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- जन्म से नीच कोई नहीं...
जन्म से नीच कोई नहीं बनता, कर्म से नीच ज्ञानी से ज्ञानी भी बन जाता है
ऊपर वाले तूने भी क्या दुनिया बनाई, किसी को आपने सोने के चम्मच के साथ दुनिया में भेजा और किसी को झाड़ू के साथ। अगर वह पैदा होता किसी राजा महाराजा के घर तो उसके हाथ में भी होता सोने का चम्मच।
मज़े की बात यह है जो सोने के चमचे के साथ पैदा हुआ है,और जो झाड़ू के साथ पैदा हुआ है अगर दोनों बच्चों को एक साथ रख दो तो कोई नहीं बता सकता किसके पास सोने का चमचा हैं, और किसके पास झाड़ू।
ऊपर वाले ने दोनों बच्चों की किस्मत अलग-अलग बनाई है, पर शरीर एक जैसा । दोनों बच्चों के शरीर में लाल रंग का खून है। एक बच्चा पूरी जिंदगी ऐश से गुज़रेगा और दूसरा बच्चा बचपन से ही लोगों के ताने सुनेगा अपमान के कड़वे घूंट पिएगा उसके ज़मीर पर रोज़ शब्दों के बाण चलेंगे रोज़ ज़मीर पर घाव बनेंगे और जमीर छलनी हो जाएगा।
हम इंसानों ने भी क्या रीत बनाई है,अपनी गंदगी दूसरों से साफ करवाते हैं,हम से अच्छे तो जानवर होते हैं,जो अपना मल दूसरे जानवरों से नहीं उठवाते। अगर आपने कुत्तों एवं बिल्लियों को देखा होगा शौच करने के बाद अपने मल पर पंजों से मिट्टी डालते हैं।
जानवरों में ऊंच नीच नहीं होती कुत्ता हमेशा कुत्ता ही रहेगा वह बात अलग है देसी हो सकता है या विदेशी,पर हम इंसानों में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अपना मल उठवाता है ,और वह भी उसकी आजीविका के लिए।
आप वह दिन सोचे जब सर पर मल ढोया जाता था, बदबू के कारण लोग मुंह पर कपड़ा रख लिया करते थे, सिर पर मल का टोकरा और बारिश के दिनों में स्थिति और विकट हो जाती थी बरसात का पानी उसमें मल मिला हुआ उसके सिर से लेकर पूरे शरीर पर बहता था। दुनिया का सबसे गंदा काम हुआ करता था यह, बदले में लोग इन मजबूर इंसानों को कुछ पैसे और रोटियां दिया करते थे। यह कितनी शर्म और घिनौनी बात थी। देश में जब से स्वच्छता अभियान चल है, तब भी लाखों की संख्या में लोग इस प्रथा से जुड़े हैं। भले इस प्रथा के खिलाफ कानून बन गया हो भले आज सिर पर मेला नहीं ढोया जा रहा हो पर आज भी लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए सीवर मेनहोल्स में उतरने को मजबूर है, पूरे शरीर पर गंदगी लग जाती है,पूरा शरीर गंदे पानी से भीग जाता है, एक आम आदमी बदबू के कारण मेनहोल के पास खड़ा नहीं हो सकता पर हमारे यह साथी घंटों मेन होल और गटरों में उतर कर सफाई करते हैं।
यह भी इंसान है ,इनको भी ऊपर वाले ने धरती पर भेजा है, इनके भी बीवी बच्चे हैं, इनको भी मान सम्मान मिलना चाहिए पर मजबूरी,गरीबी के कारण हमारी गंदगी को साफ करने के लिए मजबूर है । हमारे सभ्य समाज के सामने यह बहुत बड़ा सवाल है। जो लोग एक जमाने में मल उठाते थे कीच उठाते थे। लोग उनसे घिन करते हैं, हमें घिन करना चाहिए,उन दानवों से जो छोटी-छोटी बच्चियों के साथ घिनौना काम किया और उन बच्चियों को बेदर्दी के साथ मौत के घाट उतार दिया। हमें घिन करना चाहिए उन समाज के ठेकेदारों से जो लड़के और लड़कियों में फर्क करते हैं,जो लड़के के पैदा होने पर खुशियां मनाते हैं,और लड़की के पैदा होने पर आंसू बहाते हैं। हमें घिन करना चाहिए राजनीति के ठेकेदारों से जो इंसानों को धर्म के आधार पर बांटते हैं , हमें घिन करना चाहिए धर्म के ठेकेदारों से जो ऊपर वाले के घरों पर राजनीति करते हैं।
भले सिर पर मैला उठाने की प्रथा खत्म हो गई हो या कम हो गई हो पर आज भी इंसानों को सीवर के मेनहोल में उतारा जाता है,आए दिन हमारे सफाई कर्मियों की मौतों की खबरें आती रहती हैं।सीवर की सफाई में अब भी मर रहे हैं इंसान। फरवरी 2020 में भारत की राजधानी दिल्ली में सीवर सफाई के दौरान एक सफाईकर्मी की मौत और एक अन्य कर्मचारी के गंभीर रूप से बीमार होने की घटना सामने आई है, जो सफाई के सिस्टम पर सवाल उठाती है, साथ ही यह सुरक्षा उपायों को लेकर लापरवाही का उदाहरण पेश करती है । यह घटना दिल्ली के कड़कड़डूमा इलाके की है। सीवर की सफाई एक ऐसा काम है, जिसको करने के लिए मशीनों की मदद ली जा सकती है, लेकिन 21वीं सदी के भारत में आज भी सीवर को साफ करने के लिए इंसान उतर रहे हैं।
टॉयलेट और अन्य जगहों से आने वाला गंदा मिश्रण जब सीवर में फंस जाता है, तो उसे साफ करने के लिए सफाई कर्मियों को अंदर भेजा जाता है,और कई बार यह जानलेवा भी साबित होता है।
ऊँच-नीच का भेद न माने,
वही श्रेष्ठ ज्ञानी है।
दया-धर्म जिसमें हो,
वही पूज्य प्राणी है।
मोहम्मद जावेद खान