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भोपाल गैस त्रासदी: 34 वर्ष हो गए आज भी नहीं भूली जाती वह 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात
ऐसा लगता है मानो कल की ही बात है, जब मैं अपनी प्रेस पर रात के समय काम कर रहा था उस समय रात के 12:00 बज चुके थे , ठंड पूरे शबाब पर थी मैंने अपने दफ्तर का दरवाजा अंदर से बंद किया हुआ था । मुझको ऐसा लग रहा था , जैसे आसपास किसी ने मिर्ची जलाई हो ,आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी । जब मैं अपने ऑफिस से बाहर आया तो मैंने हजारों लोगों को सड़क पर बेहाल होकर पैदल चलते हुए और दौड़ते हुए देखा ।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था यह क्या माजरा है , मैंने कुछ लोगों से पूछने की कोशिश की कोई कुछ बताने को तैयार नहीं था , क्योंकि उनको भी नहीं मालूम था यह क्या हो गया।
जब मैंने अपने एक मित्र पुलिस अधिकारी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया यूनियन कार्बाइड कारखाने से गैस का रिसाव हो गया है , उन्होंने मुझसे बोला आप भी प्रेस को बंद करके घर चले जाए उस समय मेरे पास स्कूटर था , और मेरे ऑफिस एवं प्रेस के कर्मचारी तकरीबन 15 लोग थे , और सड़क पर चलने तक की जगह नहीं थी तो मैं स्कूटर कैसे चलाता , मैं भी पैदल कुछ दूर तक गया उस समय मेरे पैरों से कई लोग टकरा रहे थे , यह वह लोग थे जो मूर्छित होकर गिर गए थे या उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे , मेरी प्रेस से आधा किलोमीटर के अंदर तकरीबन 500 लोग गिरे हुए थे किसी तरीके से जब मैं अपने घर पहुंचा समझ में नहीं आ रहा था मेरी जान कैसे बची, यह बात उस रात की है ।
आपको गैस त्रासदी के कुछ आंकड़े बताना चाहता हू , और वह कौन सी गैस थी, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली ।
यह गैस मिथाइल आइसोसाइनेट थी , यूनियन कार्बाइड कीटनाशक बनाने का कारखाना था, यह कारखाना इतना खतरनाक कीटनाशक बनाता था कि अमेरिकन सरकार ने इस कारखाने को अमेरिका में नहीं लगाने दिया , इसलिए यह कारखाना भारत के भोपाल शहर में स्थापित किया गया , और यह कीटनाशक चोरी छुपे बनाया जाता था, कारखाने में दिखाने के लिए सेल बनाए जाते थे सेल का मतलब जो टॉर्च में और ट्रांसिस्टर्स में इस्तेमाल होते हैं ।
2 और 3 दिसंबर को रिसाव का मुख्य कारण दोषपूर्ण सिस्टम का होना था दरअसल 1980 के शुरुआती सालों में कीटनाशक की मांग कम हो गई थी इससे कंपनी ने सिस्टम के रखरखाव पर ध्यान देना छोड़ दिया था कंपनी ने एम आई सी का उत्पादन भी नहीं रोका और एमआईसी का ढेर लगता गया , जिसके वजह से रिसाव ने इतना भयंकर रूप लिया और हजारों लोगों की जिंदगी छीन ली , 4 दिसंबर 1984 को हजारों लोगों को सामूहिक रूप से दफनाया गया और अंतिम संस्कार किया गया कुछ ही दिन के अंदर ढाई हजार के करीब जानवरों के शवों को विसर्जित करना पड़ा आसपास के पेड़ बंजर हो गए अस्पतालों मे 17000 लोगों को भर्ती कराया गया सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2259 लोगों की मौत हो गई थी , मध्य प्रदेश सरकार ने गैस रिसाव से होने वाली मौतों की संख्या 3787 बताई थी, 2006 में सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया था जिस में उल्लेख किया गया था की गैस रिसाव के कारण कुल 558125 लोग जख्मी हुए थे , उनमें 38478 लोग अस्थाई रूप से विकलांग हुए 3900 लोग स्थाई रूप से विकलांग हुए थे , कई बच्चे अनाथ हो गए कई मांओं ने अपने बच्चों को खो दिया था ,कई महिलाएं विधवा हो गई थी और हजारों बच्चे विकलांग हो गए थे , आज भी भोपाल गैस त्रासदी की झलक देखने को अस्पतालों में मिल जाती है ,जो उस समय बच्चे थे आज वह नौजवान हो गए हैं पर वह दिन के आधा समय अस्पतालों में गुजारते हैं कई नौजवान आंखों की तकलीफ से जूझ रहे हैं कई लोग फेफड़ों की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और हजारों लोग कैंसर की बीमारी से तड़प तड़प कर अपना जीवन त्याग दिया ।
हमारी सरकार और अमरीकन सरकार ने भोपाल की जनता के साथ खिलवाड़ किया है भोपाल वासियों की जान की कीमत चंद हजार रुपए हैं अगर यह त्रासदी अमरीका में हुई होती तो अमरीकी सरकार फैक्ट्री के मालिक को फांसी की सजा और लोगों को करोड़ों रूपए का मुआवजा दिया जाता।
मोहम्मद जावेद खान