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मेरा यह सवाल पढ़कर या सुनकर आप चौंकेंगे जरूर!हो सकता है कि आप इस सवाल को ही खारिज कर दें।कोई बात नहीं।ऐसा भी होता है।क्योंकि समझ अपनी अपनी!
मैं बताता हूं कि यह सवाल मैं क्यों पूछ रहा हूं! वैसे तो आज कांग्रेस पूरे देश में चर्चा में है।यह भी कह सकते हैं देश की सबसे पुरानी पार्टी आज जिस हाल में है,उसे देखते हुए पूरी दुनियां में चर्चा हो रही है।करीब 5 दशक तक कांग्रेस में रह कर मलाई खाने वाले गुलाम नबी आजाद जिस तरह के हमले कांग्रेस नेतृत्व पर कर रहे हैं,उससे अचानक कांग्रेस की कुछ ज्यादा ही चर्चा हो रही है।आप यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर कांग्रेसियों को अपने घर में अच्छी जगहें देने वाली भाजपा भी इस तरह के हमले नही कर पाई जैसे गुलाम नबी आजाद कर रहे हैं।
देखना यह है कि गुलाम नबी आजाद "विभीषण" बन पाएंगे कि नहीं?क्योंकि अपने भाई रावण की मृत्यु का भेद भगवान राम को बताकर "विभीषण" ने लंका का राज हासिल कर लिया था।गुलाम अपने गृह राज्य में सत्ता हासिल कर पाएंगे?या फिर वे भी पालकी उठाने वाले कहारों की जमात में शामिल होकर पूर्वोत्तर के राज्यों की तरह भाजपा का पथ सुगम करेंगे।
लेकिन अभी बात मध्यप्रदेश की। मध्यप्रदेश में करीब ढाई साल पहले अपनी चुनी हुई सरकार गवाने वाली कांग्रेस अभी तक सीधी खड़ी होती नजर नहीं आ रही है।2020 में उसके विधायकों के "बिकने" का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अभी तक जारी है।(विधायकों के बिकने की बात खुद कांग्रेस के नेता कहते आ रहे हैं)।राष्ट्रपति चुनाव में 16 विधायक पार्टी को धोखा दे गए।बाद में हुए पंचायत और पालिका चुनावों में भी कांग्रेस के चुने हुए जन प्रतिनिधियों ने खुलकर अपना "समर्थन मूल्य" हासिल किया और भाजपा की जीत में मददगार साबित हुए।
कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व इस संबंध में कुछ भी नही कर पाया है।कुछ बयान और कुछ ट्वीट के आगे प्रदेश के "कांग्रेसी कर्णधार" कुछ नही कर पाए।
दरअसल कांग्रेस एक भी मुद्दे पर जनता के बीच जाकर खुद को जनता से "कनेक्ट" नही कर पाई है। न ही ऐसी कोई कोशिश नजर आ रही है।
अब शिवपुरी की घटना को ही ले लीजिए!कमलनाथ की सरकार से इस्तीफा देकर शिवराज की सरकार में शामिल हुए महेंद्र सिंह सिसोदिया ने सार्वजनिक रूप से प्रदेश के मुख्यसचिव को तानाशाह कहा।उनकी कार्यशैली पर नाराज हुए।ऐसा इस प्रदेश में पहले कभी नही हुआ। हां जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के पीछे एक कलेक्टर को लगा दिया था।अपनी साफगोई के लिए मशहूर रहे सत्यव्रत अपनी पार्टी की सरकार से इतने दुखी हो गए थे कि उन्होंने विधानसभा सदन में अपनी पीड़ा व्यक्त की और इस्तीफा देकर चले गए थे।तब के विपक्षी दल भाजपा ने इस घटना पर जमकर हंगामा किया था।
अब, कांग्रेस के शब्दों में,खरीदी हुई सरकार, का एक मंत्री पूरे प्रशासन तंत्र पर इतना बड़ा सवाल उठा रहा है।लेकिन कांग्रेस दृश्य से गायब है।मंत्री भी वह हैं जो कांग्रेस की सरकार गिराने की मुहिम में शामिल थे।
इतने बड़े मुद्दे पर मध्यप्रदेश कांग्रेस का कोई बड़ा नेता कुछ नही बोला है।एक दो छुटभैये नेताओं ने ट्वीटर पर चार छ लाइनों में चीं चीं की और फिर चुप बैठ गए।
किसी ने इतनी बड़ी "सरकारी अराजकता" पर सही ढंग से एक भी सवाल नही उठाया।
यही नहीं,ये मंत्री महोदय अपने प्रभार के जिलों में अपनी पसंद के थानेदारों की तैनाती कराना चाहते थे।जिले के पुलिस अधीक्षक ने नियमानुसार काम किया।मंत्री जी नाराज हुए।उन्होंने बाकायदा कलेक्टर को पत्र लिखा।पत्र की प्रति मुख्यमंत्री को भेजने के बजाय केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पी ए को भेजी।
राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री के इस पत्र को भी कांग्रेस मुद्दा नहीं बना पाई।कोई बड़ा नेता ऐसा कुछ नही बोला जिससे यह माना जाए की इस राज्य में कांग्रेस ही एक मात्र विपक्षी दल है।
इससे पहले धार जिले में कारम बांध फूटने के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बांध स्थल पर गए थे।उन्होंने एक जांच समिति भी बनाई थी।
लेकिन सैकड़ों करोड़ की लागत वाले नए बांध के फूटने को कांग्रेस मुद्दा नहीं बना पाई। न ही अभी तक यह पता चला है कि कांग्रेस की जांच समिति ने जांच में क्या पाया था।भले ही गोदी मीडिया उसकी बात को नही सुनता।पर उसे आगे आकर अपनी बात कहने से कौन रोक रहा है।
यह दो ही नही ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर राज्य सरकार को कांग्रेस घेर सकती थी।लेकिन वह ऐसा कर नही पाई।
उधर मुख्यसचिव को निरंकुश बताने वाले कैबिनेट मंत्री से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने बात कर ली है।इसके बाद मंत्री ने कह दिया है कि मुख्यमंत्री से बात हो गई है।अब कोई मुद्दा नहीं है।मतलब यह है कि मुख्यमंत्री के फोन ने निरंकुश मुख्यसचिव को अंकुश में ला दिया है।
पर पता नही कांग्रेस के नेताओं पर कौन सा अंकुश लगा है जो वे इस मुद्दे पर अपना मुंह भी नही खोल पाए।
वैसे कांग्रेस का हाल जगजाहिर है।दिल्ली में कोई मुखिया नही और मध्यप्रदेश में मुखिया दिखता नहीं।प्रदेश कांग्रेस का कार्यालय कांग्रेसियों का अखाड़ा बना हुआ है।हालांकि असली कब्जा कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का ही है।लेकिन सरकार को घेरने की सार्थक कोशिश किसी स्तर पर नही दिख रही।
ऐसा लग रहा है कि मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस उत्तरप्रदेश जैसी गति की ओर बढ़ रही है।