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आखिर मिल गया जबाब, महाराजा क्यों गये शिवराज के द्वार?
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हुई मुलाकात को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा र ही है. लेकिन मुलाकात की असल वजह किसी को समझ नहीं आ रही है. इस मुलाकात ने सूबे की सियासत में एक नई बहस छेड़ दी है. विधानसभा चुनाव के दौरान कट्टर विरोधी रहे दोनों नेताओं के अचानक मिलन ने कांग्रेस-भाजपा के दिग्गजों को चौंका दिया है. हालांकि इस मुलाकात के पीछे की राजनीतिक वजह स्पष्ट नहीं हो पाई है. दोनों नेता अभी तक इस शिष्टाचार मुलाकात बता रहे हैं. जो किसी बीजेपी और कांग्रेसी नेता के गले नहीं उतर रही है.
सिंधिया-शिवराज की मुलाकात इसलिए भी अहम बताई जा रही है कि क्योंकि विधानसभा चुनाव में 'माफ करो महाराज, हमारे नेता तो शिवराज' मुद्दा छाया. इस मुलाकात को लेकर दोनों दलों में चुटकी ली जा रही है कि 'महाराज माफ' करने खुद घर पहुंच गए. मजेदार बात यह है कि दोनों नेताओं के बीच हुई मुलाकात को लेकर किसी भी दल के नेता की ओर से कोई बयान नहीं दिया गया है. इतना ही नहीं सिंधिया और शिवराज इसे सौजन्य मुलाकात ही बता रहे हैं. जबकि इस मुलाकात को लेकर कांग्रेस एवं भाजपा के अंदरखाने गुप्तगू शुरू हो गई है. ज्योतिरादित्य सिंधिया सोमवार देर रात अचानक पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने उनके बंगले पर पहुंचे. दोनों के बीच करीब आधे घंटे से भी ज्यादा समय तक बंद कमरे में चर्चा हुई.
विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों ही नेताओं में जमकर वार पलटवार हुआ. हर भाषण में दोनों ही नेता एक दूसरे पर खूब बरसे, लेकिन इस राजनीतिक कड़वाहट के बावजूद भी दोनों नेता गर्मजोशी के साथ मिले, इस मुलाकात के कई मायने हो सकते हैं. वहीं चुनाव के बाद दोनों ही नेताओं की भूमिका भी बदली नजर आ रही है. एक तरफ शिवराज को अब केंद्र में बुलाने की कोशिश शुरू हो गई है, उन्हें राष्टीय उपाध्यक्ष बनाया गया है, नेता प्रतिपक्ष बनने की दौड़ में भी पहला नाम उन्ही का था, लेकिन गोपाल भार्गव को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया. जिसके बाद से ही शिवराज को मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर करने की चर्चा शुरू हो गई है.
वहीं मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जाने वाले सिंधिया कांग्रेस की सरकार बनने के बाद अब लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं. लेकिन अंदरखाने अभी भी उनके समर्थकों में उन्हें सीएम नहीं बनाये जाने की नाराजगी है. पार्टी ने सिंधिया को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपते हुए महासचिव बनाया है. जिससे पार्टी में उनका कद बड़ा है. लेकिन इस फैसले को लेकर भी सियासी गलियारे में कई तरह ही चर्चा चल रही है. सत्ता परिवर्तन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ भी शिवराज से मुलाकात कर चुके हैं. शिवराज से कमलनाथ ने सीएम हाउस जाकर मुलाकात की थी. लेकिन यह तब की बात है जब चुनावी हार का मामला ताजा था. शिवराज शिष्टाचार के नाम पर बड़ा दांव करते हुए कमलनाथ की शपथ विधि में अपनी खास मौजूदगी दर्ज करवाई थी और उसका हिसाब पूरा करने कमलनाथ उनके घर गए थे. तब शिवराज ने सीएम हाउस भी नहीं छोड़ा था. सिंधिया ने इस मुलाकात से यह फिर साबित किया है कि मध्यप्रदेश की कमान भले ही कमलनाथ के पास हो और दिग्विजय सिंह समानांतर पावर में हो लेकिन तीसरी ताकत वे खुद हैं.
वहीं कुछ लोंगों का यह भी मानना है कि महाराजा कहीं अपनी दादी विजयाराजे सिंधिया की तरह कांग्रेस को फिर से एक झटका तो नहीं देंगे. इस पर भी सवालिया निशान बना हुआ है. साठ के दशक में महारानी भी तत्कालीन सरकार से अपने अपमान के चलते नाराज होकर सरकार से अपने समर्थकों समेत दुसरे दल में शामिल हो गई थी और फिर अंत तक उसी पार्टी में रही. इसलिए इस मुलाकात का कुछ लोग यह भी मतलब निकाल रहे है. अब देखिये महाराजा क्यों गये शिवराज के द्वार सवाल बना हुआ है.