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- आखिर कब सुधरेगी...
भोपाल। महिलाओं के प्रति अपने संकुचित और सामंती नजरिये को लेकर मध्यप्रदेश की पुलिस एक बार फिर चर्चा में है। पुलिस को लेकर दो समाचार मीडिया में आये हैं।एक समाचार ग्वालियर हाई कोर्ट के फैसले से जुड़ा है और दूसरा प्रदेश की रीवा पुलिस की कथित मर्दानगी का है।
पहले रीवा की बात मंगलवार की रात शाहपुर कस्बे में बस अड्डे पर खड़ी एक बस में एक युवती दो युवकों के साथ थी।किसी ने शाहपुर थाने को खबर कर दी।पुलिस टीम मौके पर पहुंची।उसने पाया कि युवती एक युवक के साथ आपत्तिजनक हालत में थी।पुलिस कर्मी उसे उसी हालत में बस से नीचे लाये।युवती भीड़ के सामने गिड़गिड़ाती रही कि उसे कपड़े ठीक करने का मौका दे दिया जाय।लेकिन पुलिस कर्मी उसे गंदी गंदी गालियां देते हुये अर्धनग्न हालत में अपनी गाड़ी में डाल कर थाने ले गए।लोगों ने इस पूरी बारदात का वीडियो बनाया।युवती के साथ पुलिस बस के ड्राइवर और एक युवक को भी थाने ले गयी।लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया गया। मामला सामने तब आया जब अर्धनग्न युवती का वीडियो वायरल हुआ।जैसा कि हमेशा होता है,जिले के पुलिस कप्तान ने जांच के आदेश दे दिए हैं।
इस बीच राज्य मानव अधिकार आयोग भी सक्रिय हुआ है।आयोग के अध्यक्ष जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन ने घटना का स्वतः संज्ञान लेते रीवा के कप्तान से कहा है कि वह खुद जांच करके तीन दिन में अपनी रिपोर्ट आयोग को भेजें।देखना यह है कि मानव अधिकार आयोग के निर्देश पर कप्तान साहब क्या करते हैं।वैसे उनका एक और बयान सामने आया है कि लड़की की सुरक्षा के लिए उसे थाने ले गए थे।
दूसरा मामला ग्वालियर हाई कोर्ट की खंडपीठ के फैसले से जुड़ा है।कोर्ट ने एक दलित युवती के साथ हुये सामूहिक बलात्कार के मामले में अपने फैसले में पुलिस के व्यवहार पर सख्त रुख अपनाया है।कोर्ट ने निष्पक्ष जांच के लिए मामला सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया है।साथ ही थाने के इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर व अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को कहा है। पांच पुलिस अधिकारियों को ग्वालियर चंबल रेंज से बाहर करने का भी आदेश दिया है।कोर्ट ने एसपी से यह भी कहा है कि वह मामले के मूल दस्तावेज सीबीआई को सौंप कर जांच कराएं और 6 महीने में रिपोर्ट पेश करें।पुलिस कर्मियों पर पचास हजार रुपये का जमाना भी लगाया गया है।
यह घटना 6 महीने पुरानी है। जानकारी के मुताविक पीड़िता ग्वालियर में किराए के मकान में रहती थी।31 जनवरी की रात मकान मालिक गंगा सिंह भदौरिया के नाती और उसके दोस्तों ने घर में ही उसके साथ बलात्कार किया। पुलिस ने आधीरात को मामला दर्ज किया।लेकिन पीड़िता का मेडिकल नही कराया। रात भर थाने में रखा।महिला पुलिस कर्मियों ने बयान बदलने के लिये पीटा। भारी शारीरिक यातना दी।
न्यायमूर्ति जी यस अहलूवालिया ने पांच पुलिस अधिकारियों को पीड़िता को धमकाने,बयान बदलने के लिए मारपीट करने और आरोपियों की मदद करने का दोषी माना है।दोषी अफसरों में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, उपपुलिस अधीक्षक, इंस्पेक्टर, सबइंस्पेक्टर, सहायक सब इंस्पेक्टर स्तर तक के अधिकारी शामिल हैं।इनमें महिला पुलिस अधिकारी भी हैं।अब देखना यह है कि प्रदेश सरकार अदालत के फैसले पर कितना और कैसा अमल करती है।
ये दो घटनाएं तो महज उदाहरण हैं।महिलाओं के प्रति अपराध के मामले में मध्यप्रदेश हमेशा सुर्खियों में रहा है।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में उसने लंबे समय से अपना स्थान पहले तीन राज्यों में ही रखा है। सवाल यह है कि आखिर पुलिस के नजरिये में बदलाव कब और कैसे आएगा।करीब 15 साल से राज्य की कमान संभाल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार बड़े बड़े दावे करते रहे हैं।वे खुद को प्रदेश के बच्चों का मामा बताते हैं।इस नाते प्रदेश भर की महिलाएं या तो उनकी बहनें हैं या फिर भंजियाँ।लेकिन इस रिश्ते का स्याह पहलू यह है कि महिलाओं के प्रति अपराध कम नही हुए हैं।
मुख्यमंत्री ने बच्चों के साथ दुराचार करने वालों को फांसी की सजा का कानून बनाया था।पिछले सालों में कई मामलों में अदालतों ने अभियुक्तों को फांसी की सजा भी सुनाई।लेकिन आज तक किसी को फांसी नही चढ़ाया जा सका है।मामला अदालतों में ही अटका हुआ है।
सवाल यह है कि महिलाओं के प्रति अपराध के प्रति पुलिस का नजरिया कब बदलेगा। वह कब संवेदनशील होगी।इसके लिये खुद सरकार कब पहल करेगी। क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अदालत के इस आदेश के जरिये प्रदेश के पुलिस कर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके प्रदेश के पुलिस कर्मियों को संदेश देंगे।या फिर हमेशा की तरह मामला ठंडे बस्ते में चला जायेगा।पुलिस कर्मी दूसरे जिलों में नौकरी करते रहेंगे।मुख्यमंत्री हमेशा की तरह भाषण देते रहेंगे।
अरुण दीक्षित