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- आसान नही है शिवराज की...
भोपाल।मध्यप्रदेश में मानसून के जल्दी आने से उस धूल पर भी पानी पड़ गया है जो एक दूसरे के घर चाय बैठकी कर रहे नेताओं की आलीशान गाड़ियां उड़ा रही थीं।साथ ही चाय की प्याली से उठने वाली भाप भी पानी बन गयी है। खुद चाय के शौकीन नेताओं ने आगे आकर कह दिया है कि उनकी बैठकों का मतलब शिवराज को हटाना नही था।शिवराज मुख्यमंत्री हैं!आगे भी वही रहेंगे!
यूं तो इस सफाई के बाद बात खत्म हो जानी चाहिये।लेकिन राजनीति अस्थिरता का दूसरा नाम है।कब कौन कहाँ जा खड़ा होगा कहा नही जा सकता।देश आजाद होने से लेकर अब तक ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिनके चलते पल भर में तस्वीर बदली है। मध्यप्रदेश में तो सबसे ताजा उदाहरण मौजूद है।
लेकिन फिलहाल मध्यप्रदेश के जो हालात हैं उनसे यह साफ है कि शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी को भीतर से कोई खतरा नही है।बाहर का खतरा 2023 के चुनाव के बाद ही आ सकता है।
भाजपा सूत्रों की माने तो शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से ही भाजपा, संघ और सभी आनुषंगिक संगठनों की पसंद बन गए हैं।2018 के चुनाव में पार्टी की हार अवश्य हुई थी।लेकिन नेतृत्व को मालूम था कि असली बजह क्या है।इसीलिये मीडिया की तमाम अटकलों के बाद भी शिवराज पर कोई आंच नही आई।यही बजह थी कि जब कांग्रेस के विधायकों ने थैलों के बदले में अपनी निष्ठा अपनी निष्ठा बदली थी तब शिवराज पर ही भरोसा किया गया।वे नेता जिन्होंने कमलनाथ की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई और जिन्हें यह गुमान था कि ताज वे ही पहनेंगे, सिर्फ दुल्हन को ससुराल पहुंचाने वाले कहारों को ही याद करते रह गए।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताविक पिछले 15 सालों में शिवराज सर्व स्वीकार्य बन गए हैं।दरअसल उन्होने पार्टी और उसके सभी सहयोगी संगठनों की जिस तरह सेवा की है उसका कोई दूसरा उदाहरण देश में नही है। शिवराज ने सत्ता की बूटी में सबका हिस्सा रखा है।अपनी कुर्सी को मजबूत रखने के लिए वे पार्टी के लिए "श्रवण कुमार" बन गए।
भाजपा नेता के मुताविक शिवराज के इसी सेवाभाव ने उमा भारती जैसी ऊर्जावान नेता को हाशिये पर पहुंचाया।उनके लिए "दिल्ली" ने रणनीति बनाई।संघ ने सरपरस्ती की।यही बजह है कि 2003 में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाने वाली उमा ट्वीटर पर नरेंद्र मोदी से काम मांग रही हैं।
विवाद शिवराज के साथ शुरू से रहे हैं।पहले डंपर कांड फिर बहुचर्चित व्यापम कांड भी उनकी कुर्सी नही हिला पाया।ई टेंडरिंग घोटाला भी सतह के ऊपर आकर रसातल में चला गया। प्रदेश में रेत खनन का अवैध कारोबार आज तक चर्चा में है।लेकिन शिवराज पर कोई आंच नही आई है। न भविष्य में आएगी।
शिवराज ने प्रदेश से लेकर दिल्ली तक संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों का भी भरपूर ख्याल रखा है।मध्यप्रदेश में हर जिले में शानदार दफ्तर बनवाये हैं।दूसरे राज्यों में भी रसद भिजबाई है।संघ के कुछ पदाधिकारियों को तो व्यक्तिगत रूप से उपकृत किया है। यह क्रम आज भी जारी है।
इसलिए जो नेता एक दूसरे के साथ चाय पीकर चाय के प्याले में तूफान लाने की कोशिश कर रहे थे उन्हें शुद्ध हिंदी में समझा दिया गया है।फिलहाल राज तो शिवराज के पास ही रहेगा।
भाजपा नेता की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिवराज को बहुत पसंद करते हैं।इसकी सबसे बड़ी बजह यह है कि राजनीति में मोदी से वरिष्ठ शिवराज ने तत्काल उन्हें अपना "नेता" मान लिया।हालांकि लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार उनका जिक्र मोदी के समकक्ष नेताओं में किया था और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार बताया था।लेकिन शिवराज ने आज तक अपनी सीमा रेखा नही लांघी।अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में हुई मुलाकात के दौरान भी वे योगी की तरह मोदी के बराबर कुर्सी पर नही बैठे।दुनिया में चाहे जो कहा गया हो लेकिन शिवराज मौन ही रहे।
ऐसे अनेक कारण हैं!दिल्ली और नागपुर के लोग उन कारणों को अच्छे से जानते हैं।इसलिए प्रदेश के जो नेता उछल कूद कर रहे हैं,उन्हें पूरा मौका देकर यह बता दिया जाता है कि यह उछलकूद बेकार है।कुछ को समझ आ गया है।जिन्हें नही आया उन्हें भी जल्दी आ जायेगा।
दरअसल शिवराज को "सत्ता" दिल्ली ने दी है।जब तक वह चाहेगी तब चाहे कितने भी घोटाले गिना लो या फिर चाय बैठकें कर लो वे "सत्तासीन" बने रहेंगे।