भोपाल

चकरघिन्नी: चिड़ी उड़, कबूतर उड़, अरे बन्दर उड़ गए...!

Special Coverage News
25 July 2019 8:01 AM IST
चकरघिन्नी:  चिड़ी उड़, कबूतर उड़, अरे बन्दर उड़ गए...!
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छह महीने में ही फिर चुनाव का ठीकरा प्रदेश के माथे पर लिखने की नीयत रखने वालों के अरमान रोज उमड़ते, घुमड़ते बादलों की तरह दिखाई दे रहे हैं, जो गर्राते तो हैं लेकिन बरसने से पहले ही हवा उन्हें कहीं दूर ले उड़ती है

आशू खान

एक नम्बरी, दो नम्बरी के इशारे पर अपने मेम्बरों के नम्बर बढ़ाने की कवायद मुंगेरीलाल के हसीन सपने बुनती रह गई... कछुए की धीमी चाल से गरगोश को मात मिलने की कल्पना से बाहर की बात सामने आ गई....! लालच के जिस पिटारे को खोले भाई लोग घूम रहे थे, मुगालते में यह भूल गए कि पोटली का मुंह खोलने की महारत भी इधर भी इधर कम नहीं है....! वहां के नाटक से उत्साहित होकर यहां 'कर' (हाथ) जोड़ने की कहानी बढ़ने से पहले ही बाजी जीतकर 'नाथ' ने 'कमल' की सुर्खी को पीलेपन में बदल दिया है...!

लगातार तीन चुनावों में तीन अलग-अलग पार्टी सिंबल थामने वाले नेताजी फिर अरमानों के हिंडोले पर बैठ गए हैं... उम्मीद के झूले झूल रहे कुछ आजाद और छोटे पार्टी नेताओं के सुर भी नरम पढ़ने के दिन शुरू होते नजर आने लगे हैं....! बेहतर आंकड़े को पाने के बाद इधर राहत की बांसुरी तो बजती दिखाई देने लगी है, लेकिन हर दिन गीदड़ भभकी देते फिरने वाले विपक्ष को बेचैनी की नींद नसीब लिखा गई है...! छह महीने में ही फिर चुनाव का ठीकरा प्रदेश के माथे पर लिखने की नीयत रखने वालों के अरमान रोज उमड़ते, घुमड़ते बादलों की तरह दिखाई दे रहे हैं, जो गर्राते तो हैं लेकिन बरसने से पहले ही हवा उन्हें कहीं दूर ले उड़ती है....!

काम आए पुराने ताल्लुक

बार-बार टिकट के नजदीक आने से दूर धकेले जाने के दौर में 'नेताजी' ने एक छोटी पार्टी को सारथी बनाया। जीत हिस्से नहीं आई, साथ आए दोस्तों ने इस दौर में आकर उनके नम्बर बढ़ाने में जादुई भूमिका निभा दी। नेताजी के बढ़े कद को आने वाले दिनों में पद से तोल दिया जाए तो न अतिश्योक्ति होगी और न उनके अहसान के बराबर ईनाम।

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