिलेबस की किताबों से अधिक अब तक अपना समय मैंने मैग्जीन व अखबारों को सौंपा था।

इतना सब के बावजूद मेरी सोच-समझ का दायरा गांव की पगडंडियों को नहीं लांघ सका था। "कलम आंदोलन" ने मुझे व्यापक सोच व परिपक्व विचारों वाले कुछ अच्छे दोस्त प्रदान किये। कलम आंदोलन का सबसे सर्वोच्च पुरस्कार मुझे वरिष्ठ पत्रकार, निर्देशक व संस्कृतिकर्मी अनिल शुक्ल को गुरु के रूप में प्राप्त करने से मिला ।

हालांकि अभी तक मैं गांव के खेत-खलियान से निकलकर दूध की टँकी बंधी साइकिल से ऐतिहासिक शहर आगरा के तमाम गली मोहल्लों की खाक छान चुका था फिर भी मेरी सोच समझ का दायरा परम्परागत मूल्यों, जाति-धर्म व खेती किसानी से निकलकर सिनेमा की स्वप्निल दुनिया तक ही सीमित था।

फिर कलम आंदोलन ने मुझे समाज में फैली विषमताओं, गरीबी, ऊंच-नीच व जाति-वर्ग के प्रति संवेदनशीलता एवं व्यवहारिक दृष्टि दी ।

कलम आंदोलन के सीमित समय के साथ साथ मैंने शुक्ला जी के थिएटर ग्रुप "रँगलीला" के नुक्कड़ नाटकों में जोर-आजमाइश शुरू कर दी। शुक्ला जी के सानिध्य में ही मैं लोकतंत्र, चरमपंथ, समाजवाद, साम्यवाद व सहिष्णुता जैसे शब्दों का मर्म जानने योग्य हो सका।

इसप्रकार अच्छी संगति ने मेरी शब्दावली व भाषाशैली बेहतर बनाई जिससे मेरी टीचिंग स्किल का ग्राफ भी काफी ऊंचा हुआ तथा जीवन के कई मोर्चों पर अपने व्यक्तित्व में मैंने गुणात्मक व्रद्धि महसूस की ।

श्रंखला की अगली कढ़ी में जानिये लोककला "भगत" की प्रस्तुतियों का असर......

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