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कोरोना ही नहीं किसी भी वैक्सीन का उत्पादन करना आसान नहीं है
लंदन के औक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) के जेनर इंस्टीट्यूट ने 11 जनवरी 2020 से कोविड-१९ के वैकसीन पर काम शुरू कर दिया था जिस दिन कोविड का जेनेटिक शक्ल लोगो को शोध से प्राप्त हुआ था। इस महीना औक्सफोर्ड का वैकसीन अपने तीसरे चरण (third stage) के आखरी दौर से (500 आदमी को दो डोज़ दिया गया है) गुजर रहा है।
उमीद है तीसरा चरण अगस्त मे पूरा हो गा और फिर पूरे शोध का अध्ययन कर चौथा चरण नवंबर मे अतिसंवेदनशील लोगो (vulnerable people) को दो डोज़ दिया जाये गा और उस का प्रतिकूल प्रभाव (adverse effect) जैसे, हार्ट अटैक, फ़ालिज या किडनी तथा दिमाग पर बूरा असर देखा जायेगा। कहा जा रहा है कि कोविड से पीड़ित लोगो को हार्ट अटैक, लकवा और दिमाग़ी बीमारी हो रही है।
फिर फरवरी-मार्च मे वैकसीन पर अध्ययन होगा फिर जा कर दवा की कम्पनी को इस को बनाने की अनूमती दी जाये गी। कल की खबर है कि ब्रिटेन की AstraZeneca ने जेनर इंस्टिट्यूट को $450 million और Glaxo ने भी $500 million दिया है। जिस से यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि वैकसीन III-stage (तीसरे चरण) मे कामयाब है।
चूकि शुरू मे वैकसीन कम बने गा तो ब्रिटेन सरकार यह फैसला करे गी के पहले डाक्टर/नर्स या जवान या बूढ़े किस को दिया जाये क्योकि कम समय मे इस वैकसीन के adverse effect/immunity का अंदाजा लगाना मोशकिल है।
(नोट: भारत मे तो फरवरी तक नमस्ते ट्र्म्प और दिल्ली मे दंगा होता रहा और मार्च मे सरकार ताली ठोकवाती रही और 30 मार्च तक केजरीवाल तबलीगी कोरोना कहते रहे। आज कोरोना अखबार केजरीवाल के Plasma Bank का हेडलाईंस दे रहा है जबकि दुनिया मे किसी को पता नही है कि कोरोना की immunity तीन महीना है या एक साल या ज़िंदगी भर। यह तो है हमारे भारत के कोरोना बूद्धिजीवी हैं और देशवासी उमीद मे है कि 15 अगस्त को भारत को वैकसीन मिल जायेगा)