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बुरे फंसे शिवराज: कमल के नए 'नाथ या मध्यावधि चुनाव का साथ...
नवनीत शुक्ला
मध्यप्रदेश में आज आठ दिन बाद भी मंत्रियों के विभागों का बंटवारा नहीं हो पाना अब यह बता रहा है कि भाजपा अब आने वाले समय को देखते हुए मध्यावधि चुनाव को लेकर अपनी तैयारी शुरू कर रही है। सिंधिया के चाहे गए सभी मंत्रालय दिए जाने के बाद अब भाजपा आगामी 24 विधानसभा के उपचुनाव में इस चुनाव को सिंधिया व बनाम कमलनाथ करके लड़ने की तैयारी कर रही है, क्योंकि यदि ताजा सर्वे पर भरोसा किया जाए तो भाजपा का ही 49 प्रतिशत धड़ा इस समझौते के घोर विरोध में है। भाजपा अब अपने दिग्गज नेता यानी अमित शाह और जेपी नड्डा सहित शिवराज की लाज बचाने के लिए यह दांव खेल रही है। यदि चुनाव हारे तो हार का ठीकरा सिंधिया पर ही फोड़ा जाएगा। पूर्व मुख्यमंत्री रही उमा भारती भी मध्यावधि चुनाव की वकालत कर चुकी है। कुल मिलाकर सिंधिया के आने के बाद शिवराज सिंह चौहान जो सत्ता को हलवा समझ रहे थे, वे उलझ गए है या फिर उन्हें उलझा दिया है। दिल्ली में उन्हें पूरी तरह खाली हाथ वापस लौटना पड़ा है। सारे फैसले सिंधिया पर ही आश्रित होंगे।
इस समय सत्ता की लालच में भाजपा बुरी तरह सिंधिया के जाल में उलझ गई है। पार्टी के कई दिग्गज यह मान रहे आसान नहीं होगा सिंधिया के साथ राजनीति करना। अभी तो मंत्रियों को लेकर सरकार उलझी हुई है, बाद में यह भरोसा भी नहीं कि सिंधिया के साथ समन्वय न होने पर वे कांग्रेस में नहीं जाएंगे। खुद माधवराव सिंधिया भी समय के साथ वापस कांग्रेस में स्थापित हो गए थे। भाजपा अब सिंधिया को न तो उगल पा रही है और न निगल पा रही है। खुद शिवराज सिंह चौहान पहली बार अपने आप को इतना असहाय मसहूस कर रहे हैं।
दल बदलुओं का किसी भी राज्य में बेहतर भविष्य नहीं रहा...
इससे भी यह तय हो गया कि सरकार आई तो भी शिवराज मध्यप्रदेश की राजनीति नहीं कर पाएंगे। इसके पूर्व एक बार उन्हें सदस्यता अभियान का प्रभार देकर भी मध्यप्रदेश से बाहर भेजने की कोशिश की थी, परंतु वे मध्यप्रदेश में ही मंडराते रहे। सरकार नहीं आई तो भी उन्हें मध्यप्रदेश की राजनीति से मुक्त होना होगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के दिग्गज नेता एक बार पूरी कमान देकर मध्यप्रदेश की हंडी के चावल भी देख रहे हैं। यदि सरकार बनाने में सिंधिया सफल हुए तो वे भविष्य के भाजपा नेता भी होंगे। यदि भाजपा हारी तो हार का ठीकरा सिंधिया के माथे ही फोड़ने को लेकर पूरा चुनाव सिंधिया बनाम कमलनाथ की तर्ज पर ही लड़ा जा रहा है। ताजा सर्वे में जिस जानकारी ने भाजपा के कान खड़े कर दिए है, उसमें 80 प्रतिशत कार्यकर्ताओं का मानना है कि शामिल हुए नए उम्मीदवार को वे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। 18 प्रतिशत ही केवल पार्टी के निर्देश का पालन करने को तैयार है। 49 प्रतिशत आम लोगों ने भी दल बदलुओं पर भरोसा करने से इंकार कर दिया है। इस सर्वे में एक बात राहत देने वाली है कि अभी भी शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता जहां 51 प्रतिशत रही, वही कमलनाथ की लोकप्रियता 49 प्रतिशत रही। हालांकि कांग्रेस से कूद गए भाजपा में गए दलबदलुओं का भविष्य किसी भी राज्य में अच्छा नहीं रहा। हरियाणा में 14 कांग्रेस से भाजपा में जाकर चुनाव लड़े थे। इसमें से 10 हार गए। झारखंड में 17 कांग्रेस छोड़ भाजपा में घुसे थे, 10 हार गए। दिल्ली में 5 में से केवल 1 ही जीत पाया। यानी दल बदलुओं का भविष्य भी बहुत अच्छा नहीं दिखाई दे रहा है। सांवेर में भी इस बार भाजपा के अंदर ही विद्रोह के सूर दिखाई दे रहे हैं।
संगम नगर में बहार तो....
इन दिनों संगम नगर में गली-मोहल्ले में बहार आई हुई है। सुबह से रात तक कारों का मजमा देखा जा सकता है। 50-100 कारें इंतजार में खड़ी रहती है। यह मजमा नईनवेली मंत्री के लिए लग रहा है। तो दूसरी ओर क्षेत्र क्रमांक 2 में नंदानगर में इन दिनों सन्नाटा फैला हुआ है। कही ऐसा तो नहीं कि क्षेत्र में बड़े तूफान के पहले की कोई शांति दिखाई दे रही है। 2 नंबर के ही कांग्रेसी नेता जो अब भाजपा में आ गए है उन्होंने भी यहां की हालत देखते हुए अपनी सारी मिसाइल और युद्धक सामान सांवेर में पेलवान के लिए लगा दिए है। संकट के समय में अपने ही तो अपनों के काम आते है। पराए तो पराए होते है।
इधर कैसे दिख रहे है...
भाजपा कार्यालय में आजकल कई ऐसे चेहरे नजर आ रहे है जो कभी थाने पर नजर आया करते थे। थाने से मतलब अंदर बैठे हुए दिखते थे। इस मामले में एक बड़े भाजपा नेता का कहना है जैसा पानी आता है वैसी ही गंदगी भी साथ में लाता है।