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- आखिर कब मिलेगा...
भोपाल।शिवराज सिंह चौहान मंत्रियों को ज़िलों का प्रभार कब देंगे? यह सवाल आजकल पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है।यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि खुद मुख्यमंत्री ने ऐलान किया है कि एक जुलाई से मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के तबादलों पर लगा प्रतिबंध हट जाएगा।जिलों में तबादले प्रभारी मंत्रियों की सिफारिश से होंगे!
यह भी संयोग ही है कि शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले पूरा सवा साल हो गया है।अब तो मंत्रिमंडल भी "व्यवस्थित" हो गया है।सभी खेमे संतुष्ट हैं और सबके बीच संतुलन भी गया है।लेकिन अभी तक वे मंत्रियों को जिलों का प्रभारी नही बना पाए हैं।अब यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि दो दिन बाद तबादले शुरू हो जाएंगे लेकिन अभी तक मंत्रियों का प्रभार तय नही हो पाया है।
भाजपा सूत्रों की माने तो चौथी पारी में शिवराज को पहले जैसी आजादी नही मिली है।चूंकि सरकार उन्हें दिल्ली ने सौगात में दी है इसलिए फैसले भी दिल्ली ही कर रही है।उनकी भूमिका समन्वयक की है।
शीर्ष नेतृत्व ने व्यवस्था की है कि अब फैसले व्यक्ति नही समूह करे।इसलिये पार्टी के भीतर करीब आधा दर्जन प्रमुख लोगों का एक ग्रुप बनाया गया है।यही ग्रुप फैसले लेगा।शिवराज उन पर अमल कराएंगे।
इसकी एक प्रमुख बजह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हैं।प्रदेश के भाजपा नेता भले ही उनके साथ तारतम्य न बिठा पा रहे हों पर केंद्रीय नेतृत्व उन्हें पूरी तबज्जो दे रहा है।इसलिए मंत्रियों को प्रभार देते समय उनकी पसंद और नापसंद का विशेष ख्याल रखा जाएगा।
मुख्यमंत्री सचिवालय सूत्रों का कहना है कि मंत्रियों की सूची तैयार है।दिल्ली की मुहर लगते ही ऐलान हो जाएगा।आजकल तो वैसे भी सब काम ट्वीटर पर होता है।इसलिये बुधवार की रात तक मंत्रियों को जिलों का प्रभार दिया जा सकता है।आगे दिल्ली की मर्जी।
एक सवाल यह भी है कि प्रदेश में मंत्री कम हैं और जिले ज्यादा।ऐसे में सभी जिलों को प्रभारी मंत्री कैसे मिलेंगे।यह भी हो सकता है कि वरिष्ठ और अनुभवी मंत्रियों को दो दो जिलों का प्रभार दिया जाए।
लेकिन एक बात तय है कि सिंधिया के प्रभाव वाले जिलों में उनकी पसंद के मंत्रियों को ही प्रभारी बनाया जाएगा।अन्य जिलों में पार्टी और मुख्यमंत्री की पसंद ही अहम होगी।
यह भी माना जा रहा है कि मंगलवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री मंत्रियों को प्रभार दे दें।लेकिन फैसले में देरी ने उन सरकारी कर्मचारियों की धड़कने बढ़ा दी हैं जो तबादले की बाट जोह रहे हैं।