लाइफ स्टाइल

तीन साल पहले दिवंगत अभिनेता इरफान खान का ये लेख पोस्ट करते ही मचा घमासान, जिसमें लिखी थी उन्होंने ये बड़ी बात!

Shiv Kumar Mishra
30 Aug 2020 9:24 AM IST
तीन साल पहले दिवंगत अभिनेता इरफान खान का ये लेख पोस्ट करते ही मचा घमासान, जिसमें लिखी थी उन्होंने ये बड़ी बात!
x

मधु

तीन साल पहले दिवंगत अभिनेता इरफान खान का एक लेख पोस्ट किया था जिसमें उन्होंने बकरीद पर बकरे की कुर्बानी का विरोध किया था। उस लेख को मेरे द्वारा पोस्ट करते ही यहाँ कई मुस्लिम पाठक कमेंट करने लगे कि आप आर. एस. एस. की खरीदी लेखिका हो। बीजेपी से कितना पैसा मिलता है आपको?

आज माहौल ऐसा है कि यदि कलमकार की कलम सिर्फ इतनी चल जाए कि देश के इस कोने में या इस सरकारी नीति पर खुली सार्थक बहस करवानी चाहिए । पाठक झंडे लेकर खड़े हो जाते है कि आप कांग्रेस के खिलाफ नही लिखते ।

मेरे लिए कांग्रेस "मोहन जोदड़ो सभ्यता" हो चुकी है । जमींदोजद पार्टी के विषय में क्या लिखा जाए आप खुद सोचकर देखिए । कांग्रेस से सवाल करना विलुप्त प्रजाति में अंकुरण की आशा जैसा दुष्कर कार्य है। हर वक्त भूतकालीन कांग्रेस का परिहास करते हुए वर्तमान की समस्याओं पर परिचर्चा से भागा नही जा सकता । 2014 चुनाव में मैंने सोशल मीडिया पर तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के खिलाफ कई लोकप्रिय नारे लिखे थे ।

मैं बहुत अदना सी लेखिका हूँ जो दिन रात आर्टिकल , इतिहास पढ़ कर अपनी समझ विकसित करने के प्रयास में हूँ ।मुझे जो बातें बेहद तर्कसंगत लगती है उसे आपसे साझा करती हूँ। दूसरों के जो लेख या कवितायें पसन्द आए उन्हें भी आपको उनके नाम सहित परिचित करवाया है ।अगर आप अभी भी नही जानते तो सुशोभित , कबीर, ताबिश सिद्दकी, तुषार आलोक इन्हें पढ़िए ये फेसबुक पर बहुत शानदार लिख रहे है ।

लेखक यदि अपने धर्म से प्यार करता है तो वो सबसे पहले अपने धर्म की कुरीतियों पर काम करके अपने ही धर्म भाइयों का शत्रु बनता है । फेसबुक पर "सिद्धार्थ ताबिश सिद्दीकी" युवा मुस्लिम लेखक को पढ़ कर मुझे लगा कि ये लेखक अपने ही मुस्लिम भाइयों का इतना विरोध कैसे झेल पाते है । बहरीन में एक मुस्लिम महिला ने मॉल में गणेश चतुर्थी के लिए बिकती गणेश जी की प्रतिमा को खंडित किया । ताबिश ने जोरदार विरोध करते विचारोत्तेजक लेख से आपत्ति दर्ज की । मुस्लिम समुदाय को समझने की जरूरत है कि ताबिश जैसे युवा उनके धर्म और इस्लाम के सबसे शानदार अनुयायी है ।

यदि लेखक को अपने देश से प्रेम है तो उसकी कलम हमेशा- हमेशा सार्थक विपक्ष का काम करती है । स्मरण रहे कि ईमानदार लेखक सत्ता की आवाज़ कभी नही होते । वे हमेशा आलोचक ही रहते है और एक सफल प्रजातंत्र के लिए यह आवश्यक है ।सत्ता अपनी प्रशंसा के लिए करोड़ो के पेमेंट पर मार्केटिंग टीम और विज्ञापन एजेंसी रखती है । यदि सत्य को स्वीकारने का साहस नही ....यदि जवाब में तर्क नही है तो सत्य बोलने वाले पर शाब्दिक हिंसा सबसे कमजोर हथियार है ।

कल की पोस्ट मुझे नेट से मिली थी ।नेट पर एक जगह से दूसरे जगह वायरल होते लेख प्रायः लेखक के नाम के बिना होते है । मुझे ये दैनिक भास्कर के पोर्टल से मिला इसलिए मैंने दैनिक भास्कर का उल्लेख किया । मैं कल तक सार्थक पोस्ट के राइटर से अनजान थी । मैंने नफरत भरे ऐसे दिमाग भी देखे है जो लेखक का जान लेने के बाद एक गम्भीर लेख में उठाए सवालों के जवाब में उन पर निजी हमले करते है ।

संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अर्थ है भिन्न भिन्न मष्तिष्क में भिन्न भिन्न विचार होते है ।

हम अपने से अलग सोच रखने वाले के साथ कैसा बर्ताव करते है यही बर्ताव हमारी पहचान है । मुझे नकारात्मक कमेंट से फर्क नही पड़ता कहना झूठ होगा । अश्लील भाषा से मन में खिन्नता भर जाती है । कई बार लगता है कि देश के पचास प्रतिशत लोगो से बेहतर जीवन शैली मेरी है ।जब उन्हें समस्या नही है तो क्यों मैं ये आंकड़े पोस्ट करूँ ? क्यों मैं अपने लिए ये सुनूँ कि मैं ब्राह्मणों के नाम पर कलंक हूँ, विधवा विलाप जैसे कबिलाई शब्द । क्यों ना मैं भी केवल पारिवारिक लेख और कविताएँ ही पोस्ट करूँ । पाठक भी खुश और मैं भी लेकिन फिर याद करती हूँ मैंने कभी मनोरंजन के उद्देश्य से लिखना शुरू नही किया था ।

मुझे हिन्दू धर्म की उत्सवधर्मिता से अगाध प्रेम है । मेरी कहानियाँ और लेख हमेशा से लोकाचार और संस्कृति से सराबोर रहे । मुझे अपने हिंदुत्व के लिए किसी और से सर्टिफिकेट की जरूरत नही है । जब जब अनुभव होगा कि मेरे धर्म में समय के साथ ये प्रथा अब कुरीति बन गयी है तो मैं जरूर लिखूंगी । धार्मिक कर्मकांडो में समय समय पर लिए गए संसोधन उस धर्म को निखारते और मजबूत बनाते है । आप सबसे नम्र आग्रह है कि अपने अपने धार्मिक ग्रन्थों की तरह ही खूब "किताबें" पढ़ाइये । अपने बच्चों को स्क्रीन से दूर किताबों की तरफ लाइये । टीवी पर जहर परोसते चैनल किसी हाल में श्रोताओं के बौद्धिक स्तर में इजाफा नही कर रहे है । स्टूडियों के भीतर चीखते पत्रकार और समाचारों के नाटकीय मंचन ने जनमानस में उन्मादी सोच पनपाने की ठान रखी है । अब तो सोशल मीडिया में भी लोग चैनल के दो कौड़ी वाले लांछन लगा रहे है, देश भक्ति सर्टिफिकेट बाँट रहे है ।सहज है कि सत्ता की आलोचना करने दुनियादारी लाभ छोड़कर लिखना होता है । लेखिकाओं पर चारित्रिक हमले कर उन्हें लेखन से दूर करना ज्यादा आसान है और भी बहुत कुछ है लेकिन मैं महिला कार्ड नही खेलना चाहती इसलिए पूरे लेख में जेंडर पर बात ना करके विषय पर चर्चा की गई है ।

मेरे विचार से कलमकार का हौसला तोड़ना सामाजिक अपराध है। असहमति को स्थान है लेकिन अशिष्टता को नही । ....

..आपकीं मधु 🙏🏻

Next Story