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अयोध्या जिले के 150 गांवों में रहने वाले सूर्यवंशी क्षत्रिय 500 साल बाद अब सर पर पगड़ी व पैरों में चमड़े के जूते पहनेंगे!
क्षत्रियों में और ब्राह्मणों में परम्परा रही है - पग ,जनेऊ और चमड़े की जूती ब्राह्मणों में खड़ाऊ की ,किसी की पगड़ी को ठोकर मारना, लांघना या भूमि पर रखना अपमान माना जाता है। युद्ध स्थल से यदि किसी की पगड़ी आ जाए तो समझा जाता है कि वह व्यक्ति वीरगति को प्राप्त हो गया। किसी के #पिता की मृत्यु पर 12वें दिन ज्येष्ठ पुत्र को पगड़ी बंधवाकर घर का उत्तराधिकारी घोषित किया जाता है। इसे पगड़ी की रस्म कहा जाता है। किसी भी अतिथि के घर आने पर मेजबान पगड़ी बांधकर ही उसका स्वागत करने घर से बाहर आता है। नंगे सिर सामने आना अपमानजनक एवं अपशकुन माना जाता है। बारात आने की सूचना देने वाले भाई को वधू पक्ष वाले आज भी पगड़ी बंधवाकर खुश करते हैं।
जब अयोध्या के राममंदिर पर #देवीदीन_पांडेय की अगुवाई में राममंदिर पर कब्जे के लिए क्षत्रिय गए और सभी युद्ध मे वीरगति प्राप्त हुए तो उनकी पग लेकर एक व्यक्ति बैलगाड़ी में भरकर साफा लेकर आया । उसे देखकर सूर्यवंशी_समाज के पूर्वजों ने इस बात की शपथ ली थी कि जब तक मंदिर फिर से नहीं बन जाता, वे सिर पर पगड़ी नहीं बांधेगें, छाते से सिर नहीं ढकेंगे और चमड़े के जूते नहीं पहनेंगे। अब वचन ले लिया ,तो निभाना तो पडता ही..... क्योंकि सूर्यवंशी क्षत्रिय खुद को राम का वंशज मानते हैं और रघुकुल_रीति_सदा_चली_आयी ,
#प्राण_जाए_पर_वचन_न_जाई , तो अब सर पर पग कैसे बांधे और क्षत्रिय ब्राम्हण में बिना पग के शादी नहीं होती। पग बांधने की एक रस्म होती थी / है ।
आज जब राममंदिर का शिलान्यास हुआ है, तो आज करीब 500 सालों के बाद #सरायरासी, #सिसिण्डा , #सनेथू ,#भीटी , #सराव , #हंसवर #मकरही आदि 150 गांवों के सूर्यवंशी क्षत्रिय लगभग 500 सालों के बाद अपनी परम्परागत पोशाक पहनेंगे। #अयोध्या जिले के लगभग 150 गांवों में रहने वाले सूर्यवंशी क्षत्रिय अब सर पर पगड़ी व पैरों में चमड़े के जूते पहनेंगे। इन गांवों में घर-घर जाकर और सार्वजनिक सभाओं में क्षत्रियों को पगड़ियां बांटी जा रही हैं।इनका कहना है कि सैकड़ों साल के बाद हमारी शपथ पूरी हुई है और राम मंदिर बनने का रास्ता प्रशस्त हुआ है। अयोध्या में ब्लाक, बाजार व उसके आस पास के लगभग 150 गांवों में सूर्यवंशी क्षत्रियों की आबादी रहती है। भगवान राम भी सूर्यवंश से थे इसलिए ये क्षत्रिय भी खुद को राम का वंशज मानते हैं। मंदिर बनाए जाने के फैसले के बाद इस समूह में काफी उत्साह है। सालों बाद ये अपनी के शपथ तोड़ने जा रहे हैं।
साभार: अजेष्ठ त्रिपाठी