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- अपनी असफलता के दोषी...
अब तक जीवन का जो अनुभव मुझे हुआ है, उससे यही निकल कर आया है कि हममें से अधिकाँश लोग खुद को दुनिया का सबसे बड़ा दुखियारा घोषित करते आये हैं। मतलब दुनिया के सारे दुःख मेरे, सबसे बदकिस्मत मैं, सबसे गरीब मैं, सबसे बरबाद मैं, मेरे साथ ही भगवान ने ऐसा क्यों किया इत्यादि ब्लाह-ब्लाह-ब्लाह!
सारी रतिया, एकै बतिया..कि हमारी किस्मत सबसे फूटी! केवल रोना, रोना और रोना। किसी बात को लेकर जीवन भर कुंठित रहना। अवसादग्रस्त रहना। अमुक मेरे से आगे क्यों!
एक बार एक सज्जन का समय खराब हुआ। काम कुछ करने की बजाय, केवल कर्ज लेकर काम चलाते। पर कोई कब तक कर्ज देता। अंत में किसी ने बोल दिया कि चाय बेचना शुरू कीजिए। बस नाराज हो गये कि हम अब चाय बेचेंगे!
मतलब भीख माँगेंगे, पर चाय नहीं बेचेंगे! हाय रे इज्जत!
प्रयागराज की एक लड़की 'खुशी' मन लगाकर पढ़ना चाहती थी। पर असमय ही उसके पिता चल बसे। माँ की तबियत बेहद खराब रहने लगी। ऐसे में खुशी क्या करती?
कमसेकम न पढ़ने का उसके पास एक बड़ा सॉलिड बहाना था कि अब वह कैसे पढ़ पाएगी! जीवन का सबसे बड़ा सहारा वट वृक्ष के समान पिता जो न रहे! माँ बिस्तर पकड़ चुकी थीं। ऐसे में तो वह निश्चित ही पढ़ाई से बच सकती थी। कोई कुछ कहता भी नहीं।
पर खुशी ने किया क्या!
खुशी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक प्रथम वर्ष में दाखिला लिया और कोरोना महामारी के इस विकट दौर में प्रयागराज के सलोरी में 'स्टूडेंट्स टी कॉर्नर' के नाम से चाय की दुकान खोल ली। अपने स्टडी टेबल पर गैस व चूल्हा रखा और चाय बना कर बेचना शुरू कर दिया पिछले दिनों!
अब वह घर खर्च तो निकाल ही रही, साथ ही पढ़ाई भी कर रही। यानी यदि आप कुछ करना चाहते हैं, आप जुनूनी हैं, आपमें जज़्बा है, तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती सफल होने से।
हाँ, बाकी आप असफल होने के लिए दूसरों को लगातार दोष दे सकते हैं कि अमुक के कारण मैं असफल हो गया! तो आपको व आपके अहम को जरूर सन्तुष्टि मिलेगी कि अपनी असफलता का दोष आप दूसरों के मत्थे मढ़ रहे, पर फिर लोग सब समझते हैं कि यह केवल और केवल आपकी मनगढ़ंत बहानेबाजी है और कुछ नहीं!
एक उम्र व समझ के बाद अपनी असफलता के दोषी केवल और केवल आप हैं, दूसरा कोई नहीं। उसी प्रकार एक उम्र व समझ के बाद अपनी सफलता के भी वाहक केवल और केवल आप हैं। दूसरे केवल सही राह दिखा सकते हैं।
यहाँ एक से एक महानुभाव हैं, जो सक्षम होने के बावजूद अपने बच्चों व बच्चियों को अच्छी शिक्षा नहीं दिलाते। चोरी से शैक्षणिक डिग्री दिलवाते हैं और रूबी कुमारी की तरह "प्रोडिगल साइंस" में स्टेट टॉपर बनवाते हैं। उसके बाद समाज में बाबा बनते चलेंगे कि उनसे काबिल कौन!
याद रखिये इस जीवन में शिक्षा से बढ़कर कुछ भी नहीं है। जब तक जीवन है, सीखते रहिये कुछ न कुछ। मजा आते रहेगा। बोरियत नहीं होगी। रोंदू बनना छोड़िए और कुछ कीजिये। और कुछ नहीं कर सकते, तो चुल्लू भर पानी में डूब मरिये!
-प्रियांक