भोपाल

अपना एमपी गज्जब है..13, मात्र 26 साल की उम्र में इतिहास बनने जा रही एक ऐतिहासिक इमारत...

Shiv Kumar Mishra
17 Sept 2022 8:56 PM IST
अपना एमपी गज्जब है..13, मात्र 26 साल की उम्र में इतिहास बनने जा रही एक ऐतिहासिक इमारत...
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अरुण दीक्षित

17 सितम्बर की तारीख बहुत महत्वपूर्ण है!पूरे देश में इसका जश्न मनाया जा रहा है।मध्यप्रदेश में तो इसके लिए खास तैयारी की गई है।जश्न को खास बनाने के लिए देश में लुप्त हो रहे चीते लाए जा रहे हैं!जिनकी वजह से यह तारीख "खास" हुई है, वे खुद चीतों के साथ समय बिताने मध्यप्रदेश आ रहे हैं।सरकार ने पलक पांवड़े बिछाए हैं।संगठन भी जमीन आसमान एक किए हुए है। चहुंओर खुशी का आलम है।

इस खुशी के आलम में एक ऐतिहासिक इमारत बहुत ही गमगीन है।उसका जन्मदिन भी 17 सितम्बर ही है।अभी उसकी उम्र मात्र 26 साल ही हुई है!इतनी कम उम्र में उसने कई उतार चढ़ाव देख लिए हैं।बहुत से राज उसके सीने में दफन हैं।मजे की बात यह है कि जिन की वजह से 17 सितंबर "राष्ट्रीय पर्व" बना है,उन्होंने भी इस इमारत को करीब से देखा है।लंबा समय इसके साथ बिताया है।पर इसका दुर्भाग्य यह है कि भरी जवानी में उसका "डेथ वारंट" जारी हो गया है।उससे भी ज्यादा दुखद यह है कि डेथ वारंट पर दस्तखत उन अपनों ने किए हैं जिन्हें इसे सजाना और संवारना था।

जानदार लेकिन बेजुबान यह इमारत अपना दुख न कह सकती है न लिख सकती है! उससे भी बड़ी बात यह है कि जिन्होंने उसे आकार दिया वे लोग भी नेस्तनाबूद हो चुके हैं।जो बचे हैं वे हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। इनमें अधिकांश मौन हैं।लेकिन फिर भी इस इमारत की पीड़ा को आवाज मिली है।यह आवाज है पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा की।उन्होंने पत्र के जरिए उनसे ही "दया" की मांग की है जिन्होंने इसके डेथ वारंट पर दस्तखत किए हैं।

आप सही समझे!मैं भोपाल में बनी उसी इमारत की बात कर रहा हूं जिसे भाजपा कार्यकर्ता प्रदेश भाजपा कार्यालय के नाम से जानते हैं।

आइए पहले आपको इस इमारत के बारे में बताते हैं।भाजपा में पित्रपुरुष के नाम से मशहूर रहे स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे ने इस इमारत का सपना देखा था।उनके साथी स्वर्गीय प्यारेलाल खंडेलवाल ने इसे मूर्त रूप देने में अहम भूमिका निभाई थी।करीब एक दर्जन वरिष्ठ नेताओं ने मिलकर इसे जमीन पर उतारा था।

इसे नाम दिया गया था - दीनदयाल परिसर!इस परिसर में दीन दयाल उपाध्याय के साथ साथ कुशाभाऊ ठाकरे और विजयाराजे सिंधिया की प्रतिमाएं भी लगी हुई हैं।राजधानी के सबसे पॉश इलाके अरेरा कालोनी स्थित इस इमारत की शुरुआत 1988 में हुई थी।28 दिसंबर 1988 को इसके लिए जमीन आवंटित हुई थी।फिर कार्यकर्ताओं से "सहयोग " मांगा गया।19 दिसंबर 1991 को भाजपा की संस्थापक सदस्य विजयराजे सिंधिया ने इसकी नीव का पहला पत्थर रखा।करीब 5 साल में यह परिसर बनकर तैयार हुआ।

17 सितम्बर 1996 को तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने इसका विधिवत उद्घाटन किया। इस हिसाब से 17 सितम्बर इसका भी जन्मदिन है।

करीब ढाई एकड़ में बनी इस इमारत के बनाने पर तब करीब तीन करोड़ रुपए खर्च आया था। इसमें करीब दो करोड़ रुपए कार्यकर्ताओं ने दिए थे।जबकि एक करोड़ रुपए अन्य स्रोतों से जुटाए गए थे।

यह इमारत ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि पूरे देश में यह भाजपा की अपनी पहली इमारत थी।इतना विशाल और भव्य कार्यालय तो दिल्ली में भी नही था। इसमें हर जरूरत को पूरा करने की कोशिश की गई थी।एक आगे बढ़ती 16 साल की पार्टी को जो कुछ जरूरी था, वह सब इसमें था।

कुशाभाऊ ठाकरे ने भविष्य को देखते हुए स्वयं खड़े होकर इसे बनावाया था।घर घर जाकर चंदा मांगा था।इमारत मजबूत बने और भविष्य की जरुरतों को पूरा कर सके,इसलिए इसके लिए भी व्यवस्था की गई थी।इसी वजह से तभी इसको पांच मंजिल तक बनाने की अनुमति ले ली गई थी।

बनने के बाद पिछले 26 सालों में इस इमारत ने इतिहास बनते देखा है।इसके अस्तित्व में आने के बाद दिल्ली में भाजपा को सत्ता मिली।पहले 13 दिन फिर 13 महीने फिर पूरा कार्यकाल अटलविहारी बाजपेई को प्रधानमंत्री के रूप में मिला।प्रदेश में भी दस साल के वनवास के बाद 2003 में पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली।

तब से समय की नदी में बहुत पानी बह गया है।इस इमारत को खड़ा करने वाली पूरी पीढ़ी काल के गाल में जा चुकी है। अब इक्का दुक्का लोग ही बचे हैं जो इसके निर्माण में सहभागी थे।

पीढ़ी बदलने के साथ पार्टी का चाल चरित्र और चेहरा भी बदला है।झोले में दो जोड़ी कपड़े लेकर चलने वाले नेताओं की जगह शानदार कपड़े पहनने वाले और आलीशान कारों में चलने वाले नेताओं ने ले ली है।लक्ष्मी की उन पर भरपूर कृपा है।

पिछले 17 साल में पार्टी के सहयोगी संगठनों की अपनी भव्य इमारतें राजधानी भोपाल के साथ साथ प्रदेश के अन्य शहरों में भी बन गईं हैं। भरपूर विस्तार हर क्षेत्र में हुआ है।

शायद यही वजह है कि वर्तमान नेताओं को यह इमारत अब छोटी लगने लगी। भाजपा सूत्रों की माने तो स्थानीय इकाई ने राष्ट्रीय नेतृत्व से इस इमारत के नवीनीकरण की अनुमति मांगी थी।

लेकिन इतिहास से पीछा छुड़ाने में जुटे राष्ट्रीय नेतृत्व ने इसे ध्वस्त करके इसकी जगह राष्ट्रीय कार्यालय जैसी भव्य इमारत बनाने का आदेश जारी कर दिया।

इसकी तैयारी भी हो गई है।नया नक्शा तैयार है।कार्यालय के लिए वैकल्पिक स्थान खोज लिया गया है।विधानसभा चुनाव के साथ साथ नई बिल्डिंग बनाने की तैयारी भी शुरू हो गई है।

किसी ने कुछ नही कहा। नया नेतृत्व खुश है कि नई इमारत के साथ उसका नाम भी पार्टी के इतिहास में दर्ज हो जायेगा।

लेकिन पुरानी पीढ़ी के प्रतिनिधि पंडित रघुनंदन शर्मा ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।पहले उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी लिख कर इस इमारत को बचाने को कहा।उसके बाद उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को पत्र लिख कर इस इमारत को न तुड़वाने का अनुरोध किया है। नड्डा ने भी इस इमारत को करीब से देखा है।वह मध्यप्रदेश के दामाद जो हैं।

रघुनंदन शर्मा ने अपने पत्र में इस इमारत का पूरा इतिहास और इससे जुड़े लोगों के त्याग का पूरा जिक्र किया है।उन्होंने यहां तक लिख दिया है कि इस इमारत को तोड़ना अपने ही हाथियों से अपने ही सैनिकों को कुचलने जैसा होगा।प्रदेश भाजपा में लंबे समय तक कार्यालय मंत्री रहे शर्मा राज्यसभा सदस्य रहे हैं।वे इतने भावुक हो गए हैं कि उन्होंने बुलडोजरों का सामना करने तक की बात कह दी है।

अन्य बुजुर्ग नेता भी उनके साथ खड़े हो रहे हैं।एक अन्य नेता का कहना है - खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस इमारत में लंबे समय तक रहे हैं।उन्हें इसकी अहमियत मालूम है।इसे ध्वस्त करना तो खुद का इतिहास खत्म करने जैसा ही होगा।वे अपने जन्मदिन पर मध्यप्रदेश को चीते भेंट करने जा रहे हैं!अगर इस इमारत को जान की माफी भी से जायें तो बहुत दुआ पाएंगे!

वैसे नए नेतृत्व को अगर खुद को ज्यादा सक्षम साबित करना है तो बहुत से काम हैं करने को!वह करे।या फिर साफ साफ यह आदेश दे दे कि पुरानी पीढ़ी की हर पहचान खत्म की जाएगी।इस इमारत के शिलान्यास के पत्थर पर देश में भाजपा को खड़ा करने में हर तरह की मदद करने वाली राजमाता विजया राजे सिंधिया का नाम लिखा है।पूरा जीवन भाजपा को देने वाले कुशाभाऊ ठाकरे का भी नाम उस पर दर्ज है।17 सितम्बर 1996 को इसका उद्घाटन देश में राम रथ के रथी लालकृष्ण आडवाणी ने किया था।

अगर इन सबके नाम ही हटने हैं तो दीवारों पर लगे दोनों पत्थरों को निकलवा के अपने नाम का पत्थर लगवा लीजिए।इसके लिए अपनों का नामोनिशान मिटाने वाले मुगलों की बराबरी क्यों करना!आपकी लाइन को लंबा होते सब देख रहे हैं!ऐसे में एक इमारत से भला कैसी दुश्मनी?

उधर भाजपा के वे कार्यकर्ता भी लामबंद हो रहे हैं जिन्होंने दो दो लाख रुपए देकर इस इमारत में बनी दुकानें ली थीं।वे भी हर दर पर माथा टेक रहे हैं।अपनी प्रतिबद्धता और भाजपा से पीढ़ियों की दुहाई दे रहे हैं।

देखना यह है कि केंद्रीय नेतृत्व अपना फैसला बदलता है या फिर इस ऐतिहासिक इमारत को "इतिहास" बना देगा। फिलहाल सब दिल्ली की ओर देख रहे हैं!

कुछ भी हो अपना एमपी तो गज्जब हैं।

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