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
किसी दूसरे के साथ रहकर खुश रहना, आनंदित रहना बहुत कठिन है। अकेला व्यक्ति आसानी से आनंदित रह सकता है, उसमें कोई विशेष बात नहीं। उसके लिए कोई मूल्य भी नहीं चुकाना पड़ता है। लेकिन दो व्यक्ति साथ रहें और फिर भी आनंदित रह सकें, यह थोड़ा कठिन होता है। जब दो व्यक्ति साथ रहते हैं, तब खुश रहना बहुत कठिन है।
तब तो अप्रसन्न रहना, दुखी रहना अधिक आसान है—उसके लिए कुछ मूल्य भी नहीं चुकाना पड़ता है, वह तो बहुत ही सरल और आसान है। और जब तीन व्यक्ति एक साथ हों, तो आनंदित होना असंभव होता है —तब तो किसी भी कीमत पर, किसी भी मूल्य पर आनंद की कोई संभावना ही नहीं होती है।
आदमी भीड़ से थक गया है। यहां पर हिलने —डुलने की भी जगह नहीं बची है। पृथ्वी पर इतनी भीड़ हो गई है कि व्यक्ति की अपनी स्पेस ही खतम हो गई है। जहां देखो वहां भीड़ और चारों ओर आसपास हमेशा दर्शक ही दर्शक मौजूद रहते हैं —जैसे कि व्यक्ति किसी रंगमंच पर अभिनय कर रहा हो—और भीड़ की आंखें चारों तरफ से उस पर लगी रहती हैं। कहीं कोई स्वात स्थान ही नहीं बचा है। धीरे धीरे व्यक्ति बिलकुल थक जाता है, ऊब जाता है।
लेकिन परमात्मा भी अपने स्वात से, शांति से ऊब जाता है। परमात्मा अपनी परिशुद्धता और एकांत में है, लेकिन इतनी परिशुद्धता भी थका देने वाली, उबा देने वाली बन जाती है; जब वह हमेशा—हमेशा के लिए उसी तरह से स्थायी हो जाती है। परमात्मा घाटी की ओर उतरकर आ रहा है, उसकी आकांक्षा ससार में उतर आने की है। मनुष्य की आकांक्षा संसार से बाहर छलांग लगाने की है, और परमात्मा की आकांक्षा वापस संसार में आ जाने की है। मनुष्य की अभीप्सा परमात्मा हो जाने की है, और परमात्मा की अभीप्सा मनुष्य हो जाने की है।
शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने अधिक सामाजिकरण किया, वह उतने ही कम खुश थे.शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने अधिक सामाजिकरण किया, वह उतने ही कम खुश थे. अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग अधिक सामाजिक होते हैं, वह अन्य लोगों से अधिक खुश रहते हैं.
कोरोना वायरस संक्रमण के कारण दुनिया के कई देशों ने खुद को लॉकडाउन कर दिया है. भारत भी उन्हीं देशों में शुमार है. लॉकडाउन के कारण लोग अपने-अपने घरों में बंद है. इस नाजुक वक्त में जो लोग अपने परिवार के साथ हैं उनका वक्त तो सही गुजर रहा है, लेकिन जो परिवार के बिना रह रहे हैं उन्हें कई तरह की मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, कुछ लोग इसे समय को अकेले रहकर एन्जॉय कर रहे हैं. अगर आप भी अकेले रहना पसंद करते हैं और खुद से साथ वक्त बीताने से आपको खुशी मिलती है तो आपका दिमाग बाकि लोगों से ज्यादा तेज है.
अधिक सामाजिक लोग रहते हैं ज्यादा खुश
जी हां, अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग अधिक सामाजिक होते हैं, वह अन्य लोगों से अधिक खुश रहते हैं. सामाजिकता के दायरे में रिश्ते, दोस्ती और लोगों के साथ समय बिताना हमें आनंदित करता है. लेकिन असल में अत्यधिक बुद्धिमान होने की स्थिति में यह बात गलत लगती है. यदि ऐसा है तो, दोस्तों के साथ सामाजिकता आपके जीवन में संतुष्टि के स्तर को बढ़ावा नहीं देती है.
इन लोगों पर किया गया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने 18 से 28 वर्ष के बीच के करीब 150 लोगों पर अध्ययन किया. इसमें उन्होंने अधिकतर लोगों को सामाजिक रूप में पाया. वहीं शोधकर्ताओं ने अधिक बुद्धिमान वर्ग के लोगों को इससे अलग रखा.
शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने अधिक सामाजिकरण किया, वह उतने ही कम खुश थे. शोधकर्ताओं ने अपने स्पष्टीकरण में पाया कि अधिक बुद्धिमान लोग आधुनिक दुनिया में खुद को आसानी से ढाल लेते हैं. एक अन्य सिद्धांत के अनुसार आप जितना होशियार होंगे, आप भविष्य में अपने लक्ष्य के प्रति ज्यादा समय तक केंद्रित रहेंगे.
अकेले रहने के फायदे
- अकेले रहने वाले आत्मविश्वास काफी पाया जाता है. अकेले रहने वाले लोगों की सोच भी पॉजिटिव रहती है.
- अकेले रहने वाले लोग कभी इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि आखिरकार दुनिया उनके बारे में क्या सोचेगी.
- कई शोध में यह बात सामने आई है कि अकेले रहने वाले लोग अपने जीवन को भरपूर जीते हैं.
- अकेले रहने वाले इमोशनली काफी स्ट्रांग माने जाते हैं.
ओशो♣️