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- मणिपुरी साहसी "एमाएं"...
नूतन पाण्डेय
भारत के पूर्वोत्तर में एक छोटा सा राज्य मणिपुर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जाना जाता है और जाना जाता है अपने तेजस्विनी महिलाओं के विशेष कार्यों के लिए | एक ऐसा राज्य जहाँ आतंकवादी गतिविधियाँ वर्षों से राज्य के सम्पूर्ण व्यवस्था को छत-विछत करती रही हैं और है, 6-7 बजे शाम के बाद शहरों और गाँवों में सन्नाटा छा जाता है | हालांकि वर्त्तमान में राज्य कुछ शान्ति की ओर बढ़ा है पर कठिनाईयां आज भी है | फिर भी यहाँ की लड़कियां और औरतें इतनी कर्मठ हैं जो वर्णन से परे है | आज महिलाएं हर जगह पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं पर उस छोटे से राज्य की औरतें तो वर्षों से अपना जलवा दिखा रही हैं | क्या गाँव ! क्या शहर ! खेल हो या राजनीति, गृह कार्य हो या व्यापार, सिनेमा का क्षेत्र हो या सांस्कृतिक धरोहर सभी जगह स्त्रियों का बोलबाला है | जबकि मान्य है कि मणिपुरी परिवार पहले पितृ सत्तात्मक हुआ करता था | पिता और पति परिवार के मुखिया होते थे | इसकी झलक 'मित्तई'घरों की बनावट में आज भी देखी जा सकती है, जहाँ पुरुषों के लिए स्थान को विशेषता दी जाती थी | परन्तु आज देखा जाये तो मणिपुरी महिलाएं अन्य भारतीय महिलाओं की तुलना में अधिक स्वतंत्र एवं स्वावलंबी हैं |सुदूर पूर्वोत्तर के इस स्थान की खासियत यह है कि मात्र 22,327 स्क्वायर की.मी. के क्षेत्र में बसे इस राज्य में हर वर्ग की महिलाएं अलग-अलग अनेकों मामलों की पतवार थामे हुए हैं और आज ही नहीं वर्षों से समाज में इनका योगदान रहा है | जैसा कि हम जानते मणिपुर असम का हिस्सा हुआ करता था | असम का सेवेन सिस्टर में विभाजनलोगों के जातीय आधार पर हुआ और अलग-अलग सात राज्यों की स्थापना हुई | जिसमें मणिपुर बहु जातीय समूह वाला राज्य है, साथ ही यह साउथ ईस्ट एशिया का प्रवेश द्वार भी है | मणिपुर ही नहींसम्पूर्ण पूर्वोत्तर में अनेक जाति और जनजातियों का वास है | ये समूह आपस में मिलते थे तो लड़ते भी थे और समय-समय पर आपसी समूहों की लड़ाई आम बात थी |पुराने समय में जब समाज के साहसी पुरुष युद्ध पर जाते थे तब अन्य युद्धेक्छु पड़ोसियों से मणिपुर की रक्षा का भार यहाँ की महिलाओं का होता था | युद्ध में जब हार की संभावना दिखती तब वे अपनी बुद्धिमता का प्रयोग करती थीं | जैसे एक बार कुछ आक्रमणकारी लुटेरों ने उनके समूह पर धावा बोल दिया | परिस्थिति महिलाओं के वश में नहीं थी सो उनलोगों ने प्रेम पूर्वक उन लुटेरों से संधि कर उन्हें खाने पर न्यौता और भोजन के साथ पीने-पिलाने का कार्यक्रम भी था | उसमें एक विशेष प्रकार की नशीली दवा मिला दी गई | सभी लुटेरे बेहोश हो गए और उन्हें बंदी बना लिया गया |
यहाँ की महिलाएं, जिसे "एमा" अर्थात "माँ" कहा जाता है, विश्व में और मानव अध्धयन शास्त्रियों की नजर में आज अपना एक अलग स्थान बना चुकी हैं और इसका सबसे बड़ा कारण समाज में उनका स्थान और राज्य की आर्थिक उन्नति में उनका सहयोग है | 'कैप्टन डेन' ने भी अपनी पुस्तक 'द गजेटियर ऑफ़ मणिपुर' में लिखा है कि "वे बहुत ही परिश्रमी हैं | खेती को छोड़ कर राज्य के अधिकतर कार्य उनके द्वारा ही संपन्न होते हैं भारत में कहीं भी मणिपुरी महिलाओं से उद्दमी व परिश्रमी महिला ढूंढना कठिन होगा |" बहुत ही सुन्दर दिखने वाली, तेज-तर्रार और गुणी मणिपुरी महिलाएं सामाजिक एवं आर्थिक कार्यों में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की महिलाओं से अनेक समानताएं रखती हैं, विशेष कर म्यामार, थाईलैंड, कम्बोडिया और लेओस आदि देशों से | खास कर विकास के क्षेत्र में | अध्धयन के आधार पर राज्य के विकास के लिए ये मुख्यतः आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक इन तीनों क्षेत्रों पर अपनी पकड़ मजबूत रखती हैं | यहाँ की औरते भी गृह कार्य को सबसे पहला कर्तव्य मानती हैं परन्तु ये उसमें उलझ कर नहीं रहतीं बल्कि खाली वक्त का सदुपयोग उत्पादक कार्यों में करती हैं | पहले समाज छोटे-छोटे गाँवों और बस्तियों में बसता था, तब खेती में सहयोग इनकी प्रमुखता थी | भारी कार्य जैसे, जोतना, कोड़ना इत्यादि मर्दों के हिस्से था, जबकि बोना, पानी पटाना, फसल काटना आदि औरतों के | इसके अतिरिक्त सब्जी बाजार पर इनका पूर्णतः अधिकार होता था, विशेष कर अधेड़ व् उम्रदराज औरतों का | दूसरा महत्वपूर्ण कार्य जो मणिपुरी औरतों की विशेषता मानी जाती है, वह है – कपड़ा बुनना जो कि बड़े उद्योग के रूप में फल-फूल रहा है | कृषि प्रमुख उद्योग है पर उसमे मर्द-औरत दोनों मिल कर करते हैं, जबकि करघा उद्योग पर पूर्णतः महिलाओं का साम्राज्य है | छोटे-बड़े हर तबके की औरतें कपड़ा बुनने में दक्ष होती हैं और साथ ही वे सभी आमतौर पर हाथ से बुने वस्त्र का उपयोग ही करती हैं | सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही इस प्रथा को आज भी औरतें सहेजने का कार्य कर रही हैं | हर घर में लड़कियों कोकपड़ा बुनने की शिक्षा विरासत में मिलती है | घर में लगे करघे पर बचपन से ही माँ का हाथ बंटाते-बंटाते वो दक्षता हासिल कर लेती हैं |हालाँकि आज पश्चिमी सभ्यता ने नई पीढ़ी को बुरी तरह प्रभावित किया है पर यहाँ भी कुछ सकारात्मक कार्य भी किये जा रहे हैं, जैसे नई पीढ़ी वस्त्रों के डिजाइनिंग का कार्य कर व्यापार को बढ़ावा दे रही है भले ही करघा चलाने में वो उतनी दक्ष नहीं भी हों पर मणिपुरी वस्त्रों को लोकप्रिय बनाने का कार्य बखूबी सम्हाल रही हैं | यह कला आज मणिपुर की अर्थ व्यवस्था में सहयोग का बहुत बड़ा माध्यम है |मणिपुर में झीलों और तालाबों की भी प्रचुरता से औरतों के खाली समय में मछली मारने के शौक को भी बढ़ावा मिला, फलतः आहिस्ता-आहिस्ता यह भी उद्योग के रूप में विकसित हुआ | प्रारम्भ से ही मणिपुरी औरतें बाजार में खरीद-बिक्री पर नजर रखती थीं | आतंरिक व्यापार पर भी उनकी पकड़ होती थी | रास्ते के किनारे बैठ कर सब्जी, मछली, चावल, दाल और अन्यान्य जरुरत की चीजें बिक्री करती महिलाएं हमेशा से ही इस क्षेत्र में दिखाई देती रही हैं | असल में मणिपुर में उपजने या बनने वाले हर तरह के वस्तुओं की विक्रेता औरतें ही होती थीं और ऐसे बाजारों के लिए इम्फाल सबसे बड़ा स्थान रखता था, जिसे "सना कैथल" नाम दिया गया था | मान्य है कि इसकी स्थापना 1580 A.D. में राजा मोइगेनबा के द्वारा की गयी थी | आज भी इम्फाल ही ऐसा सबसे बड़ा मार्केट है | इन्हीं प्रथाओं को जीवित रखते हुए इम्फाल का "ख्वैरमबन्द मार्केट", जो कि 1940 ई. में स्थापित किया गया था | यह आज एक दर्शनीय स्थान है, जहाँ कि आज भी 3000 से अधिक "ऐमा" यानि "माताएं"अपनी दुकानें चलाती हैं | यह रास्ते के दोनों ओर अवस्थित हैं | मछली, फल, सब्जी और अन्यान्य घरेलू सामग्री रास्तें के एक ओरजबकि हथकरघे के वस्त्र, सुन्दर-सुन्दर मणिपुरी गहने एवं घरेलू-उद्योग के सामान रास्ते के दूसरी ओर | पास में ही बाँस की बनी विभिन्न वस्तुओं का बाजार है | यह "ख्वैरमबन्द बाजार" जिसे आज लोग "एमा मार्केट" के नाम से जानते हैं | यह मार्केट पूर्णतः औरतों के द्वारा चलाया जाता है और भारत का एक मात्र ऐसा बाजार है जहाँ सिर्फ महिलाओं का साम्राज्य है | यहाँ रंग-बिरंगी सुन्दर परिधानों में सजी मणिपुरी महिलाएं बाजार चलाने में व्यस्त दिखती हैं |इस बाजार में मणिपुर के प्रायः सभी उत्पाद पाए जाते हैं | आर्थिक सहयोग के अतिरिक्त यहाँ राजनीति में भी महिलाएं जमाने से भाग ले रही हैं | पहले इनमें यह प्रथा थी कि महिलाएं समूह में राज-दरबार में जाकर राजा के किसी भी फैसले को बदलने के लिए अपील करती थीं और इसी प्रथा को मद्देनजर रख कर 1891 ई. में महिलाएं मणिपुर के दो नायक 'युवराज तिकेंद्रजीत' एवं 'थंगल जेनरल' के फाँसी की सजा खारिज करने की अपील लेकर सैंकड़ों की तादात में इम्फाल के पोलो ग्राउंड में जमा हुईं पर इनकी फ़रियाद खारिज हो गई और यहीं से ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध उनके आन्दोलन की शुरुआत मानी जाती है | उन्होंने कई आन्दोलन में हिस्सा लिया, जिनमें 1904 ई. और 1934 ई. का आन्दोलन इतिहास के पन्नों पर अंकित किया गया | समूह में इनकी एकता बेमिसाल रही है | एक बार ब्रिटिश अधिकारी को 'जलकर' (watertax) बढ़ाये जाने पर, चूंकि यह पानी का मामला था, इसलिए उसे उसके ऑफिस से खींच कर सब ने मिल कर तालाब में रात भर खड़ा रखा और चारों ओर से पहरा देती रहीं जब तक कि उसने अपने आज्ञा को वापिस नहीं लिया| सन 1939 ई. की घटना ने तो मणिपुर में महिलाओं की दिशा ही बदल दी | "नूपिलाल" (विमेंस वार) के नाम से प्रचलित यह आन्दोलन चावल के निर्यात को लेकर शुरू हुआ था और यह एकता और जज्बा इनमें आज भी दिखाई देता है | उदाहरण के तौर पर – 2004 में 17 असम रायफल्स द्वारा 32 वर्षीय "थान्ग्जम मनोरमा" के बलात्कार कर जघन्य मौत देने के बाद मणिपुरी एमाओं ने इम्फाल की सड़कों पर नंगे होकर जुलूस निकाला था और बड़ा आन्दोलन किया गया | सामाजिक समस्याओं का समाधान ढूंढना भी ये अपना कर्त्तव्य समझती हैं | मणिपुर में युवकों में बढ़ते नशा करने की लत को देखते हुए इन एमाओं ने उन पर रोक लगाने की ठानी, जबकि इस राज्य में नहीं पीने वालों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थीं फिर भी इन्होने गिरते सामाजिक स्थिति को देख कर शराब बंदी संस्था की स्थापना की | जहाँ भी नशा किये लोग दिखते यह टोली उनकी खूब पिटाई करता, आबकारी गोदामों में धांधली पर भी रोक लगाया जाता | परन्तु एक पहाड़ी राज्य जहाँ कि शराब पीना आम बात थी उन्हें इस कार्य के लिए काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी | लोग डरते तो थे इस समूह से पर उन्हें रोकना कठिन था सो इनलोगों ने अपने आन्दोलन की दिशा बदल दी और अपनी ऊर्जा या शक्ति केन्द्रीय सेना के ज्यादतियों को रोकने में लगा दिया | किसी भी व्यक्ति चाहे मर्द हों या औरत अगर उन्हें गिरफ्तार किया जाता तो रात्रि के अँधेरे में भी ये औरतें मोमबत्ती और टॉर्च लेकर आर्मी या पुलिस की गाड़ी का चेकिंग कर उन्हे मुक्त करातीं | हालांकि उनके इस कृत्य के कारण मणिपुर में उग्रवाद को बढ़ावा ही मिला | उनके इस पक्षपाती रवैया के कारण युवावर्ग को गलत दिशा में जाने को प्रोत्स्साहित करता रहा | अशांति और अव्यवस्था से जूझते मणिपुर को अगर वहां की ये साहसी महिलाएं चाहें तो असामाजिक तत्वों से बचा कर मणिपुर को भारत का स्वीटजरलैंड बना पर्यटकों की दिशा उस ओर मोड़ राज्य के आर्थिक उन्नति को बढ़ावा दे सकती हैं | आज यहाँ का समूह विभिन्न जगहों पर पढ़ने और नौकरियों की खातिर बाहर आने लगा है जिससे आज राज्य की इन महिलाओं का शौर्य अन्यान्य दिशाओं में देखने को मिल रहा है | क्षमता तो इनमें पहले से है अब क्षेत्र विस्तृत हो गया है | आज मणिपुर से बाहर इनके कदम तेजी से विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्थान पर पहुँच रहे हैं | ये 'एमाएं' मणिपुर की कालिमा को प्रकाश की और ले जा रही हैं | प्रकृति की गोद में बसे राज्य में अनेक रत्न भरे पड़े हैं जिन्हें तरासते ही चमक उठी हैं |इनकी चमक विश्व स्तर पर उजागर हो रही है | ये मेहनती महिलाएं अकेले खेल के ही क्षेत्र में नित नए-नए रिकॉर्ड बनाने में लगी हैं | इनमें कुछ नाम आज विश्व स्तर पर चमक रहे हैं | घर-गृहस्थी को देखते हुई तीन बच्चों की माँ विश्व स्तर पर खेलों में परचम लहराने वाली 'मैरीक़ोम' जैसी बॉक्सर, भारोत्तोलन में जलवा दिखाने वाली चानू, कुंजरानी, ब्रजेश्वरी, भारतीय महिला फुटबॉल टीम की कप्तान रही एस कुमारी, दो बार भारतीय हॉकी टीम की कप्तान रही सुरज लता देवी, पोलो खिलाड़ी सुनिताबाला, साइकिलिंग की एक्सपर्ट सुनीता और ओमेगा, तीरंदाज बसंती, महर्षि और लुइंगमाला, जिम्नासट प्रतिमाजैसी खिलाड़ी बालाओं के रूप में रत्नों ने जन्म लिया हो उस छोटे से राज्य में औरतों के स्थान को सहज में आंका जा सकता है | यह तो सिर्फ खेल के क्षेत्र में छोटी सी झलक है, पर सिर्फ इतना ही नहीं है बल्कि पूर्वोत्तर के पहाड़ों पर बसे इस नन्हें से राज्य में औरतों की भूमिका कुछ अलग ही देखने को मिलती है | लिस्ट इतनी लम्बी है कि सबको समेटना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है | मणिपुरी महिलाओं का रोल समाज में बहु आयामी है | घर-परिवार की देख-रेख से अलग इनकी विभिन्न रूप को देखा जा सकता है | आज औरतें विश्व में हर जगह बाहर आ कर घर चलाने के लिए पैसा अर्जित करने लगी हैं, जबकि मणिपुरी समाज में महिलाएं आज वर्षों से बाहर का काम देखती हैं और घर के लिए धन अर्जित करती हैं | जैसा कि हम देख रहे हैं समाज को सुधारने के लिए भी अनेक कदम उठाये गए | सरकार द्वारा उठाए गए किसी तरह के कदम पर भी इनका दखल हमेशा से देखने को मिलता रहा है |पोलिटिकल और सिविल राईट एक्टिविस्ट आयरन लेडी कही जाने वाली 'इरोम चानू शर्मिला', औरतों के लिए आवाज उठाने वाली लेखिका 'बिना लक्ष्मी नेप्रोम' जैसे लोग इस तथ्य को सत्य साबित करती हैं | इन सब से भिन्न मणिपुर के कलाकार भी देश-विदेश में अपनी कला से जाने जाते हैं | मणिपुरी नृत्य जिसने ज़माने से भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में अपना स्थान बना रखा है और लोगों में अत्यंत लोकप्रिय है | मणिपुरी नृत्य गुरु विपिन सिंह की पुत्री प्रसिद्द न्रित्यांगना "बिम्बाबती देवी"महिला न्रित्यांगना में बड़ा नाम रखती हैं | इतने छोटे से राज्य की इन साहसी 'एमाएं' अर्थात माताओं में कार्यकुशलता अद्भुत और सराहनीय हैं, जो अपने आप में एक उदाहरण हैं | मणिपुर से निकल कर अब विश्व भर में अपना परचम लहराने वाली इन तेजस्विनियों के जज्बे और लगन को हमारा सलाम है |