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- अपना एमपी गज्जब...
अपना एमपी गज्जब है..20: कहीं यह "मुकामी" और "सैलानी" भाजपा की लड़ाई का नतीजा तो नही है?
अरुण दीक्षित
अपने यहां कहावत है - रात गई बात गई!लेकिन फिर भी कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनका रातों से कोई ताल्लुक नही होता!बात निकलती है और बिना पांव के दूर तक चली जाती है।ऐसी बातों की जड़ें बहुत गहरी होती हैं और परिणाम भी!लेकिन सतह पर इन्हें देखना थोड़ा कठिन होता है।
अब पिछले दिनों इंदौर में भारत और अफ्रीका के बीच हुए 20-20 क्रिकेट मैच को ही ले लीजिए!इस मैच में भारत की करारी हार चर्चा का विषय नही बनी।चर्चा हो रही है इंदौर नगर निगम के अफसरों की दिलेरी की!
बताया जा रहा है कि नगर निगम के अफसरों ने लगभग डंडे के जोर पर मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन(एमपीसीए) से अपना बकाया टैक्स मैच शुरू होने से पहले ही वसूल लिया। इंदौर नगर निगम की एक छोटी महिला अधिकारी एमपीसीए अध्यक्ष के दफ्तर में अपनी टीम के साथ घुसीं और बकाया राशि वसूल करके ही निकलीं।
एक अफसर की दादागीरी से क्षुब्ध एमपीसीए अध्यक्ष ने इस व्यवहार को लेकर एक पत्र भी लिखा।उनका दुखी होना स्वाभाविक भी था।क्योंकि इंदौर में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था।उन्होंने यह भी कहा कि मैच के फ्री पास हासिल करने के लिए इंदौर नगर निगम ने यह दवाब बनाया।इस पूरे मामले में इंदौर के नए महापौर पूरी तरह तटस्थ रहे।
अध्यक्ष के इस पत्र के बाद एमपीसीए पर ताबड़तोड हमले हुए।आरोप लगा कि मैच के टिकट ब्लैक किए गए।आरोप लगाने वालों में सत्तारूढ़ दल के नेता भी शामिल हैं।बाद में अपने स्वभाव के अनुरूप मीडिया ने भी एमपीसीए पर सवाल उठाए।कुछ ने भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए।यह साबित करने की कोशिश की गई कि एमपीसीए भ्रष्टाचार का बड़ा अड्डा है।
चार दिन की चर्चा के बाद यह मुद्दा भी दूसरे मुद्दों की तरह नेपथ्य में चला गया।
लेकिन एक बड़ा सवाल छोड़ गया!
सवाल यह है कि क्या इंदौर नगर निगम के अफसरों में इतना दम था कि वे मुफ्त पास लेने के लिए एमपीसीए के दफ्तर पर धावा बोल दें!वह भी तब जब टैक्स जमा करने के लिए 31 मार्च 23 तक का समय एमपीसीए के पास था।
ऐसा भी नहीं है कि राज्य और निगम में अलग अलग दल सत्ता में हों।उनमें चूहे बिल्ली जैसा राजनीतिक वैर हो! फिर जब दिल्ली की सरकार भाजपा की,भोपाल की सरकार भाजपा की,इंदौर नगर निगम भाजपा का और एमपीसीए से जुड़े नेता भाजपा के तो नगर निगम के अफसरों में इतनी हिम्मत कहां से आ गई?वह ईडी की तर्ज पर एमपीसीए के दफ्तर में छापा मारने कैसे पहुंच गए?वह भी मैच के ठीक पहले!
इन अफसरों को इस ताकत का कैप्सूल किसने खिलाया? वह कौन सी ताकत है जिसने महिला अफसरों को "मर्दानी" बना दिया?
अगर अंतहपुर के मुखबिरों की माने तो एमपीसीए के दफ्तर में जो हुआ वह भाजपा के भीतर वर्चस्व साबित करने और सामने वालों को उनकी हैसियत बताने के लिए कराया गया था। मूल रूप से यह लड़ाई भाजपा के मुकामी और सैलानी गुटों की है।भले ही सैलानियों की मदद से प्रदेश की सत्ता छीनी हो लेकिन मुकामी यह नहीं चाहते हैं कि पार्टी के भीतर उनकी ताकत बढ़े!
उसकी पृष्ठभूमि भी समझिए!केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए हैं।उनके साथ उनकी पूरी टीम भी आई है।केंद्र और राज्य की सरकार में उन्हें उचित हिस्सेदारी भी दी गई है।खासतौर पर इंदौर में सिंधिया समर्थकों का वर्चस्व बना हुआ है।
एक बात और भी है।पहले जब दल अलग अलग थे तब भी सिंधिया एमपीसीए की राजनीति में अपने विरोधियों पर भारी पड़ते थे।पिछली बार उनका मुकाबला इंदौर के सरताज कहे जाने वाले ,भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से हुआ था।तब भी जीत सिंधिया की ही हुई थी।अब सिंधिया भाजपा में हैं।उन्होंने इंदौर के "भाई" कैलाश से हाथ मिला लिया है।यूं तो उनकी किसी भाजपा नेता से लड़ाई नही है लेकिन पिछले दिनों जिस तरह सिंधिया कैलाश के घर मिलने गए थे उस पर खासी चर्चा हुई थी।उस मुलाकात में सिंधिया के पुत्र द्वारा झुक कर कैलाश विजयवर्गीय को प्रणाम करना अभी तक चर्चा में है।
मुखबिरों के मुताबिक मुकामियों को "महाराज और भाई" की यह मुलाकात पसंद नही आई। पहले इंदौर में भाजपा भाई (कैलाश) और ताई(सुमित्रा महाजन) से जानी जाती थी।अब महाराज के कैलाश के घर पहुंचने से उनके कान खड़े हो गए।
इसका पहला असर तो यह हुआ कि जबरन मार्गदर्शक मंडल में भेज दी गई ताई की पूंछ परख बढ़ी।उन्हें विशेष विमान से भोपाल बुलाया गया।हालांकि अब ताई खुद ज्यादा सक्रिय नही हैं लेकिन मुकामियों ने उनके जरिए दांव खेलने की कोशिश की।
मुखबिर तो यह भी कह रहे हैं कि मैच के मौके पर इंदौर नगर निगम की महिला अफसरों को "मर्दानी" बनाना इसी दांव पेंच का हिस्सा था। एमपीसीए के वर्तमान अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी माने जाते हैं।उन पर दबाव बनाना मतलब सिंधिया पर दबाव बनाना था।सो बन गया।
भले ही सिंधिया और विजयवर्गीय ने स्टेडियम में एक साथ बैठकर मैच देखा हो पर छोटे अफसरों के जरिए उन्हें उनकी "हैसियत" बताने की "चाल" तो सफल हो ही गई।
इसके बाद मीडिया के जरिए एमपीसीए के भ्रष्टाचार को भी जमकर उछाला गया।यह मुहिम अभी भी जारी है।
मुखबिर कहते हैं - मैदान इंदौर में था पर खेल भोपाल में खेला जा रहा था। पहली नजर में जीत भी भोपाल वालों की ही हुई है।जो संदेश देना था वह दे दिया!
बता दिया कि टायगर अभी जिंदा है!
मुखबिर यह भी कहते हैं कि चुनावी साल है।आने वाले दिनों में मुकामी और सैलानी के बीच चल रहा यह शीत युद्ध और तेज होगा।मुकामियों की ओर से कुछ और कदम भी उठाए जा रहे हैं!
अब कुछ भी हो पर इतना तो तय है कि आने वाले दिनों में प्रदेश में भाजपा का आंतरिक परिदृश्य बहुत मजेदार रहने वाला है।
आखिर अपना एमपी गज्जब जो है!है न?