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- क्या पीरियड्स के दौरान...
क्या पीरियड्स के दौरान पूजा करना या नहीं करना चाहिए?
अभिलाषा द्विवेदी
पीरियड्स के दौरान पूजा करना या नहीं करना अपना व्यक्तिगत विचार हो सकता है, पर वहीं तक,या तो हमारे अपने घरों में या फिर उन जगहों पर जहाँ इससे संबंधित नियम नहीं बनाये गये हों। अब तो मंदिर भी यूँही बना दिए जाते हैं, जिनका कोई न वास्तु होता है, न ही नियम - विधान होता है। महाविद्याओं की साधना तो बहुत ही दूर की बात है। तो वहाँ के लिए कोई ऐसे नियम अपरिहार्य नहीं होते।
भारतीय भाषा में रजस्वला स्त्री का अर्थ अपने आप में उस समय उसके रजस् गुण को बताता है। रजस् स्वर्ग और धरती के बीच का स्थान होता है। रज वो सूक्ष्म कण होते हैं जिससे संसार बना है। यह सृष्टि, मैथुनी है। जिसमें इसकी निरंतरता का आधार रज है। हम अध्यात्म से संसार की ओर प्रस्थान बिंदु को यदि समझें तो रजस्वला वही है। स्वयं प्रकृति में भी ऋतु परिवर्तन होता है, जो काल परिवर्तन का कारक है। सृष्टि की निरंतरता के लिए यही परिवर्तन स्त्री में ऋतु स्राव के रूप में होता है। जब वह अपने रज से सृष्टि में निरंतरता के लिए जन्म देने की शक्ति से युक्त होती है। वह देवी मय होती है। जिसे पूज्य माना गया है। भारत वर्ष की संस्कृति की कई परंपराओं में इस दौरान स्त्री को पूजे जाने की प्रथा रही है। दक्षिण भारत और हिमाचल प्रदेश में कई परिवारों में अभी भी यह देखा जा सकता है। जिन दिनों में स्त्री विशिष्ट होती है, उसे कई नियमों से exempted रखा गया था। हम खुद ही उसे विकृत करते हुए आज कैसे - कैसे विमर्श करते दिखते हैं।
ख़ैर यूँ भी periods के दौरान शरीर में कई सारे बदलाव होते हैं जो तकलीफदेह होते हैं, मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करते हैं। यदि मैं चेतना के स्तर पर होने वाले बदलाव की बात न भी करूँ तो भी, इस दौरान शरीर और मन दोनों ही थोड़ा अधिक संवेदनशील होता है। यह समझने के लिए किसी वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता नहीं यह तो आम समझ वाले लोग भी जानते हैं।
भारत के विभिन्न कल्ट में मंदिर और पूजा विधान में कई तरह के occult practices हुआ करती हैं। जिनका प्रयोग पांच महाभूत के बैलेंसिंग के लिए भी किया जाता रहा है। पूजा और अनुष्ठान में निहित यंत्र, मंत्र और तंत्र तीनों विधाओं का प्रचलन आज भी कई मंदिरों में है। जिससे पैदा होने वाले प्रभावों को आज टूल्स और टेक्नोलॉजी की मदद से मापा जा सकता है। पूजा के दौरान शरीर विभिन्न संवेगों (Vibrations) के संपर्क में आता है। यथा पूजा में प्रयुक्त वाद्ययंत्र घरी घंटे, शंख, घंटा तो अब भी लगभग सभी मंदिरों में प्रयुक्त होता है। इसके अलावा विभिन्न बड़े वाद्ययंत्र भी विशेष पूजा अनुष्ठान में प्रयुक्त होते थे (ये सब अब घरों में छोटी पीतल की घंटी में सिमट गया है)। विभिन्न अर्चाओं के लिए अलग प्रकार के मंत्रोच्चार के संवेगों की भी ऊर्जा विभिन्न उपचार के लिए प्रयोग में लाई जाती है. तो जिसकी क्रिया होती है उसकी प्रतिकूल परिस्थिति में प्रतिक्रिया भी होगी। इनका सृष्टिकारक समय के दौरान शरीर या मन पर कोई भी गलत प्रभाव न हो इस कारण ऐसे में पूजा नहीं करने की सलाह दी जाती रही है। ये सूक्ष्म ऊर्जा के स्तर की बात है। जिसका कोई त्वरित परिणाम नहीं मिलना होता है पर प्रभाव होता है।
मानसिक पूजा, या धूप-दीप जलाने, हाथ जोड़ने की मनाही कभी नहीं रही है। अब घरों में न कोई रोज़ विधि विधान से पूजा पाठ अनुष्ठान करता है, और न ही सभी मंदिरों में occult practices होती हैं। कई सारे hormonal test during periods ही कराने की सलाह दी जाती है,क्योंकि उस समय उनका स्तर आम दिनों की अपेक्षा अलग होता है। और अक्सर महिलाएँ pms के दौरान कई तरह की मानसिक, शारीरिक दिक्कतों से गुजरती हैं। शरीर के तापमान ही नहीं मनःस्थिति में भी बदलाव होते हैं। इस कारण भी पूजा पाठ, कर्मकांड में उन्हें नहीं उलझाने का प्रयास करना एक सामाजिक कारक भी रहा है। बहुत detail में periods पर शोध के निष्कर्ष लिख पाना यहाँ fb पोस्ट में सम्भव नहीं। पर इस दौरान घर में धूप-दीप वाली चलताऊ पूजा करने की मनाही नहीं है, न ही इसमें पूजा करने को महिमामंडित करने या प्रचारित करने जैसा कुछ है। कुछ मंदिरों में नियम बनाए गए हैं, उसके भी अपने कारण हैं। इसे वरदान या अभिशाप से जोड़ना व्यक्तिगत सोच हो सकती है पर indigenous healing system के अपने परीक्षण निष्कर्ष और उस पर आधारित नियम रहे हैं।
ये मेरे व्यक्तिगत अध्ययन के अनुरूप मेरी समझ है। ज़रूरी नहीं कि जिसे इस बारे में जानकारी न हो वो भी ऐसा ही विचार रखे। शरीर का भी मैग्नेटिक फील्ड होता है, जिसके अनुरूप हम पर विभिन्न बलों का प्रभाव होता है। यह सूक्ष्म स्तर पर भी प्रभाव डालते हैं जिसके दुष्परिणाम बहुत हल्के प्रभाव वाले हो सकते हैं इतने कि हम इग्नोर कर दें पर शरीर पर हर छोटे से छोटे संवेग का प्रभाव पड़ता है। किसी भी तरह के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए सलाह दी गई है और उससे कोई नुकसान नहीं हो रहा हो, तो अधिकतर लोग उसे मान लेते हैं।
मानसिक पूजा, ध्यान, मनन, भजन कभी भी किसी भी परिस्थिति में करने के लिए सदा ही कहा जाता है। उसकी कहीं कोई मनाही नहीं है।
रही बात किसी भी भगवा पहने किसी कथित संत के कुछ कहने की तो कोई भी सनातन धर्म का ठेकेदार नहीं। ऐसे कुंद बुद्धि लोगों की मान्यता खत्म हो उसके लिए हम सभी को हिन्दू धर्म में मान्यताओं के पीछे तथ्य, तर्क, विज्ञान के आधार पर बने विश्वास को समझने की जरूरत है।